इस समय यदि पाकिस्तान के अलावा किसी की किस्मत सबसे ज्यादा खराब है, तो वह है शिवसेना। सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को बिना किसी ठोस प्रमाण के जेल में ठूँसने के लिए महाराष्ट्र सरकार को खरी-खोटी सुनाई, अपने बड़बोले प्रवक्ता संजय राऊत के कारण शिवसेना पूरे देश में हंसी का पात्र बनी हुई है और अब वह बहुत जल्द ही अपने प्रिय खजाने से भी हाथ धोने जा रही है, यानि अब जल्द ही BMC शिवसेना के हाथ से निकलने वाला है।

बृहन्नमुंबई नगर महापालिका यानि BMC पर कई वर्षों से शिवसेना का एकछत्र राज है। इससे मिलने वाले राजस्व पर शिवसेना का अधिकार रहा है और अगर BMC को शिवसेना का अनाधिकारिक धन स्त्रोत कहा जाए तो गलत नहीं होगा। लेकिन अब स्थिति पहली जैसी बिल्कुल नहीं रही है, और यह शिवसेना के मुखपत्र सामना के एक लेख से साफ झलक रहा है, जहां शिवसेना ने भाजपा को उसे सत्ता से हटाने की चुनौती दी है।

अब 2022 में जब BMC के चुनाव होंगे, तो उनमें शिवसेना के लिए अपनी कुर्सी बचाना बहुत मुश्किल होगा। BMC में 227 सीटें हैं, जिनमें से बहुमत हेतु 114 सीटें चाहिए होती है। 2017 में शिवसेना को 85 सीटें मिली और वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, परंतु वह पूर्ण बहुमत के आँकड़े से दूर रही। यदि उसे भाजपा का साथ न मिला होता, तो कई वर्षों से BMC पर शिवसेना का एकाधिकार 2017 में ही समाप्त हो जाता।

लेकिन वर्तमान समीकरण देखते हुए ऐसा तो बिल्कुल नहीं लगता कि शिवसेना को इस बार BMC में वापसी नसीब होगी। एक ओर जनता शिवसेना की दिन प्रतिदिन बढ़ती गुंडई से तंग आ चुकी है, BMC द्वारा कंगना रनौत के ऑफिस गिराए जाने और दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव और कद, जो पिछले कई वर्षों में बढ़ा है। 2012 में बृहन्नमुंबई नगर महापालिका के चुनाव में भाजपा को मात्र 31 सीटें मिली। परंतु 5 वर्ष बाद जब उन्होंने फिर से चुनाव लड़ा, तो न केवल उन्होंने शिवसेना को कांटे की टक्कर दी, अपितु 84 सीटें जीतकर वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भी बनी।

अब भाजपा ने अपना ध्यान मुंबई में अपना जनाधार मजबूत करने पर लगाया है, जिसके लिए किरीट सोमैया जैसे नेता दिन-रात एक कर रहें हैं। जिस प्रकार से शिवसेना और महा विकास अघाड़ी सरकार की गुंडई के प्रति जनता में आक्रोश बढ़ रहा है, उससे स्पष्ट है कि इस समय महाराष्ट्र में भाजपा ही एकमात्र असरदार विकल्प है।

इसके अलावा भाजपा के लिए एक और लाभकारी बात यह है कि 2022 के BMC के चुनाव शिवसेना अकेले ही लड़ेगी, क्योंकि न तो काँग्रेस और न ही एनसीपी शिवसेना के साथ ये चुनाव लड़ने में इच्छुक है। ऐसे में ये लड़ाई चौतरफा हो जाएगी, और जब भी कोई चुनावी संग्राम दोतरफा यानि दो फ्रंट वाली नहीं रहता है, तो उसमें सबसे अधिक फायदा भाजपा को ही होता है, जैसा कि अभी हाल ही में बिहार में देखने को मिला।

जिस प्रकार से शिवसेना का समीकरण इस समय दिखाई दे रहे हैं, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अब वह चाहकर भी BMC में अपनी साख नहीं बचा पाएगी । इसके अलावा जिस प्रकार से भाजपा ने शिवसेना के विरुद्ध माहौल बनाया है, उसे देखते हुए यह स्पष्ट है कि जल्द ही शिवसेना सत्ता के साथ-साथ इज्जत, शोहरत और BMC जैसी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को भी गँवाने वाली है।

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