अरुण आनंद

एक चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन में, एथेंस (ग्रीक) आधारित थिंक टैंक- रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर यूरोपियन एंड अमेरिकन स्टडीज (आरआईईएएस) ने एक रणनीतिक रिपोर्ट में तुर्की और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के बीच एक गठजोड़ के माध्यम से वैश्विक मीडिया में एक खास किस्म के विमर्श को स्थापित करने के प्रयासों का का खुलासा किया है।

रिपोर्ट के अनुसार, “… तुर्की सरकार के स्वामित्व वाली प्रमुख समाचार एजेंसियां बड़ी संख्या में पाकिस्तानी और भारतीय कश्मीरी पत्रकारों की भर्ती कर रही हैं ।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की की खुफिया एजेंसी एमआईटी पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर तुर्की की सरकारी एजेंसी तुर्की रेडियो और टेलीविज़न (टीआरटी) और अनादोलु एजेंसी के साथ दुष्प्रचार का एक नया नेटवर्क तैयार कर रही है ।

प्रोपेगैंडा के लिए एक यह पूरा समूह एक क्रमिक प्रक्रिया के माध्यम से गठित किया गया है। यह सब तब शुरू हुआ जब 2013-14 में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान ने दुनिया भर के मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने की अपनी महत्वाकांक्षा पर अमल करने की कवायद शुरू की। इसके लिए एर्दोगन शासन ने टर्की यूथ फाउंडेशन (टीयूजीवीए) नामक संगठन को को विश्व स्तर पर अपनी छवि को बढ़ावा देने के लिए एक प्रचार टीम बनाने का निर्देश दिया। यद्यपि यह टीम “तुर्क राष्ट्रवाद” और एर्दोगन को अपने नेता के रूप में स्थापित करने में सफल रही लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एर्दोगन को स्थापित करने में अक्षम साबित हुई।

तब एक संयुक्त पहल के माध्यम से पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई की प्रोगैंडा शाखा आईएसपीआर से मदद लेने के लिए एर्दोगन द्वारा एक नई योजना तैयार की गई। टीआरटी को इस गुप्त अभियान के लिए के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया। टीआरटी वर्ल्ड ने 2015 में पाकिस्तान में एक भर्ती अभियान शुरू किया। इसके तहत पाकिस्तानी नागरिकों की सीधे भर्ती की गई।

तुर्की की प्रेस में भी इस बारे में कई खबरें व आलेख छपे हैं जिनके अनुसार तुर्की पाकिसतानी गुप्तचार एजेंसी आईएसआई के अनुरूप काम करने वाले पत्रकारों को अपने यहां की सरकारी एजेंसियों में भर्ती कर रहा है। तुर्की का सपना है कि खलीफी के शासन में एक इस्लामी राज्य स्थापित किया जाए। इसी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए इन पत्रकारों की भर्ती की जा रही है।

लेकिन यह कोई नई शुरूआत नहीं है। एर्दोगान ने इस दिशा में शुरूआती कदम तब बढ़ाया था जब उसने तुर्की के इलेक्ट्रानिक संचार केंद्र को एमआईटी को दे दिया था। इस संदर्भ में एक घटनाक्रम दिलचस्प है। तुर्की में पाकिसतान के राजदूत सज्जाद काज़ी तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसी अनादोलु के कार्यालय में 30 नवंबर 2020 को गए थे। वहां उन्होंने जो चर्चा कि उनका निष्कर्ष यही था कि फ्रांस के बहिष्कार तथा कश्मीर मे भारत विरोधी अभियान को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया जाए। इस बात की अब ठोस जानकारी है कि अनादोलु के विदेश मामलों के संपादक फारुक तोकत व अंग्रेजी समाचार डेस्क की कार्यकारी संपादक सातुक बुगरा कुल्त्गुन ने इस संदर्भ में राजदूत को एक विशेष ब्रीफिंग दी।

अब सवाल ये है कि इस प्रोपेगैंडा को फैलाने वाले जिन पत्रकारों को बतौर ‘सूचना योद्धा’ इस अभियान के लिए भर्ती किया गया है, वे कौन हैं?

रिपोर्ट के अनुसार, अकेले टीआरटी वर्ल्ड ने 300 से अधिक कर्मचारियों के अपने स्टाफ में से कम से कम 50 पाकिस्तानियों को नियोजित किया है। इनमें बड़ी संख्या में इस्तांबुल में स्थित संवाददाता, संपादक व अन्य पत्रकार हैं । इनमें भारत में कश्मीर के कुछ पत्रकार भी हैं। इनकी सूची व नाम इस रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से उजागर किए गए हैं।

रिपोर्ट में दिए गए विश्लेषण ने खुलासा किया कि टीआरटी वर्ल्ड ने कम से कम 31 लेखों में हागिया सोफिया को एक राष्ट्रीय स्मारक से एक मस्जिद में बदलने के एर्दोगन के फैसले की प्रशंसा की। इसी तरह, सऊदी अरब के विरोध में तथा यमन संकट पर कम से कम 972 समाचार व विश्लेषण टीआरटी वर्ल्ड । कुछ लेखों में, टीआरटी वर्ल्ड ने खुले तौर पर सउदी अरब और यूएई पर तुर्की की प्रतिष्ठा में सेंध लगाने का आरोप लगाया है। गौरतलब है कि इस्लामिक जगत में तुर्की व सउदी अरब के बीच इस बात का संघर्ष चल रहा है कि इस्लामिक जगत का नेतृत्व कौन करेगा।

टीआरटी वर्ल्ड ने 30 से अधिक विस्तृत समाचार फीचर जारी किए जो भारत में धारा 370 के संशोधन सं संबंधित थे। इन आलेखों में भारत की कड़ी आलोचना की गई। इनमें से ज्यादातर की सिफारिश पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने भी सार्वजनिक तौर पर की थी।

इस रिपोर्ट के अनुसार बड़ी संख्या में ऐसे समाचार अंतरराष्ट्रीय जगत में भेजे जा रहे हैं जिन पर किसी लेखक का नाम नहीं है और उनके माध्यम से तुर्की व इस्लामी कट्टरवाद के एक नए स्वरूप को विभिन्न मीडिया संस्थानों व पत्रकारों के माध्यम से स्थापित किया जा रहा है। ये समाचार व आलेख उन्हीं पत्रकारों द्वारा लिखे जा रहे हैं जिन्हें तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसियों ने पाकिस्तान व कश्मीर से भर्ती किया है। इस नए अंतराष्ट्रीय षड्यंत्र में तुर्की और पाकिस्तान भागीदार हैं। इसका खुलासा होना भी जरूरी है और इससे सावधान रहना भी आवश्यक है।

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