ऐसे है बीजेपी के हनुमान, जो संभाल रहे जम्मू कश्मीर की कमान…

ऐसे है बीजेपी के हनुमान, जो संभाल रहे जम्मू कश्मीर की कमान…
देखे किस तरह से मनोज सिन्हा ने खुद को साबित किया…
जब 24 जून को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, गृहमंत्री अमित शाह जी के द्वारा जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओ के साथ एक मीटिंग रखने का प्रस्ताव तय हुआ तो वहां के वर्तमान राज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी के बेटे की शादी जो कि महीनो पहले तय थी बावजूद उसके मनोज सिन्हा शादी में शामिल ना होकर जम्मू कश्मीर में अपना राज धर्म निभा रहे थे अपने बेटे अभिनव सिन्हा की शादी में खुद मौजूद नही थे और एक सच्चे सिपाही की तरह अपना धर्म देश के प्रति निभा रहे थे
आखिर क्या बड़े बदलाव किए सिन्हा जी ने जम्मू कश्मीर में
एक सक्रिय राजनीति के जाने-माने चेहरे मनोज सिन्हा को जब जम्मू एंड कश्मीर का गवर्नर बनाकर भेजा जा रहा था तब शायद लोगों को पता नहीं था की अपनी सक्रिय राजनीति से हटकर इस पद पर जाकर मनोज सिन्हा जी कई राजनीति से रिटायर तो नहीं हो रहे हैं लेकिन आज पता चल रहा है कि एक सक्रिय राजनीति व रणनीति के पुरोधा मनोज सिन्हा को भेजने के पीछे का कारण बस इतना था कि जम्मू कश्मीर में आम लोगों के विचारों और उनके लक्ष्यों को सामूहिक रूप से समझ कर किस प्रकार से एक सुंदर और शांति पूर्वक माहौल में राज्य को अन्य राज्यों की तरह विकासशील बनाया जा सके इसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी तथा राष्ट्रपति जी द्वारा भाजपा का हनुमान बनाकर भेजा गया था श्री मनोज सिन्हा जी को…. पिछले 13 महीनों में सीना जी ने जम्मू कश्मीर के अंदर किसी भी राजनीतिक दल पर किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत कटाक्ष नहीं किया नाही पहले के एलजी सत्यपाल मलिक या जीसी मुरमू की तरह किसी भी कार्य को राजभवन की आड़ में राजनीतिक दलों को नुकसान पहुंचाने का कार्य मनोज सिन्हा जी ने पिछले 13 महीनों में नहीं किया, स्थानीय लोगों के साथ साथ राजनीतिक दलों के नेताओं के भी सीधे संपर्क में रहना मनोज सिन्हा का एक अपना अलग अंदाज है और इसका जीता जागता उदाहरण आपको बता दें कि जब मनोज सिन्हा जी गवर्नर बनकर जम्मू-कश्मीर गए तो उन्होंने वहां जाकर पूर्व मुख्यमंत्री तथा जम्मू कश्मीर के बड़े नेता फारूक अब्दुल्ला को चाय के लिए आमंत्रित किया आश्चर्य से लबरेज जब फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि मेरे आने से केंद्रीय राजनीति में किसी प्रकार की उठापटक होती है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा या उस पर क्या असर पड़ेगा इस पर मनोज सिन्हा जी ने बड़े नरम मिजाज में कहा कि आपका घर कोई राजभवन से दूर नहीं है अगर आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं आपके यहां चाय पीने आ जाता हूं ऐसा व्यक्तित्व मनोज सिन्हा जी लेकर चल रहे है 24 जून को जब सर्वदलीय मीटिंग बुलाई गई तो लोग अपने अपने हिसाब से अलग-अलग कयास लगा रहे थे किसी ने कहा कि किसी दल के नेता नहीं आएंगे तो किसी ने कहा कि बात बनेगी नहीं लेकिन मनोज सिन्हा जी की मध्यस्थता इतनी कमाई कि सारे के सारे दल के प्रतिनिधि वहां पहुंचे बहुत ही सुननी अदा से 2 घंटे चली इस मीटिंग में किसी भी प्रकार की गर्मजोशी या किंतु परंतु वाली बातें नहीं हुई राज्य के विकास के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण में राज्य कैसे सहभागी हो सकता है इस पर 2 घंटे चर्चा चले और यह बड़ा सुखद अनुभव रहा मीडिया से लेकर तमाम हिंदुस्तान के लोगों के लिए कि जहां पहले किसी भी अन्य प्रकार के स्टेटमेंट राजनीतिक दलों के आ रहे थे लेकिन इस 2 घंटे की मीटिंग के बाद सारे के सारे राजनीतिक दल के मुखिया संतुष्ट नजर आए और खुश नजर आए इसके पीछे भी कहीं ना कहीं पिछले 13 महीनों के सौम्यता के व्यवहार के प्रतिक मनोज सिन्हा ही थे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने भी अपने वक्तव्य में एक बार कहा था कि मैं मनोज सिन्हा जी को एलजी की बजाय गवर्नर के रूप में देखना चाहता हूं इस तरह के एहसास बताते हैं कि आप की राजनीतिक सूझबूझ कितनी मजबूत है और आप अन्य दलों के प्रति किस तरह की राजनीतिक भावना रखते हैं
क्या है मनोज सिन्हा में खास बात
एक राष्ट्रभक्त के नाते रामायण के हनुमान का रोल अदा करने में मनोज सिन्हा जी कहीं भी पीछे नहीं रहे और यह इस बात का अहसास करवाते हैं कि ऐसे राजनीतिक महत्वाकांक्षा ना रखने वाले लोग ही आगे जाकर राष्ट्र विकास के सहभागी होते हैं
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