विष्णु तिवारी उस वक्त महज 18 वर्ष का था जब उसे हरिजन एक्ट और रेप के झूठे मुकदमे में फंसाया गया। पुलिस की विवेचना रिपोर्ट के बाद सेशन कोर्ट ने वर्ष 2000 में विष्णु को अजीवन करावास की सजा सुनाई थी।
सजा के बाद सामाजिक रूप से तिरस्कार मिलने का सदमा परिवार झेल नहीं पाया। माता-पिता और दो भाइयों की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई। इस दौरान किसी एक की भी अर्थी को कंधा देने के लिए निर्दोष विष्णु को उसी देश में एक बार भी बेल नहीं मिली। जिस देश में राजनेताओं और सेलिब्रेटिज को मामूली बुखार पर महीनों बेल मिल जाती है।


इस झूठे आरोप पर विष्णु का केवल परिवार ही नहीं बल्कि इस कानूनी लड़ाई में उनकी 5 एकड़ जमीन भी बिक गई। इतना सब खोने के बाद विष्णु को 20 साल बाद हाईकोर्ट से न्याय मिला। अब झूठे हरिजन एक्ट और रेप के मुकदमे में विष्णु निर्दोष साबित हुए हैं।
दरअसल जांच में मालूम चला कि तत्कालीन अधिकारी ने झूठी विवेचना दिखाकर जेल भेजा था और फिर विष्णु को आजीवन कारावास की सजा हो गई. एक झूठ और दुरुपयोग किए जाने वाले एक्ट ने न जाने कितने विष्णु की जिंदगी बर्बाद कर दी। फिर भी हम ऐसे कानूनों के संसोधन की मांग पर भारत बंद का आह्वान कर देते हैं।
विष्णु जैसे हजारों बेगुनाहों का कोई मानवाधिकार नहीं? ऐसा नहीं है कि केवल हरिजन एक्ट का ही दुरुपयोग हो रहा बल्कि सरकार भी बेबुनियाद आरोप को सही साबित करने के लिए कानूनों का दुरुपयोग करती आ रही है। जिस देश की जेलों में आरोपियों से ज्यादा निर्दोषों की संख्या है, वहां क्या ही सुधार की गुंजाइश की जाए?

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.