दोहराया जा रहा कश्मीरी इतिहास..

वो 90 के दशक में जिस प्रकार कश्मीर की घाटी में चेतावनी के साथ घाटी को रक्त रंजित करने की साजिश रची गई थी जिसमे अबला नारी की इज्जत से खुलेआम खेला गया था उस भी हिंदुस्तान आजाद ही था पर आतंक के हाथों गुलाम, मस्जिदों से खुले में घोषणा हुई कि महिलाओं को छोड़कर सभी कश्मीर से चले जाए, उसके 30 वर्षो तक किसी ने मुंह नही खोला, किसी सत्ताधारी पार्टी ने कभी कश्मीरी पंडितों और कश्मीर के वाशिंदों के लिए कोई दुख प्रकट नहीं किया, आए दिन नागरिक बरसी बनाते, दुख प्रकट करते… पर कोई समाधान ना सरकार के हाथो में था और ना ही किसी व्यक्ति के हाथ में, जम्मू के लाल चौक को तो जैसे लाहौर में है ऐसे प्रस्तुत किया जाता रहा, हिंदुस्तान में होने के बावजूद भी लाल चौक पर तिरंगा फहराना जैसे मौत को बुलावा देने के बराबर था

फिर राजनीति में एक नया दौर आया और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री श्री अमित शाह के नेतृत्व में धारा 370, 35A हटी और फिर एकबार खुशहाली के आसार नजर आने लगे और लगने लगा कि सेना के इतने त्याग और बलिदान के साथ साथ कश्मीर से लौटे नागरिकों के लिए ये सुखद अनुभूति रहेगी, भावनाओ से अपनी मातृभूमि से जुड़े कश्मीर से भगाए गए बंधुओ ने 2020 में कश्मीर वापिस लौटने की इच्छा जताई, वर्तमान सरकार ने हजारों की संख्या में कश्मीर के मूल निवासी लोगो को बसाना शुरू किया और हजारों परिवारों को वापिस जमीन और खुला आसमान कश्मीर ने दिया, पर अब 31 साल के पुराने इतिहास और 2 साल के नए कानून के बाद अब कहीं ना कहीं फिर कुछ इतिहास दोहराने की तैयारी आतंकवादियों और स्थानीय राजनीतिक दलों हो रही है और पिछले महीने भर में ऐसी वारदात को अंजाम दिया जा रहा जिसमे डर का माहौल बने, मजहब पूछकर और पहचान पत्र देखकर मारना कहीं एक बार फिर कश्मीर की घाटी को रक्त रंजित करने का ही इशारा है बस तरीका नया है और मौत और डर का मंजर वही जो 1990 के समय था…

पिछले एक महीने में डर के इस माहौल में एक बार भी आजाद हिंदुस्तान में अपनी ही जमीन पर से 1400 से ज्यादा विस्थापित परिवारों को पलायन करना पड़ रहा, सपनों के साथ बसाए अपने आशियाने को छोड़ना पड़ रहा और सफलता से सुरक्षित जगह आ जाने को ही जीत समझ रहे पर अब ऐसा लग रहा कि हमे सेना को बॉर्डर पर नहीं बल्कि कश्मीर के अंदर पल रहे इन गद्दारों के खिलाफ खड़ा करना पड़ेगा, कश्मीर और कश्मीरियत के नाम पर हिंदुस्तान को खंडित करने व तिरंगे को खून से लाल करने की साजिश को तोड़ना होगा, ये तभी संभव होगा जब सरकारें अपने कानून के साथ सख्ती से पेश आए और मानवाधिकार वालों के मुंह में कपड़ा ठुसकर खुले में एक एक कर चुन चुन कर इस साजिश में शामिल लोगो को मौत के घाट उतारे, तभी आम लोगो का भरोसा कायम रहेगा, इस बार स्थानीय लोगो का कश्मीर छोड़ना साफ साफ इशारा है कि हिंदुस्तान कश्मीर को नही संभाल सकता और आतंकवादी संगठन को हावी होने दे रहा इसलिए गंभीरता से सरकार को आगे आकर कुछ ऐसा बड़ा ऑपरेशन करना चाहिए जिससे हिंदुस्तान के स्वर्ग कश्मीर को दुबारा खून से लथपथ होने से बचाया जा सके।

इस बार का परीक्षण आने वाले 50 वर्षों तक डर बनाए रखेगा, 2/3 पीढ़ियों का दौर गुजर जाएगा डर के इस सितम में, अब मौका है कश्मीर से गन्दगी साफ करने का, आतंकवादियों ने उस समय भी बहुत बड़ा नुकसान किया था और आज भी बड़ा नुकसान कर रहे, कश्मीर में सिर के बदले सिर नहीं बल्कि हर उस सिर को काटना होगा जो तिरंगे के खिलाफ उठे और हर उस आंख को फोड़ना होगा जो हिंदुस्तान के खिलाफ लाल आंख करे। भारतीय सेना व केंद्र सरकार के ऐसे कड़क फैसले का इंतजार रहेगा और भरोसा है ऐसा ही कठोर कदम उठाया जाएगा ।।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.