लेखक – बलबीर पुंज
भारत को 1947 में विभाजित करके उभरा पाकिस्तान बदहाल क्यों है? वर्ष 1971 में पाकिस्तान जहां दो टुकड़ों में बंट गया, वही आज ब्लूचिस्तान, पख़्तूनिस्तान और सिंध में अलगाववाद के स्वर चरम पर है। आर्थिक रूप से यह इस्लामी राष्ट्र न केवल खोखला हो चुका है, अपितु अपनी देनदारी चुकाने या आतंरिक समस्याओं से निपटने हेतु दयनीय भिखारी के रूप में विश्वभर में इधर-उधर याचना कर रहा है। अमेरिका आदि देशों सहित कई अंतरराष्ट्रीय समुदायों ने लगभग 10 अरब डॉलर के रूप में बाढ़ से बेहाल पाकिस्तान की झोली भरने का वादा किया है। स्थिति ऐसी है कि पाकिस्तानी नागरिक या तो बिजली से लेकर चायपत्ती, आटा, सब्जियों और अन्य खाद्य-पदार्थों के लिए जूझ रहे है या फिर अनियंत्रित महंगाई और कालाबाजारी के शिकार है। बिजली बचाने के लिए शरीफ सरकार ने संध्या 8:30 बजे बाजारों, तो रात 10 बजे तक विवाहस्थलों को बंद करने का आदेश दिया है। आखिर पाकिस्तान इस हाल में क्यों पहुंचा?
पाकिस्तान नकारात्मक चिंतन से जनित विफल ‘राष्ट्र’ है। कहने को यह इस्लाम के नाम पर बना, परंतु इसकी मांग के पीछे इस्लाम के प्रति प्रेम कम, हिंदुओं-भारत की बहुलतावादी सनातन संस्कृति के प्रति घृणा अधिक थी, जो अब भी व्याप्त है। द्वेष प्रेरित जनमानस को किसी के खिलाफ एकजुट तो कर सकते है, परंतु उनका सकारात्मक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु भागीदार बनना कठिन है। यह दर्शन उन मूल्यों-जीवनशैली का अंधा-विरोध है, जो भारत को अनाधिकाल से परिभाषित करते आए है। पाकिस्तान स्वयं को खंडित भारत से अलग, तो मध्यपूर्वी एशिया-खाड़ी देशों से निकट दिखाने हेतु प्रयासरत है। इसी में पाकिस्तान संकट का मूल कारण निहित है।
बांग्लादेश, जिसे पहले पूर्वी-पाकिस्तान नाम से जाना जाता था— वह 1971 में पाकिस्तान से अलग क्यों हुआ? इसका एकमात्र कारण वह मानसिकता है, जिसमें पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) को तत्कालीन पू.पाकिस्तान में ‘काफिर’ हिंदू-बौद्ध संस्कृति के अवशेष नज़र आते थे, क्योंकि तब पू.पाकिस्तान में हिंदुओं की भांति विवाहित मुस्लिम महिलाएं भी सिंदूर-बिंदी लगाती थी। यह सब ‘कुफ्र’ तत्कालीन पाकिस्तानी सेना, जिसके अधिकांश अधिकारी-सैनिक पंजाब प्रांत (पाकिस्तानी) से थे— उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ। यह जानते हुए कि पू.पाकिस्तान के नागरिकों में बहुसंख्यक मुसलमान है, तब भी पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय जिहादियों के साथ मिलकर जिन 30 लाख से अधिक स्थानीय लोगों की हत्या की और चार लाख महिलाओं का बलात्कार किया, उसमें बड़ी संख्या में बंगाली-उर्दू भाषी मुस्लिमों की भी थी। इसके बाद भारतीय हस्तक्षेप से पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए।
तब से पाकिस्तानी सत्ता-अधिष्ठान, भारत से बदला लेने हेतु ‘हजार घाव देकर मौत के घाट उतारने’ संबंधित नीति का अनुसरण कर रहा है। वह अपने संसाधनों का बहुत बड़ा हिस्सा प्रशिक्षित आतंकवादियों को तैयार करने पर व्यय कर रहा है। ‘खालिस्तान’ के नाम पर सिख अलगाववाद को हवा देना, 1980-90 के दशक से कश्मीर में स्थानीय मुस्लिमों को इस्लाम के नाम पर हिंदुओं-सिखों और भारतपरस्त मुसलमानों की हत्या करने को प्रोत्साहित करना, वर्ष 2001 के संसद आतंकवादी हमले, 2008 के 26/11 मुंबई आतंकी हमले सहित दर्जनों जिहाद (उदयपुर-अमरावती हत्याकांड सहित) में भूमिका और सीमापार से आतंकवादियों की घुसपैठ— इसका परिणाम है।
पाकिस्तान ने अपनी वैचारिक कोख से जिन हजारों-लाख जिहादियों को पैदा किया, वह उसके लिए भी ‘भस्मासुर’ बन रहे है। एक आंकड़े के अनुसार, पाकिस्तान द्वारा पनपाए आतंकवाद ने दीन के नाम पर 2002-14 के बीच ही 70,000 पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया। खंडित भारत में मोदी सरकार आने के बाद जिस प्रकार भारतीय सामरिक-रणनीतिक दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन आया है, उससे सीमापार घुसपैठ में भारी गिरावट देखने को मिली है— परिणामस्वरूप, पाकिस्तानी जिहादी अब अपनी ‘शुद्ध-भूमि’ को और अधिक स्वाह करने में लगे है। पाकिस्तानी सरकार-सेना और ‘तहरीक-ए-तालिबान’ (टीटीपी) के बीच रक्तरंजित टकराव— इसका प्रमाण है।
विश्व के इस क्षेत्र में तालिबान का जन्म 1980-90 के दशक में तब हुआ, जब अफगानिस्तान से ‘काफिर’ सोवियत संघ को खदेड़ने के लिए कुटिल अमेरिका ने सऊदी अरब के वित्तपोषण और पाकिस्तानी मदरसों की मजहबी शिक्षा से मुजाहिदीनों की फौज बनाई, जो बाद में तालिबान के रूप में स्थापित हुए। कालांतर में जब तालिबान अपने ही आकाओं को डसने लगा, तो उसकी काट हेतु पाकिस्तान ने ‘तहरीक-ए-तालिबान’ को सैन्य-प्रशिक्षण दिया— अर्थात्, ‘जिहाद’ को ‘जिहाद’ से समाप्त करना चाहा। इसके लिए वर्षों तक पाकिस्तान, टीटीपी को अफगान तालिबान से अलग बताता रहा। किंतु अफगानी तालिबान ने इस्लाम के नाम पर टीटीपी को ही पाकिस्तानी सत्ता-अधिष्ठान के विरुद्ध ही खड़ा कर दिया। वर्ष 2022 में पाकिस्तान में 262 आतंकी हमले (इस्लामाबाद सहित) हुए, जोकि 2021 की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है— इसमें एक तिहाई से अधिक में टीटीपी की भूमिका है।
टीटीपी का एकमात्र उद्देश्य तालिबान की भांति पाकिस्तान में भी खालिस शरीया को लागू करना है, जिसमें महिला शिक्षा को समाप्त करना, सार्वजनिक रूप से मौत की सजा देना, लोकतंत्र के स्थान पर शूरा प्रणाली स्थापित करना और पाकिस्तान को आधुनिक दुनिया से काटना आदि— शामिल है। अफगान-तालिबान के प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन से टीटीपी, खैबर पख्तूनख्वा में समानांतर सरकार बना चुका है। यह दिलचस्प है कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान के हिंसक सत्ता-परिवर्तन में पाकिस्तान, तालिबान का समर्थन कर रहा था।
चूंकि पाकिस्तान ने अपने वैचारिक अधिष्ठान के अनुरूप असंख्य जिहादियों को तैयार किया है, उससे न तो स्थानीय जनमानस सुरक्षित है और न ही निवेशक-उद्यमी। पाकिस्तान का आर्थिक संकट कितना विकट है कि उसके केंद्रीय बैंक में मात्र 4.5 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा शेष है, तो मार्च 2023 तक उसे किस्त के रूप में 8 बिलियन डॉलर से अधिक का कर्ज चुकाना है। ऐसे में उसे चीन के साथ सऊदी अरब से सहायता का पुन: भरोसा मिला है। दुनिया के समक्ष हाथ फैलाकर पाकिस्तान का संकट अल्पकाल के लिए टाल तो गया, किंतु उससे मुक्त नहीं हो सकता। यह तभी संभव है, जब वह अपने भारत-हिंदू विरोधी दर्शन से स्वतंत्र हो जाए। क्या ऐसा होगा?— शायद नहीं। यदि ऐसा हुआ, तो पाकिस्तान का एक अलग राष्ट्र के रूप में जीवित रहना असंभव हो जाएगा। यह चिंतन ही उसके अस्तित्व और चक्रवृद्धि संकट का एकमात्र कारण है।
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।
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