यह नववर्ष नहीं मूर्खता है।
स्वतंत्रता के उपरांत भी।
गोपाल के भारत को।
छल रही धूर्तता है।
सोए सनातन धर्म को जगाओ अब।
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनाओ अब।
हे भारत के कर्णधारो।
ज्ञान ले वेदो से वर्तमान को सुधारो।
सत्य का ज्ञान ही,अज्ञान से जूझता है।
यह नववर्ष नही मूर्खता है।
यह मूर्खता।
अब स्वीकार नहीं।
किसी की खतना दिन।
नव वर्ष का कोई कोई त्यौहार नहीं।
कोहरे से ढकी प्रकृति में।
अभी कोई श्रंगार नहीं।
इसे नववर्ष मनाना।
संस्कृति का हमारी विचार नहीं।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा जब आती है।
आगमन नव संवत्सर का बतलाती है।
भगवान भी तब प्रकृति में।
नव प्राण धर्ता है।
यह नववर्ष नहीं मूर्खता है।
ऋषियों के देश की।
आर्यों के परिवेश की।
सदा यही मर्यादा है।
ज्ञान विज्ञान अनुसंधान को।
हमने धर्म से साधा है।
हे कर्णधारो।
अब धर्म का धारण बनो।
कल्याण हो राष्ट्र का जिसमें।
अब वह कारण बनो।
राष्ट्र का कल्याण ही।
विश्व में गूँजता है ।
यह नववर्ष नहीं मूर्खता है।

गोपाल आर्य

@Akhandomnaam

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