रोज की तरह आज भी मैं पार्क की कोने वाली बेंच से बच्चों को झुला झुलते देख रहीं थीं। अचानक २५-२६ साल की एक लड़की घबराई सी सहमी सहमी हुई वहां आई ।
मेरे पास आकर बोली आंटी मैं यहां बैठ सकतीं हुं? मैंने हाँ में सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी।मेरे से थोड़ी दूरी कायम करते हुए वो बैठ गई। लड़की ने इधर उधर नज़र घुमाई, फिर अपने पर्स से रुमाल निकाला और चहेरे पर आई पसीने की बुंदे पोंछने लगी। मुझसे रहा नहीं गया,पुछंबैठी बेटी कोई परेशानी है ? नहीं आंटी ऐसी कोई बात नहीं। कहकर हल्की सी मुस्कुरा दी। मैं भी मुस्कुराई। ५ – ७ मिनट बाद लड़की दबे लफजो में बोली अभी-अभी लड़के वाले मुझे देखने आएंगे।थोड़ी नर्वस फिल कर रही हुं। मैं यहां सर्विस करती हुं। मेरे मम्मी-पापा दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने ही मुझे यहां विकास के परिवार वालों से मिलने के लिए कहा। कहते कहते मेरा हाथ पकड़ कर डबडबाई आंखों से बोली आंटी इस समय घरवालों का साथ होना चाहिए। मैंने धीरे से कहा कोई बात नहीं मैं हूं ना ।
मैं लड़की का नाम पुछती उसके पहले ही उसने कहा लगता है आंटी वो लोगआ गये। सामने से आते हुए नौजवान ने मेरे पैर छुए। और थोड़ा पीछे मुड़कर कहा ये मेरे मम्मी-पापा है। अनायास ही मैं खड़ी हो गई अपने हाथ नमस्ते के लिए उठाए। लड़की ने शिष्टाचार निभाते हुए बिकास के माता-पिता के पैर छुए और बैंच की तरफ़ इशारा करते हुए बैठने के लिए बोली। मैं भी जल्दी से बोली बैठिए। मेरा हाथ पकड़ बिकाश की मम्मी नेअपने पास बिठाया। अपने दांई ओर अपने पति देव को बैठने बोल मेरी ओर देखने लगी ।मै समझ गई जगह कम है, मैं सहज ही थोड़ी सी बैंच के किनारे आ गई। विकास के पापा बैठते हुए आंखों से कृतज्ञता प्रकट किए मै भी हल्की सी मुस्करादी। बिकास के पिता ने किसी तरह की भुमिका नहीं बनाते हुए कहा मिनी बेटा तुम्हारा बायोडाटा, फोटो दोनों ही हमे बहुत पसंद आया।
अच्छा, तो लड़की का नाम मिनी है ।बस अब जाओ तुम दोनों आपस में बातचीत करो। मैं मन ही मन मे बड़बड़ाई मिनी,प्यारा नाम है। बिकास की माताजी मेरी तरफ़ देख रही थी। जैसे मेरी इजाज़त मांग रहीं हों। मै अनायास ही बोल पड़ी जरुर जीवन तो इन दोनों को ही संग बिताना है एक दूसरे को समझ लेना ही सही रहेगा। जैसे विकास मेरे हाँ सुनने की ही प्रतिक्षा कर रहा था। मिनी ने मेरी तरफ़ ऐसे देखा मानों मेरी आज्ञा के बिना एक क़दम नहीं उठाएगी।
मैंने घबरा कर गर्दन हिला कर हामी भरी। मैं सोच में पड़ गई यह क्या हो रहा है। मेरे लिए लड़की ,लड़का ओर उसके घरवाले सभी अनजान है। मुझे इनलोग के मामले में बोलने का क्या अधिकार है? मैं बताना चाहती थी कि मेरा और मिनी का कोई रिश्ता नहीं है । मैं मिनी की माँ नहीं हुं, कुछ कहती उसके पहले ही विकास की माँ ने कहा कल रात मिनी की मम्मी का फोन आया ।अचानक मिनी के पापा की थोड़ी तबियत बिगड़ गई । इस कारण वो लोग नहीं आ पाए। लड़की को बस नज़र भर देखनी था।
आजकल लड़कियां पड़ी लिखी होती है,बाहर कामकाज करती हैं, उन्हें दुनिया के भले बुरे की पहचान है। अब तो लड़का-लड़की के पसंद पर ही बाते तय होती है। विकास की माँ ने कहा मेरा संबंध मेरे दादाजी ने तय कियाथा । मैं तो शादी के वक्त ही पहली बार घुंघट से इनको थोड़ा बहुत देखी थी। अब कितना समय परिवर्तन हो गया। मैंने धीमे स्वर में कहा वह तो है। आज कल लड़की भी पढ लिख कर आत्मनिर्भर हो रही है।
अतीत की बातों का ओर भी आदान-प्रदान होता सामने खड़े मिनी एवं बिकास पर मेरी नज़र पड़ी। दोनों का खिला खिला चेहरा शुभ संकेत दे रहा था।
मम्मी ,विकास ने कहा ,पापा कहां है?
हम दोनों ने एक साथ नजर घुमाई बगल की जगह ख़ाली थी। विकास ने हंसते हुए कहा लगता है पापा आप लोगों के साथ बोर होने लगे। इसलिए पार्क में टहल रहे होंगे। कहते हुए एक ओर चला गया। विकास की माँ ने मिनी को अपने पास बैठाया और मिनी के परिवार,आफिस, दोस्त, रिश्तेदार, दैनिक जीवन शैली, यहां तक पसंद- नापसंद सभी के बारे में पुछा । मिनी बड़े समझ और प्यार से हर बात का जवाब दे रही थी। मैं उन दोनों के बीच अपने को थोड़ा असहज महसूस कर रही थी।
बिकास ओरअसके पापा आते दिखाई दिए। बिकास की मम्मी ने जाने के लिए मुझसे इजाज़त मांगी। बिकास ने कहा मम्मी नजदीक में एक रेस्टोरेंट हैं वहां के छोलाभटुरा बहुत प्रसिद्ध है। मैंने अपने दोस्तों के संग खाया था। विकास की मम्मी ने हंसते हुए कहा ठीक है मिनी तुमभी चलो। आइए बहनजी, कहकर मेरी तरफ़ भी नजर घुमाई। मैं? नहीं नहीं। मिनी ने हाथ पकड़ कर कहा चलो ना आंटी। नहीं बेटा तुमलोग जाओ।अब अंकल भी सैर करके आनेवाले हैं। मैं थक जाती हुं चल नहीं पाती , इस लिए मै यहां बैठ जाती हुं, अंकल टहलने निकल जाते हैं। मिनी ने जाते जाते पिछे मुड़कर कहा आंटी कल इससमय मैं आपसे मिलुगी।
मैं मिनी को जातें देख रही थी।मै सोच में पड़ गई यह मिनी कौन है? नवीन की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया। किसको देख रही हो। चलों घर, फिर अधेंरे में तुम्हें चलने में दिक्कत होगी। मैं चुप थी क्या यह कोई सपना था?
बार-बार पार्क की घटना मेरे अंदर हलचल मचा रही थी। हजारों सवालों के बीच मैं बैचेन हो रहीं थीं। ठीक से खाना भी नहीं खाया । नवीन सब बातों से अनजान थे। बिस्तर में सोने की कोशिश कर रही थी, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी। नवीन के खरांटो से ईर्ष्या हो रही थी। काश मैं भी आराम से सो सकती। इसी कशमकश मे कब आंखें लग गई पता ही नहीं चला। सुबह नींद खुली तो देखा ६ बज गए आज तो भी योगा छूट गया । उठने में देरी होगइ, पुजा भी करनी है। पुजा करते वक्त मन में बार-बार कल की बातें हलचल मचा रही थी।
मैं अपने निर्धारित समय पर पार्क में मिनी का इंतजार कर रही थी।समय जैसे ठहर सा गया। बार-बार घड़ी देख रहीं थीं , सोच रहीं थीं मिनी आयेगी?
तकरीबन आधे घंटे बाद मिनी आई। मेरे गले लग कर बोली आंटी कल आप ने सब सम्भाल लिया। मैं तो नर्वस हो गई थी। फिर अपने मोबाइल से फोन लगाकर बोली मम्मी आपसे बात करेंगी।
मैं कुछ कहती उसके पहले ही मेरे हाथ में मोबाइल थमादी। दुसरी ओर से आवाज आई मैं मिनी की माँ बोल रहीं हुं। आपने हमलोग के लिए जितना किया उतना तो कोई अपना भी नहीं करता। पता नहीं और किया क्या क्या बोल रहीं थीं। मैं बुत बनी सुन रही थी। हूं, हां करके मैंने मिनी को मोबाइल थमादीया । मिनी अपने माता-पिता, भाई-बहन सबके बारे में बताने लगी। मैं चुपचाप सुनती रही। आंटी मेरी शादी अगले महीने होने वाली है। आपकों अंकल के साथ दिल्ली आना होगा। मैं सोच में पड़ गई कितनी सरल मन की है। एक ही मुलाकात में मुझे अपना समझ शादी में आने का न्योता भी दे दिया।
मिनी एक बात पुछुं ?
बोलो ना आंटी क्या?
सच बोलोगी?
अपनों से झुठ नहीं बोला जाता।
मैं मिनी का चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रही थी। क्या विकास के घर वालों ने मेरे बारे में कुछ पुछा नही? असल में मेरे पापा के जान-पहचान वाली एक आंटी बगल में रहती है। कल उन्हें विकास के परिवार वालों को अटेंड करना था। पर अचानक उनके घर कुछ रिश्तेदार आने की वजह उन्होंने आने से इन्कार कर दिया। पापा परेशान होंगे जान मैंने कुछ बताया नहीं। आपकों ही विकास मेरी आंटी समझ बैठे। तब तो मिनी बेटा यह उनलोगो के साथ धोखाहुआ। नहीं आंटी मैं विकास को सच बता दीथी। विकास ने रेस्टोरेंट में अपने माता-पिता को आपके बारे में सब बता दिये। वो लोग आपकी काफी तारीफ कर रहे थे। ठीक है बेटा जबभी मेरी याद आए,यह मेरा नम्बर है बात कर लेना। अब तो आप मेरी पक्की आंटी बन गई। मिनी का बचपना देख मैं हंस पड़ी।यहां से मेरा ओर मिनी का एक अनोखा रिश्ता बन गया। अब मेराऔर मिनी का मिलना रोज़ की रुटिन का हिस्सा बन गया।
मिनी की शादी हो गई।
समय पंख लगाकर उड़ ने लगा।
मिनी की शादी में ढलती उम्र की वज़ह दिल्ली जाना नहीं हुआ। अब मिनी से रोज़ मिलना नहीं होता। ससुराल थोड़ी दुर पर है । फिर मिनी अपने आफिस के साथ साथ एक सफल गृहणी बनने की कोशिश कर रही हैं।
रोज न सही फिर भी मिनी के ससुराल वालों के साथ मेरा आना जाना बना रहा। अब मिनी एक बेटे की माँ भी है। मिनी को अकेले देख मैं कुछ पुछती उसके पहले ही मिनी ने कहा आंटी आज मैं सोमु को घर छोड़कर आई हुं, ताकि पार्क में बैठ सकु। नहीं तो सोमु दो मिनिट भी चैन से बैठने नहीं देता। विकास आफिस के काम से बाहर गए हैं। ठंड का मौसम में हल्की धूप ओर मिनी के साथ पार्क का आनंद ही कुछ और था। इधर- उधर की बातें होने लगी। मिनी ,ससुराल में एडजस्ट हों गई?
हाँ आंटी।
मैं बोली आज कल की लड़कियां सांस के साथ रहना थोड़ा कम ही पसंद करती हैं। आंटी शुरू में मुझे भी थोड़ी तकलीफ़ हुई पर मम्मी ने समझाया तेरी सांस तेरे पति की माँ है। इस रिश्ते से वह तेरी भी माँ है। दोनों माँ को ही तेरी जरूरत है ।यह तेरा मायका है यहां तु नाज़ुक कली है । ससुराल तेरा घर है वहां तुझे जिम्मेदारी निभानी है। ससुराल में बेटी नहीं, बहु बनकर रहना,सभी के दिलों में राज करना। ससुराल को उनके रीति रिवाज के साथ अपना मानलो, फिर तुम्हें किसी से कोई शिकायत नहीं रहेगी।
मैं चुपचाप मिनी को देख रही थी। क्या देख रहीं हों आंटी? मिनी तु कितनी समझदार है।
नहीं आंटी ऐसी बात नहीं। मैं यह समझ गई झुक कर ही कुछ उठा सकते हैं। झुकना हारना नहीं बहूत कुछ पाने का नाम है। बातों बातों में आंटी समय का पता नहीं चला।
मिनी का हाथ अपने हाथ में लेकर मैं उदासी से बोली फिर कब आओगी? पता नहीं,पर फोन से बात करुंगी। मिनी तेरा मेरा कौन से जन्म का रिश्ता है।दो साल पहले तों हम एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे।पर अब तु बेटी ,बीच में ही मिनी टोकते हुए बोली आंटी कुछ रिश्ते का कोई नाम नहीं होता।
यह अनोखा रिश्ता है।
मैं मिनी को जाते हुए देख रही थी। प्रभु तुने औलाद के सुख से वंचित रखा ,पर मिनी को भेजा तेरा लाख लाख शुक्रिया।
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