क्या आपने 70 वर्ष के आरक्षण का आज तक अवलोकन करवाया , इसको किसको ओर कितना फायदा मिला और कितनी योग्यता का हनन हुआ ?? इन सरकारों और नेताओं में 70 वर्ष के आरक्षण की समीक्षा करवाने की हिम्मत नही है ??बांग्लादेश जैसा छोटा अल्पविकसित देश भी आरक्षण हटाकर योग्यता को वरीयता दे रहा है तो हमें इस बीमारी को खत्म करने में क्या समस्या है ??? आखिर 10 वर्षो के आरक्षण को 70 वर्ष तो हो गए 50% से 70% तक ले गए और कितना , क्या चाहते हो…. अब बस भी करो

आरक्षण माँगने वालो की संख्या बहुत ज्यादा है और आरक्षण का विरोध करने वालो की संख्या बहुत कम…सबको आरक्षण चाहिए , किसी के पास पहले से उससे और अधिक चाहिए….और नेता दिला भी रहे है.. कैल्कुलेशन तो देख लेना नेताओ कही 100% से ज्यादा हो जाये… पहले जातिगत आरक्षण दिया , फिर पदोन्नति में आरक्षण दिया , फिर फीस में आरक्षण, चुनाव की सीटो में , फिर SC/ST एक्ट लेकर आएं….फिर SC/ST एक्ट में बिना जांच गिरप्तदारी कानून लेकर आये…..अब मुझे नही लगता जातिगत नीतियों में कुछ बाकी रह गया आजकल जो टीना डाबी सुर्खियों में है , ये वो ही टीना डाबी है क्या जिसने आरक्षण का सहारा लेकर टॉप किया था 195 नम्बर लाकर भी और अंकित श्रीवास्तव जो 230 नंबर लाकर भी फैल हो गया था…

बाबा साहेब ने सिर्फ 10 वर्षो के आरक्षण की बात कही थी ना कि 70 वर्ष…..और ये कहा लिखा था जनरल ओर ओबीसी के बच्चो से ज्यादा फीस लो, पदोन्नति में आरक्षण दो , या सभी नीतियां जाति आधारित बनाओ..सब वोटों के लिए बनता जा रहा है अभी तक जातियो में जनसँख्या आधार पर आरक्षण की बात करने वाले….घुमा फिरा कर वही जातियो पर आ जाते है…अरे भाई क्यो जातियो के आधार पर तुम योग्यता और वास्तविक गरीब को क्यो नही देखना चाहते, चाहे वो किसी भी जाति का हो…एक परिवार में 3 सरकारी नौकरी वाले पहले से है…फिर आरक्षण का फायदा लेकर उसी परिवार का 1 बन्दा और नौकरी पा लेता है…अरे भाई इस प्रकार किस गरीब और योग्यता को फायदा पहुंचा रहे हो..इससे फायदा तो आरक्षित गरीब को भी नही पहुंचा,

हिंदुस्तान की आजादी को आज 70 साल से ज्यादा वर्ष हो चुके हैं संविधान में आरक्षण की व्यवस्था खड़ी की गई थी तब संविधान बनाने वालों तथा लागू करने वालों का इरादा यही था कि जो सच में शोषित हैं पीड़ित हैं और आम सुविधाओं से वंचित हैं उन्हें जाति के आधार पर ऊपर उठाने का मौका मिले परंतु ऐसा नहीं हुआ जो व्यक्ति आजादी के ठीक बाद जाति के आधार पर सत्ता में आया आज भी आजादी के 75 वर्ष बाद उसी के परिवार का सदस्य जातिगत आरक्षण का फायदा लेकर सत्ता में का बीज है पहले पैदा होते ही जीवन यापन के लिए जाति प्रमाण पत्र को दिखाया जाता है फिर शुरुआती शिक्षा के लिए जाति प्रमाण पत्र को दिखाया जाता है फिर सरकारी नौकरी पाने के लिए जाति प्रमाण पत्र का प्रयोग किया जाता है और उसके बाद सरकारी नौकरी को कुछ दिन करने के बाद वीआरएस लेकर राजनीति में प्रदान किया जाता है और वह भी जाति प्रमाण पत्र दिखाकर यह सारी विधि कहीं ना कहीं संविधान बनाने वालों के मन को कुंठित कर रही है अब आरक्षण किसी पीड़ित शोषित वंचित को नहीं बल्कि पूर्ण रूप से सुदृढ़ व्यक्ति को मिल रहा है गाड़ी घोड़ा बंगला रखने वाले करोड़पति तथाकथित दलित 50 लाख की गाड़ी से उतर कर जाति प्रमाण पत्र दिखाकर मुफ्त का गेहूं चीनी और दाल लेकर जातिगत प्रमाण पत्र का दुरुपयोग करते पाए जाते हैं यही लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ कर सत्ता का सुख भोगते हैं वास्तव में आजादी से पहले जो शोषित पीड़ित वंचित था वह आज और ज्यादा शोषित पीड़ित और वंचित हो गया है और जो दलित आजादी के समय सक्षम था वह आज बहुत ज्यादा सक्षम हो गया है

सही मायने में दलितों की राजनीति करने वाले दलित नेताओं ने अपना घर भरने के अलावा कोई कार्य नहीं किया अपने परिवार और अपना भला करने के अलावा कोई कार्य नहीं किया.जिस प्रकार से जातिगत आरक्षण के नाम पर आजादी से अब तक हजारों करोड़ रूपया दलितों के विकास के लिए आवंटित किया गया वह पैसा आज तक दलितों तक पहुंचा ही नहीं क्योंकि अगर दलितों तक हजारों करोड रुपए पहुंचता तो निश्चित रूप से दलित समाज के अंदर एक भी व्यक्ति आज जरूरतमंद नहीं बचता परंतु उसी पैसे का जाति के नाम पर फायदा उठाकर दुरुपयोग करते हुए दलित नेताओं ने अपना घर भरा और अपनी जीवनशैली को सुधारा समस्या इस बात से नहीं है कि उन्होंने घर भरा समस्या इस बात से है कि उन्होंने दूसरे के हक और अधिकारों को अनाधिकृत तरीके से छीना जो कि मानवता के खिलाफ है नियति के खिलाफ हैएक बार जातिगत आरक्षण का फायदा लेते हुए सांसद विधायक आईएएस या आईपीएस किसी भी प्रकार की सुविधा हासिल करने के बाद स्वैच्छिक रूप से उस व्यक्ति को जातिगत प्रमाण पत्र फाड़ कर फेंक देना चाहिए क्योंकि वह सामान्य की स्थिति में रहने लायक हो चुका होता है परंतु ऐसा नहीं होता है

अमूमन पहले दादा ने आरक्षण का फायदा लिया फिर पिता ने लिया अब पोता जातिगत आरक्षण का फायदा ले रहा है और उसकी भी भावी पीढ़ी जब तक लोकतंत्र में किसी भी प्रकार का जातिगत आरक्षण के प्रति बदलाव नहीं आ जाता तब तक इसी प्रकार से अयोग्य को योग्य बना कर हिंदुस्तान के इस लोकतांत्रिक देश में संविधान से खिलवाड़ होता रहेगा-5% अंक वाले व्यक्ति को योग्य की कुर्सी पर बिठा कर 90% वाले व्यक्ति के साथ ना केवल यह अन्याय है बल्कि सीधे-सीधे राष्ट्र को खंडित करने का साजिश भरा यह कदम वर्तमान राजनीतिक दलों द्वारा संविधान का दुरुपयोग करते हुए लागू किया गया है जब जब ऐसे गलत कार्यों का विरोध हुआ तब तब सत्ता के ऊपर बैठे इन नेताओं ने धर्म के नाम पर जाति के नाम पर रंग के नाम पर ना जाने किस-किस मुद्दों पर भड़काने का कार्य किया है

पिछले 5000 वर्षों के शोषण की गिरदावरी गाते हुए यह दलित नेता केवल और केवल जातीय भेदभाव फैलाने का कार्य करते हैं स्वर्ण समाज और दलित समाज के बीच में दर्शन पैदा करने के अलावा ना तो इन्हें अंग्रेजों का शासन याद आता है और ना ही इन्हें मुगलों का शासन याद आता है और आजकल हिंदू धर्म को खंडित करने के लिए यह दलित नेता जय भीम और जय भीम के नारे के साथ हिंदुस्तान में एक नया जहर घोलने के प्रयास रोज कर रहे हैं किसी भी घटना को जाति से जोड़कर देखना किसी भी व्यवस्था को जाति से जोड़कर देखना यह इन राजनेताओं का पैसा सा बन गया है

जनता अब धीरे-धीरे इनके बेहतर समझने लगी है परंतु फिर भी अभी भी हिंदुस्तान की जनता को बहुत जागरूक होना पड़ेगा योग्य को योग्य ही स्थान मिले ऐसा पुरजोर तरीके से प्रयास करना होगा, सरकारों से लेकर राजनीतिक दलों तक बॉलीवुड से लेकर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म तक जहां भी देखोगे इन तथाकथित दलितों के ही माहिती आपको गली-गली मिल जाएंगे यह लोग अपनी मान पंथी विचारधारा के आधार पर हिंदुस्तान के टुकड़े करने के लिए अरब देशों से खैरात लेने से भी नहीं चूकते हैं

जिंदगी भर जातिगत आरक्षण का फायदा लेकर अपना स्थान बनाने वाले कुछ दोगली विचारधारा के तथाकथित अवसरवादी नेता भी आपको राजनीतिक पटल पर देखने को मिल जाएंगे जो दिन भर हिंदुस्तान के निवासियों पर जाति के नाम पर रंग के नाम पर गडरिया ते नजर आएंगे ऐसे नपुंसको को भी पहचानने का समय अब आ गया है ।।हिंदू धर्म के त्योहारों और हिंदू धर्म की आस्था पर चोट करना आजकल इन वामपंथी विचारधारा के देशद्रोहियों का फैशन सा बन गया है और इनके समर्थक में कुछ तथाकथित राजनीतिक पार्टियां और सोशल मीडिया के प्लेटफार्म कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आते हैं यह आहट है भावी भारत को उजाड़ने की जिसे जितना जल्दी समझ जाएं तमाम हिंदुस्तानियों के लिए बेहतर होगा ।।

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