बचपन से सनातन परम्परा की वाहक रही जननी और जननी की भी जननी , माँ नानी की कहानियों की समृद्ध परम्परा के बीच ये संटा बाबा कब अचानक अपना झोला और दाढ़ी लेकर ,भारतीय समाज ,और घरों में घुसा दिए गए जिसने आधी रात का वक्त चुना वो भी किसलिए , किसी को भी आज तक सिवा हवाई हवाई के कुछ भी नहीं देने के लिए

सनातन के हर पर्व त्यौहार का सामाजिक ,आर्थिक और यहाँ तक कि एक वैज्ञानिक पक्ष भी रहा है , पहनावे से लेकर भोज्य व्यंजन परम्परा तक की विशिष्टता से संपन्न उस हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के लगभग हर पर्व में कमियाँ बुराइयां देखने और दिखाने वाले लोग , जो पूरी दुनिया में अलग अलग वितंडों से सबको ईसाइयत की टोपी पहना रहे हैं उन्होंने बाल गोपाल लड्डू को पूजने वाले समाज को बुढऊ लाल के पीछे लगा दिया .

एक बाबाजी आधी रात को बड़ा जा झोला लेकर आएगा और सबको उनके मन के मुराद की घंटी बजाकर जाएगा , अब ज़रा गौर से देखिये , बाबा आएगा , नहीं मतलब बाबाओं , साधुओं के इस देश में बाहर से बाबा आएगा ,चलो ठीक है फिर , वो रेंडियर और स्लेज पर बैठ कर आएगा , न रेंडियर का भारत से सरोकार है न ही स्लेज घिसटती है इस देश में

असल में दुनिया में हर कोई खुद को सनातन से बड़ा ,महान बताने ,दिखाने ,जताने ,समझाने की एक होड़ में लगा हुआ है कोई जिहाद कर रहा है कोई एक बोरी चावल और एक बड़े से झोले में छिपे हवाई खजाने को दिखाकर ,कोई किसी और डर या बहाने से उसे सनातन छोड़ने को कह रहा है , सब कुछ आयातित करने वाले भी मूल को सिखा रहे हैं कि ,सभ्यता संस्कृति .

पाश्चात्य सभ्यता जो खुद आकंठ यौन व्यिभाचार से लेकर आतंकवाद ,शस्त्रों की होड़ , पर्यावरण को क्षति से लेकर तमाम मानवीय पहलुओं पर खुद सबसे बड़ा दोषी है वो अपने कृत्रिम विकास और स्व घोषित पांडित्य की खोखली बुद्धिजिवीता को कभी सैंटा का लाल ड्रेस पहना पर पूरी दुनिया को उसके नाम पर खड़े करोड़ों अरबों के बाज़ार खडी में दिखती है तो कभी अपना छिछलापन ,हल्कापन छिपाने के लिए पृथ्वी के भार सरीखे सनातन को ही छोटा बताने में लगे हुए हैं .

सुनो , सैंटा चलते चलते एक बात का वादा तो बतौर रिटर्न गिफ्ट आपके लिए भी बनता है . इस देश का सनानत अब जाग चुका है तुमसे अपने नाम पर काटे गए पेड़ों की ह्त्या का पाप लगे न लगे , वो तुमसे रुके न रुके , मगर अब इस देश में धर्मांतरण की सारी दुकानों का धंधा अब बंद

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