भगवान श्रीराम के साथ पूरी अयोध्या नगरी कई वर्षों तक माँ सरयू के आंचल में जलमग्न रही, कौशाम्बी के महाराज कुश जब अयोध्या वापस आये तो उन्होंने वीरान पड़ी उस अयोध्या को पुनः स्थापित किया, महाकवि कालिदास ने अपनी रचना “रघुवंश” में इसका उल्लेख स्पष्ट रूप से किया है। लोमश रामायण में बताया गया है कि किस प्रकार कसौटी पत्थरों के खम्बों पर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ था।

भविष्य पुराण में भी महाराज विक्रमादित्य द्वारा अयोध्या का पुनरोद्धार करने का विषय आता है, ईसा से 57 वर्ष पूर्व जब महाराज विक्रमादित्य उज्जैन के सिंघासन पर विराजमान हुए तभी से विक्रमी संवत आरम्भ हुआ। इस घटना से सिद्ध होता है कि विक्रमी संवत से पूर्व अयोध्या एक बार और जलमग्न हो चुकी थी या उजड़ चुकी थी, महाराज विक्रमादित्य ने लक्ष्मण घाट को आधार मानकर कुल 360 मंदिर बनवाये जिनमे राम मंदिर, नागेश्वरनाथ और मणिपर्वत इत्यादि भव्य मंदिर प्रमुख थे।

अयोध्या पर आक्रमण:

आक्रमणकारी सालार मसूद ने 1033 ई0 में साकेत अथवा अयोध्या में डेरा डाला था तथा उसी समय जन्मभूमि के द्वारा प्रसिद्ध मन्दिर को भी ध्वस्त किया परन्तु अयोध्या को लूटकर वापस जाते सालार मसूद को महाराज सोहेल देव ने 14 जून 1033 बहराइच में ही मार डाला। ये युद्ध इतना भीषण था कि सैकड़ों वर्षों तक अयोध्या पर कुदृष्टि डालने की किसी की हिम्मत नही हुई। गहड़वाल वंशीय राजाओं ने पुनः मन्दिर का निर्माण कराया।

शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र को अयोध्या से एक शिलालेख मिला, जिसमें पता चलता है कि अयोध्या गुप्तवंशीय चंद्रगुप्त द्वितीय की राजधानी रही थी। साथ ही उस समय के कालिदास ने भी कई बार अयोध्या के राममंदिर का उल्लेख किया है। उसके बाद कई राजा-महाराजा आए और राम मंदिर की देखभाल करते रहे।

सन् 1526 में बाबर अयोध्या की ओर आया। उसने अपना डेरा सरयू के उस पार डाला। वह भारत पर विजय प्राप्त करना चाहता था, वह अपने धर्मगुरु से मिला उस धर्मगुरु ने उसे श्रीराम मंदिर सहित सभी धार्मिक स्थलों को तोड़ने के लिए कहा, उसका तर्क था कि ऐसा करने से अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के हिंदुओं का बल क्षीण होगा और वो भयभीत होंगे।

बाबर के आदेश पर मीर बांकी ने सन् 1528 में अयोध्या में आक्रमण करके जन्मभूमि पर बने मन्दिर को तोड़कर, मस्जिद निर्माण करने का प्रयास किया पर प्रचण्ड हिन्दू प्रतिकार के कारण वह सफल नहीं हुआ। हालांकि मंदिर तोड़ने में वो सफल रहा पर कभी मस्जिद न बना सका, इसी कारण उस ढांचे में न मीनारे बन पाईं और न ही वजू के लिए कोई स्थान बन सका जो कि मस्जिद के आधारभूत ढांचे होते हैं।

1बाबर1528-1530 ई4भीटी नरेश महताब सिंह, हंसबर के राजगुरु देवीदीन पाण्डेय, हंसबर के राजा रणविजय सिंह हंसबर की रानी जयराजकुमारी
2हुमायूँ1530-1556 ई.10साधुओं की सेना लेकर स्वामी महेशानंद जी।, स्त्रियों की सेना लेकर रानी जयराजकुमारी।
3अकबर1556-1606 ई20स्वामी बलरामाचार्य जी निरंतर लड़ते रहे।
4औरंगजेब1658-1707 ई30बाबा वैष्णवदास, गुरु गोविन्द सिंह, कुँवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह,ठा, गजराज सिंह
5नवाब,सआदतअली1770-1814 ई5अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह, पिपरा के राज कुमार सिंह
6नासिरुद्दीन हैदर1814-1836 ई.3मकरही के राजा
7वाजिदअली शाह1847-1857 ई.2बाबा उद्धवदास तथा श्रीरामचरण दास, गोण्डा नरेश देवी बख्श सिंह
8अंग्रेजी शासन1912-19342साधु समाज और हिन्दू जनता सम्मिलित रूप में।
कुल 76 बार अयोध्या पर आक्रमण किया गया पर अयोध्या अपने नाम के अनुरूप युद्ध मे पूर्णतया जीती नही जा सकी।

30 नवंबर सन 1858 को पहली बार FIR दर्ज करवाई गई जब निहंग सिख साधुओं ने मंदिर के कपाट खोलकर उसमे कीर्तन आरम्भ किया,

नवंबर 1989 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत दे दी। माना जाता है कांग्रेस सरकार का ये फैसला शाहबानों केस के बाद नाराज हिंदू वोटबैंक और भ्रष्चाचार के आरोपों से घटते जनाधार को अपनी तरफ खींचने के लिए किया था. लेकिन कांग्रेस का दांव उल्टा पडा। आडवाणी जी के नेतृत्व में भाजपा ने इसे एक चुनावी मुद्दे के साथ आस्था का विषय बना दिया और एक बड़ा आंदोलन छेद दिया, अयोध्या एक बार पुनः समर भूमि बन गई और कोठारी बन्दुओं सहित अनेकोनेक हिंदुओं ने अपने प्राण गँवाये।

6 दिसंबर 1992 यानी आज ही के दिन उस कलंक को मिटा दिया गया जो मीर बांकी ने हिन्दू समाज के माथे पर लगाया था

यहां से शुरू हुई कानूनी लड़ाई नवंबर 2019 में समाप्त हुई और हिन्दू समाज ने 500 वर्षों की लंबी लड़ाई जीती और मोदी जी के कुशल राजनैतिक नेतृत्व में एक स्वप्न को साकार रूप देने की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए।

“सत्य कभी पराजित नही होता” इस वाक्य को हिन्दू समाज की एकजुटता ने सिद्ध कर दिखाया, लड़ाई अभी समाप्त नही हुई है ये तो मात्र पहला कदम था, काशी और मथुरा हिन्दू समाज की तरफ आज आशा भारी नज़रों से देख रहे हैं, अभी हमें और लड़ना है, साथ चलना है और अपनी पीढ़ियों को एक ऐसा इतिहास देना है जिसपर उन्हें गर्व हो।

सभी सनातनी भाइयों को शौर्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

निहंग साधुओं पर की गई पहली FIR सन 1858

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