मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या धाम में हर वर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ‘विवाह पंचमी’ का पर्व मनाया जाता है।
त्रेता युग में इसी तिथि को रघुकुल नंदन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का विवाह माता जानकी के साथ संपन्न हुआ था। सनातन संस्कृति के अनुरूप धर्म नगरी अयोध्या में आज भी यह परंपरा का ठीक उसी तरह निर्वाह किया किया जा रहा है। जैसे त्रेता युग में चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ ने अपने जेष्ठ पुत्र श्री राम का विवाह किया था। ठीक उसी तरह आज भी अयोध्या के मठ मंदिर को सजाया और संवारा जाता है। फूल-बंगलों की झांकी लगाई जाती है। जगह जगह रामचरितमानस का पाठ, वैवाहिक गाली-गीतों का गान और अयोध्या के मठ मंदिरों की दीवारों पर दीपमालाओं की श्रृंखलाएं अलौकिक छटा को बिखेरतीं हैं। अयोध्या धाम के हर एक दीवारों पर जगमगाते दीपदान, आपको राम विवाह की मनमोहक छटा का स्मरण कराते, जगमगाते दियो की लौ आपको त्रेता युग के राम विवाह के उस अद्भुत काल की सजीव,सचित्र अनुभूति कराते हैं। जिसकी आप मात्र कल्पना कर सकते हैं।
अयोध्या धाम में इस बार राम विवाह का महोत्सव और भी अद्भुत इसलिए है क्योंकि 500 वर्षों के बाद विवादित राम जन्मभूमि पर कोर्ट के फैसले के द्वारा भव्य राम मंदिर का निर्माण आरंभ हो गया है। लिहाजा राम भक्तों के लिए राम विवाह के उत्सव का रंग और भी गाढ़ा हो गया है। अयोध्या के प्रत्येक मठ मंदिरों में राम विवाह उत्सव की तैयारियां सप्ताह भर पहले से ही शुरू हो जाती हैं। अद्भुत माहौल होता है अयोध्या में। मठ मंदिरों के संत और महंत राम विवाह के महोत्सव पर दो अलग-अलग किरदारों में नज़र आते है, पहले जो बाराती बनते हैं, जो दूल्हे वाले होते हैं और दूसरे जो घराती होते हैं, जो माता जानकी की तरफ से बारातियों की सेवा में लगते हैं। सखी प्रथा और दास से जिन्हें संबोधित किया जाता है। सखी प्रथा के संत महंत अपने नाम के पीछे सरण(सर नेम) को लगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता जानकी का विवाह हुआ था तो माता सीता के साथ अयोध्या में उनकी सेवा में जनकपुर से जो लोग आए थे, वही साधु संत आज सखी प्रथा के माने जाते हैं। अयोध्या में कई ऐसे प्रमुख स्थान हैं, जहां पर सखी प्रथा के द्वारा ही पूजन अर्चन किया जाता है। इसका बड़ा उदाहरण आपको कनक भवन में देखने को मिलेगा जहां माता जानकी के साथ भगवान राम विराजमान हैं। कनक भवन की पूजा पद्धति पूर्णता सखी प्रथा की है। भगवान राम के जन्म स्थान और जिन-जिन स्थानों पर ठाकुर जी की पूजा प्रथम होती है, उन मठ मंदिरों पर मौजूद संत महंत अपने नाम के पीछे दास शब्द को लगाते हैं। जो ठाकुर जी की सेवा में लगे होते हैं।
तिथि के अनुसार आज का दिन विवाह पंचमी का है। आज मैं अयोध्या में हूं और अद्भुत नजारे को देख रहा हूं। दशरथ महल के मुख्य द्वार पर खड़ा होकर मैं इस अद्भुत नजारे को अपने हृदय में सुसज्जित कर रहा हूं। यकीन मानिए ऐसा नजारा शायद ही कभी आपको कहीं और देखने को मिलेगा दशरथ महल में अंदर जाने वाले और महल से बाहर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति साधु संत के चेहरे पर एक अलग ही प्रफुल्लिता दिखाई दे रही है साधु संतों की टोली राम धुन और तरह-तरह के वैवाहिक गीतों को अपना सुर दे रही है। उनके मुख से निकले हुए गीतों के तरंग मेरे कानों से होते हुए हृदय तल की गहराइयों में मिलो दूर तक एक अद्भुत संसार को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। सच मानिए यह एक अद्भुत अनुभूति है जैसा पहले कभी न हुआ हो। साधु संत एक दूसरे को पुष्प की मालाओं का आदान प्रदान कर रहे हैं, मुस्कुरा रहे हैं, गले लगा रहे हैं और राम विवाह के उत्सव में रमते हुए चले जा रहे हैं मंदिरों में हलचल बहुत तेज है। कोई संत किसी संत से नाराज हो जा रहा है और चेलों को डांट भी पड़ रही है कि जल्दी करो, यहां क्यों खड़े हो, यह काम अभी नहीं हुआ, समय हो गया है बारात निकालनी है, देर हो जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे हमारे और आपके घर में किसी लड़के के विवाह के दिन हड़बड़ी का माहौल बना रहता है। महलों के बाहर रथों को पुष्प की मालाओं से सुसज्जित किया जा रहा है। भयंकर ठंड का माहौल है। फिर भी अयोध्या वासियों के उमंग में किंचित भी ख़लल नहीं डाल पा रही है ठंड। मेरे हृदय में जिज्ञासाओं का सैलाब उमड़ पड़ा है, जैसे अभी-अभी बोलने वाला बालक अपने मां-बाप से हर एक चीज के विषय में बार-बार पूछता है कि यह क्या होता है और इसका क्या मतलब होता है। ठीक उसी स्तर पर मेरी जिज्ञासाओं ने अपना डेरा जमा लिया है और मैं प्रत्येक साधु संतों से हर एक विषय में पूछताछ करता हुआ एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक अपनी यात्रा को धार देता चला जा रहा हूं क्योंकि शाम का वक्त है और पारा लगभग 4 से 6 डिग्री के बीच में चल रहा है। इससे पहले इतनी ठंडी का सामना मुझसे नहीं हुआ था क्योंकि इससे पहले मैं उड़ीसा में रहता था। वहां ठंड नाम मात्र की होती थी तो यह ठंड बड़ी मजेदार लग रही थी बारात निकलने का समय लगभग हो चुका है। दर्जनों मंदिरों से बारात को निकाला गया है। बैंड बाजा रोड लाइट के बीच में गीतों की धुन पर थिरकते साधू सन्यासियों के ऊपर अयोध्या वासी पुष्प वर्षा कर रहे हैं। पुष्प वर्षा के साथ मंदिरों से राम बारात को विदा किया जा रहा है। भगवान राम का विवाह पूरे रीति-रिवाज और पारंपरिक तरीके से संपन्न कराया जा रहा है। बरात सबसे पहले नगर भ्रमण पर निकल चुकी है जिस को पुनः राम जन्मभूमि तक वापस लाया जाएगा।
फिर मिलते है एक नए अनुभव के साथ!
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