किसानों को भ्रमित करके देश में अराजकता फैलाई जा रही है। पंजाब से चले किसानों के आंदोलन में कई देश विरोधी लोग शामिल हो गए हैं जिससे ये आंदोलन देश विरोधियों द्वारा हाईजैक किया जा चुका है। इसमें भारत विरोधी वैश्विक ताकतें जमकर अपना एजेंडा साध रही हैं और किसानों के इस आंदोलन को अपना समर्थन दे रहें हैं। यह जाहिर सी बात है कि भारत विरोधी लोग किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं तो इससे किसानों को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला। इसके चलते किसान आंदोलन वैश्विक खालिस्तानी समर्थकों और भारत विरोधी एजेंडा चलाने वालों द्वारा हाईजैक कर लिया गया है, जबकि मूल मुद्दे पीछे रह गए हैं।

विदेशी समर्थन

हाल ही में हमने देखा था कि किस तरह से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन का समर्थन किया, जिसके बाद सरकार द्वारा उन्हें लताड़ भी लगाई गई; लेकिन अब ब्रिटेन की संसद के सांसदों ने भी खुलकर किसानों के इस आंदोलन का समर्थन किया है। ब्रिटेन की लेबर पार्टी के सांसद तरनजीत सिंह (रेलमंत्री) ने किसानों के समर्थन को लेकर ट्वीट किया कि ‘किसान ऐसे लोग हैं जो खुद का दमन करने वालों का भी पेट भरते हैं। मैंने कहा कि मैं किसानों के साथ हूं’। उनके इस कथन का समर्थक जॉन मैकडॉनल ने भी किया है।

लेबर पार्टी की एक और सांसद प्रीत गिल ने ट्वीट कर लिखा, “दिल्ली से हैरान करने वाले दृश्य। किसान अपनी आजीविका को प्रभावित करने वाले विवादित बिल का शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन उन्हें चुप कराने के लिए पानी की तेज बौछार और आंसू के गोलों का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत में विवादित कानून को लेकर विरोध कर रहे नागरिकों के साथ बर्ताव का ये तरीका बिल्कुल सही नहीं है।”

इसके अलावा कनाडा से लगातार किसानों के समर्थन की उठ रही है। वहां की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख जगमीत सिंह ने ट्वीट किया, “शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों के खिलाफ भारत सरकार की हिंसा बेहद आहत करने वाली है। मैं पंजाब और भारत के किसानों के साथ खड़ा हूं। मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि हिंसा के बजाय शांतिपूर्ण बातचीत का रास्ता अपनाए।”

यही नहीं इनके अलावा कनाडा के ही सेंट जॉन ईस्ट से सांसद जैक हैरिस, ओंटारियो में विपक्ष की नेता एंड्रू हॉरवात, ब्रैम्पटन ईस्ट से सांसद गुर रतन सिंह, ब्रैम्पटन के नेता केविन यारडे और सारा सिंह सभी भारत में हो रहे किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए सरकार से इस मसले पर हल करने की उम्मीद लगा रहे हैं, लेकिन क्या यह सच में केवल एक समर्थन ही है, या इसके पीछे भारतीय मामलों में हस्तक्षेप के साथ ही अपने खालिस्तानी एजेंडे को चलाना है ?

अलगाववाद के प्रणेता

खालिस्तान हमेशा से ही पंजाब के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर वैश्विक राजनीति भी होती रही है। ये सभी ऐसी ताकतें हैं जो पंजाब में जरा सी भी आग भड़कने पर सबसे पहले उस आग में अपने एजेंडे की रोटियां सेंकने लगती हैं। ये जितने भी सांसद या नेता हैं, इनका इतिहास रहा है कि इन्होंने खालिस्तान से लेकर भारत विरोध में उठने वाली अनेकों ताकतों का समर्थन किया है। ये भारत के उन तथाकथित वामपंथी नागों की तरह ही है जो किसी मुद्दे पर केवल सरकार के विरोध के लिए ही अपना फन उठा लेते हैं।

आपको अपनी रिपोर्ट में यह भी बता चुके हैं कि अमेरिका स्थित जस्टिस फॉर सिख नाम की अलगाववादी संस्था पंजाब में किसान आंदोलन शुरू होने के साथ ही सक्रिय हो गई थी और उसने एक मिलियन डॉलर का अनुदान देने तक की बात कही थी। ये ऐसी संस्थाएं हैं जो भारत विरोधी एजेंडा चलाने में माहिर हैं। वर्तमान में देखा गया है कि कई खालिस्तानी आतंकियों और उनके समर्थकों ने किसान आंदोलन के दौरान खालिस्तान के पोस्टर लगाए हैं। इस आंदोलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैसे ही ठोकने की बात कही गई है जैसे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ठोका गया था, जो दिखाता है कि ये आंदोलन कुछ तथाकथित वामपंथियों और अलगाववादियों द्वारा हाईजैक कर लिया गया है।

अभी तक तो आंदोलन केवल भारतीय स्तर पर ही अलगाववादियों द्वारा हाईजैक किया गया था लेकिन अब इस किसान आंदोलन को भारत विरोधी ताकतों ने भी समर्थन देकर हाईजैक कर लिया, जिससे किसानों के मुद्दे पीछे हो रह गये हैं और इन अलगाववादियों की मंशाएं सामने आ गई हैं। ये लोग हमेशा ही भारत को बदनाम करने की साजिश रचते है। सफेद कॉलर वाले लोग सांसदों में बैठकर भारत के खिलाफ रुख रखते हैं और यही काम ये लोग एक बार फिर किसान आंदोलन को समर्थन देकर भी कर रहे हैं।

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