संघ की अपनी एक विशिष्ट कार्यशैली है , जिसमे से सबसे प्रमुख है समाज के लिए किये गए किसी भी कार्य चाहे वो किसी की सहायतार्थ हो या समाज के कल्याण के लिए , संघ और उसके स्वयंसेवक कभी इस बात को किसी ने कहते बताते दिखाते नहीं हैं | संघ का मानना है कि किसी को प्रेरित करने के लिए और अधिक कार्य करने की आवश्यकता होती है , सिर्फ देखने सुनने भर से हर कोई प्रेरित नहीं होता ,साथ नहीं जुड़ता |

कोरोना काल में सबसे बड़ी समस्या जो देश के सामने आई थी वो थी पूरे देश भर से प्रवासी मजदूरों का एक साथ पलायन और उससे जुडी हुई उनकी कठिनाइयाँ | एक समय जब दिल्ली और मुम्बई की राज्य सरकारों ने अपने हाथ खड़े कर दिए और समाज को खुद उसके हाल पर छोड़ दिया | ऐसे में हमेशा की तरह बिना किसी के कहे बोले , संघ के स्वयंसेवक सड़कों फुटपाथों पर उतर आए और उन गरीब असहाय मजदूरों की मदद की |

इतना ही नहीं , वो संघ के स्वयं सेवक ही थे जिन्होंने खुद भी हेल्प डेस्क लगा कर ,भोजन , दवाई , आदि की व्यवस्था की शुरुआत की बल्कि पुलिस ,प्रशासन और जांच कर्मियों की सहायता तक को आगे आए | दूसरे राज्यों से अपने घरों को लौटने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के श्रमिक परिवारों के लिए लखनऊ-दिल्ली हाईवे, यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ हाईवे पर स्थान स्थान पर डेस्क और सुविधा केंद्र आदि का संचालन संघ के स्वयसेवकों द्वारा किया गया |

अब इसका परिणाम ये देखने को मिल रहा है कि इन क्षेत्रों सहित पूरे देश भर में संघ की शाखाओं और स्वयंसेवकों की संख्या में बहुत बड़ी वृद्धि हुई है | अकेले कानपुर क्षेत्र जो संघ के संघठन की दृष्टि से बहुत ही व्यापक क्षेत्र है |

वहां ,कोरोना की दस्तक से पहले यहां करीब 12 हजार शाखाएं चलती थीं, जिसमें से नियमित शाखाओं की संख्या लगभग 2100 थी. फिलहाल स्थिति देखी जाए, तो यहां शाखाओं की संख्या बढ़कर 15 हजार तक पहुंच गयी है और 3 हजार से ज्यादा नियमित शाखाएं चल रही हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिहाज से देखा जाए तो ब्रज में 10 हजार, जबकि मेरठ और उत्तराखंड में स्वयंसेवकों की संख्या 15 से 20 हजार तक बढ़ी है. जबकि, काशी, अवध और गोरखपुर क्षेत्र में संचालित होने वाली शाखाओं में भी इजाफा हुआ है.

कमोबेश यही स्थिति दिल्ली , पंजाब , और राजस्थान जैसे राज्यों में और दक्षिण के राज्यों में भी है |देश भर में आज संघ की पचास हज़ार से भी अधिक शाखाएं सक्रिय हैं | पश्चिम बंगाल और केरल में संघ और उस के स्वयंसेवकों पर लगातार होते हमले , उनकी हत्याएं भी इन क्षेत्रों के बाकी क्षुब्ध राष्ट्रप्रेमियों को भी अब संघ की तरफ खींच रही हैं |

ज्ञात हो कि अगले कुछ वर्षों में ही संघ की आयु पूरे 100 वर्षों की होने जा रही है और अपनी स्थापना 1925 से लेकर अब तक निरंतर हिन्दू राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित संघ भविष्य में भी भारत की राजनीतिक सामाजिक और सांस्कृतिक संबलता में अपना योगदान और आहुति इसी तरह युगों युगों तक देता रहेगा |

संघे शक्ति कलियुगे | नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे |

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