2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद जो हिंसा हुई थी उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. आये दिन लूटपाट, हत्या, आगजनी, दुष्कर्म की खबरें सामने आ रही थी. लेकिन जैसी तस्वीरें 2021 में चुनाव के नतीजों के बाद सामने आयी थी 2023 के पंचायत चुनावों में भी हालात उससे अलग नहीं हैं.
पंचायत चुनावों के दौरान जिस तरह से हिंसा हुई और बूथ लूटने की कई घटनाएँ सामने आईं, वो दौर काउंटिंग के बाद भी बंद नहीं हुआ. कुल मिलाकर बंगाल पंचायत चुनाव में हुई हिंसा ने देश को एक बार फिर लज्जित करने का काम किया है. जो सीधे-सीधे राज्य में कानून का शासन ध्वस्त होने का सूचक है. तभी तो पंचायत चुनावों के दौरान यहां वोटिंग के दिन मतपत्र ही नहीं, मतपेटियां भी लूटी गईं। उन्हें सीवर, नालों, तालाबों में फेंका गया या फिर जला दिया गया। इसके अलावा मतदान अधिकारियों से मतपत्र छीनकर उनमें अपने प्रत्याशियों के पक्ष में मुहर लगाते हुई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए. मतदान अधिकारी असहाय होकर लोकतंत्र को कलंकित करने वाली इस अराजकता को देखते रहे। उनके सामने कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि मतदान केंद्रों में या तो पुलिस थी ही नहीं या फिर वह निष्क्रिय थी। पंचायत चुनाव के दौरान कई जगहों पर बम और गोलियां चलीं। कई लोगों की जान चली गयी. लेकिन राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह रही हैं कि हमारे लोग भी मारे गए. लेकिन ममता सरकार यह कहकर नहीं बच सकती कि हिंसा में उनकी पार्टी के लोग भी मारे गए हैं, क्योंकि हिंसा रोकने की जिम्मेदारी उसी की होती है, जो सत्ता में होता है। और इस समय बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी सत्ता में है.
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा और मौत का ‘खेला’ चल रहा है. बंगाल में जब भी कोई भी चुनाव हो उस दौरान वहां के लोगों को अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ता है. क्योंकि उन्होंने ममता दीदी की पार्टी को वोट ना देकर किसी और पार्टी को वोट दिया. हर बार चुनाव के बाद वहां के लोगों को घर–बार छोड़कर पड़ोसी राज्यों में पलायन करना पड़ता है. एक बार फिर पंचायत चुनाव के दौरान भी 150 शरणार्थी असम पहुंचे हैं. पंचायत चुनाव के कारण हिंसात्मक घटनाओं की वजह से डरे-सहमे लोग असम के धुबरी ज़िले पहुंचे हैं. जहां पर असम सरकार की तरफ से बनाए गए रिलीफ कैंप में 100 से ज्यादा लोग रह रहे हैं.
इतिहास के पन्नों को पलटे तो पता चलता है कि चुनावी हिंसा के मामले में बंगाल आज भी वहीं खड़ा है, जहां तब था, जब वहां वाम दल शासन करते थे. वाम दलों को हटाकर सत्ता में आईं ममता बनर्जी ने उनसे सबक सीखने के बजाय उन्हीं के तौर-तरीके अपना लिए। जिस कारण बंगाल में लोकतंत्र हर चुनाव में बार-बार रक्तरंजित होता है.
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