पहले मच्छर और माफिया से परेशान था यूपी, योगी जी ने दोनो को किया नियंत्रित. पहले की सपा और बसपा सरकारों ने दशकों तक माफियाओं को पाला और अपने फायदे के लिए इश्तेमाल किया. यहां तक की राजनीति की मुख्यधारा से जोड़कर एक ऐसा खतरनाक कॉकटेल बनाया जो माफियाराज के तौर पर प्रदेश के विकास पर तालाबंदी करता रहा है. माफियाराज नासूर बनकर प्रदेश को पिछड़ेपन की ओर धकेलता रहा, प्रदेश की जनता को जातिवाद और मज़हबी तुष्टिकरण का चूरन पकड़ाकर सत्ता की मलाई खाते रहे अखिलेश यादव और मायावती. पर जनता ने जब मोदी जी के आह्वान पर 2017 में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया और मोदी जी ने एक सन्यासी, एक योगी को प्रदेश की कमान दी तो माफियाराज के अंत की शुरुआत भी हो गई. भूमाफियाओं और इनामी गैंगस्टर्स के खिलाफ ‘अभियान’ छेड़ कर योगी जी ने उन्हें दो ही विकल्प दिए या तो यूपी छोड़ दो या दुनिया छोड़ दो.
माफियाओं जैसा दूसरा M था मच्छर. सपा, बसपा की लचर सरकारों ने कभी ध्यान नहीं दिया, दिमागी बुखार से पूर्वांचल के हजारों बच्चे मारे जाते थे। भाजपा सरकार ने सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में दिमागी बुखार के सेंटर स्थापित किए, अस्पताल में बच्चों के इलाज के लिए वार्ड बनाए और आज माफियाओं की तरह मच्छर जनित दिमागी बुखार भी नियंत्रण में है.
समाजवादी पार्टी के विनाशवादी अजेंडे को समझना होगा
समाजवादी पार्टी का जन्म ही विनाश के लिए हुआ है. जातिवाद और तुष्टिकरण के दो पहियों पर चल रही समाजवादी पार्टी की गाड़ी के नीचे उत्तर प्रदेश का विकास रौंदा गया है. विकास तो हुआ नहीं उलटे माफियाराज, दंगे, जातीय उन्माद और भ्रष्टाचार के चार पहियों पर उत्तर प्रदेश के विनाश की गाड़ी चलाते हैं अखिलेश यादव. माफियाओं, दंगाइयों और अपराधियों को टिकट देकर उन्हें विधानसभा भेजना और फिर मंत्री बनाना समाजवादी पार्टी का एक विनाशवादी एजेंडा है जो दशकों से चल रहा है. जिन दंगाइयों ने पश्चिम से लेकर पूरब तक उत्तर प्रदेश को दंगों में झोंका उन्हें टिकट देकर समाजवादी पार्टी कैसा विकास चाहती है?
तीन तलाक का समर्थन करके और तालिबानी सोच को बढ़ावा देकर समाजवादी पार्टी विकास का नहीं विनाश का एजेंडा चला रही है. पूर्वांचल के कलंक मुख़्तार अंसारी के बेटे को टिकट देकर माफियाओं का विकास कर सकते हैं पर इससे तो उत्तर प्रदेश का विनाश सुनिश्चित है. औरंगजेब के नाम पर म्यूजियम बना कर और जिन्ना की तारीफें करके देश के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विनाश की तैयारियां कर रहे हैं अखिलेश यादव. तीन दशकों से विनाशवादी राजनीति से उत्तर प्रदेश को पीछे ही धकेल रही है समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव.
सपा की कुंडली में भ्रष्टाचार
सपा की कुंडली खोलने पर साफ़ दिखता है कि सप्तम भाव में भ्रष्टाचारी अखिलेश यादव बैठा हुआ है और कर्म के स्थान में भ्रष्टाचार है. शनि और राहु के स्थान पर माफिया और दंगाई बैठे हुए हैं. भ्रष्टाचार शिरोमणि अखिलेश ने अपने मुख्यमंत्री काल में दर्जनों घोटाले किए. खनिज घोटाला, लैपटॉप घोटाला, गोमती रिवर फ्रंट के ठेकों के पैसे का बंदरबांट खूब हुआ. सपा सरकारों में सरकारी नौकरी भी सेटिंग से मिलती थी और सिर्फ एक जाति विशेष के लोगों के लिए ही अरक्षित थीं. चाहे जल निगम भर्ती हो या राज्य सेवा आयोग की भर्तियाँ, समाजवादी सरकार ने ऐसा कोई महकमा नहीं छोड़ा था जहां बिना घूंस दिए नौकरी मिलती थी. मंत्री और नौकरशाहों का ऐसा मकड़जाल बुना था कि पैसे कितने लेने हैं, कैसे लेने हैं और कहाँ जमा करना है ये सब एक सिस्टम से होता था. यादव सिंह, पियूष जैन, अजय चौधरी जैसे भ्रष्टाचारी अखिलेश की सरकार में ही पनपे.
2012 -2017 के दौरान सपा सरकार ने UP PSC घोटाला और लैपटॉप घोटाला करके युवाओं का भविष्य बर्बाद किया तो खनिज घोटाला करके प्रदेश के संसाधनों को लूटा. एम्बुलेंस घोटाला तो ऐसा था कि एम्बुलेंस ही नहीं आईं और गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में गोमती रिवर तो रही पर रिवर फ्रंट गायब था और जिसे बाद में योगी जी ने बनवाया है.
उत्तर प्रदेश को जातिवाद के जहर से बचाना पड़ेगा
1990 के दशक से शुरू हुआ जातिवाद का जहर उत्तर प्रदेश को पिछड़ेपन के अँधेरे में धकेलता रहा है और इसके सबसे बड़े कसूरवार रहे हैं समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और लोकदल और कई जाति आधारित पार्टियाँ. जातिवाद के मकड़जाल में उलझा उत्तर प्रदेश कभी अपराध प्रदेश बना तो कभी नक़ल प्रदेश और कभी माफियागढ़. कभी दंगे तो कभी जातिवाद और परिवारवाद. ऐसा नहीं है कि जातिवाद का तिलिस्म टूटा नहीं है. पहली बार 2014 में उत्तर प्रदेश की जनता ने जातिवाद को धता बताकर राष्ट्रवाद और विकासवाद के लिए मोदी जि को चुना और यही विश्वास 2017 के विधानसभा चुनावों और 2019 लोकसभा चुनावों में दिखा. जातिवाद के ज़हर पर पल रहीं समाजवादी पार्टी, लोकदल, और बसपा को आइना तो उत्तर प्रदेश पहले भी दिखा चुका हुआ है पर इन दलों ने हार नहीं मानी है. अभी भी जातीय विद्वेष, जातीय उन्माद और जातीय असुरक्षा की भावनाओं को भड़का कर सत्ता का रास्ता ढूंढ रहे ये दल आपके पास जाति के नाम पर फिर जाल फैला रहे हैं.
1990 के दशक से शुरू हुआ जातिवाद का जहर उत्तर प्रदेश को पिछड़ेपन के अँधेरे में धकेलता रहा है और इसके सबसे बड़े कसूरवार रहे हैं समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और लोकदल और कई जाति आधारित पार्टियाँ. जातिवाद के मकड़जाल में उलझा उत्तर प्रदेश कभी अपराध प्रदेश बना तो कभी नक़ल प्रदेश और कभी माफियागढ़. कभी दंगे तो कभी जातिवाद और परिवारवाद.
ऐसा नहीं है कि जातिवाद का तिलिस्म टूटा नहीं है. पहली बार 2014 में उत्तर प्रदेश की जनता ने जातिवाद को धता बताकर राष्ट्रवाद और विकासवाद के लिए मोदी जि को चुना और यही विश्वास 2017 के विधानसभा चुनावों और 2019 लोकसभा चुनावों में दिखा.
जातिवाद के ज़हर पर पल रहीं समाजवादी पार्टी, लोकदल, और बसपा को आइना तो उत्तर प्रदेश पहले भी दिखा चुका हुआ है पर इन दलों ने हार नहीं मानी है. अभी भी जातीय विद्वेष, जातीय उन्माद और जातीय असुरक्षा की भावनाओं को भड़का कर सत्ता का रास्ता ढूंढ रहे ये दल आपके पास जाति के नाम पर फिर जाल फैला रहे हैं.
भाजपा दे रही विकास की गारंटी
भाजपा का मैनिफेस्टो ‘विश्वास पत्र’ कहा जाता है क्योंकि ये सिर्फ एक चुनावी स्टंट न होकर ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ होती है. जो प्रतिज्ञा 2017 में की गई उसे 2022 तक पूरा किया गया और अब जितनी भी प्रतिज्ञाएँ की जा रही हैं उन्हें भी पूरा किया जाएगा. चाहे 5 नए एक्सप्रेसवे की बात हो या 6 नए मेट्रो प्रोजेक्ट की, या 25 विश्वस्तरीय बस टर्मिनल की या फिर मेरठ, आजमगढ़, बहराइच, कानपुर में आतंक निरोधी दस्ता ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना, भाजपा इन्हें रिकॉर्ड टाइम पर पूरा करेगी, ये विश्वास प्रदेश की जनता को भी है.
चाहे दिवाली और होली पर उज्जवला के सभी लाभार्थियों को होली और दीपावली में 2 मुफ्त एलपीजी सिलेंडर की बात हो, कॉलेज जाने वाली हर महिला को मुफ्त स्कूटी की बात, या साठ से ऊपर की महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा या किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली, भाजपा का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है, ये वादे पूरे करने वाली सरकार है. जब नेतृत्व होता है ईमानदार, जनता को होता है विश्वास और यही हो रहा है भाजपा के ‘विश्वास पत्र’ के साथ क्योंकि मोदी जी और योगी जी की जोड़ी पर है उत्तर प्रदेश को विश्वास. इस जोड़ी ने उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर पर एक्सप्रेसवे की रफ़्तार दी है.
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.