एक कहावत तो हम सबने सुनी है कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे कुछ ऐसा ही हाल AIMIM प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी का हो गया है . भारतीय राजनीति का समीकरण बदलने निकले ओवैसी के दिन मानो लद गए हैं. हैदराबाद से लोकसभा सांसद असद्दुदीन ओवैसी अपनी पार्टी के विस्तार के लिए चाहे लाख कवायद कर रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि उनके अपने ही नेता और विधायक पार्टी छोड़कर दूसरे दलों की शान बढ़ा रहे हैं. कुछ ऐसा ही बिहार की राजनीति में ओवैसी के साथ हुआ है.

बिहार में असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी में एक बड़ी टूट हो गई है और पार्टी के 5 में से 4 विधायकों ने RJD का दामन थाम लिया है . जहां इससे ओवैसी की पार्टी AIMIM को बड़ा झटका लगा है वहीं इसके बाद लालू यादव की पार्टी आरजेडी बिहार विधानसभा में एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है . RJD के अब कुल 80 विधायक हो गए हैं। जबकि बीजेपी दूसरे नंबर पर पहुंच गई है, बीजेपी विधायकों की संख्या 78 है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तेजस्वी यादव खुद गाड़ी चलाकर चारों विधायकों शाहनवाज, इजहार, अंजार नाइयनी और सैयद रुकूंदीन को लेकर विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के चैंबर में ले गए। इसके बाद उन्होंने अपना समर्थन पत्र सौंप दिया। दरअसल 2020 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतकर ओवैसी की पार्टी ने RJD की मुसीबतें बढ़ाई थीं. असद्दुदीन ओवैसी ने बिहार में मिली इस सफलता को अपनी शुरुआत बता दिया था और यह दावा किया था कि वो अपनी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करेंगे। इसके बाद उन्होंने 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव में भी अपने प्रत्याशियों को उतारा, लेकिन यहां ओवैसी का फैक्टर फेल हो गया . बिहार में मिली 5 सीटों पर जीत को लेकर वे इतने उत्साहित हो गये कि उनकी प्लानिंग गुजरात से लेकर राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी चुनाव लड़ने की है लेकिन अब उनके इस सपने पर ग्रहण लगता दिख रहा है.

दरअसल ओवैसी अपने जिन सिपहसलारों के भरोसे जंग जितने चले थे राष्ट्रीय राजनीति करने चले थे वो सब धरा का धरा रह गया क्योंकि उनके सिपाहियों ने  अपना पाला बदल लिया. बिहार के इस सियासी हलचल ने ओवैसी को एक सीख जरुर दी है कि ओवैसी साहब को पार्टी का विस्तार छोड़कर हैदराबाद बचाने पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति करना सबके बस की बात नहीं होती !

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