मुस्लिम आबादी को उनके नेताओं ने विकास जीडीपी, महंगाई व शिक्षा जैसे शब्दों के भंवरजाल से हमेशा दूर रखा!
इस्लाम खतरे में हैं का झुनझुना गरीब व अनपढ़ लोगों को पकड़ाकर वे अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकते रहे!
जम्मू- कश्मीर 1947 से पूर्व समृद्ध राज्यों में से था। लेकिन एकमुश्त वोट के लालच में राजनेताओं और अलगाववादियों ने कश्मीर की आजादी के नाम पर मुसलमानों को उकसाने का काम ही किय हैं। परिणामस्वरूप कश्मीर का विकास अवरुद्ध होता गया और आतंकवाद चरम पर पहुंचता गया! अनुच्छेद 370/35ए हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ! खून-खराबे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने से उद्योगपति, स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े समूह, निजी शैक्षणिक संस्थान, शिकारा और हाउसबोट जैसे उद्योग- धंधे वहाँ अनुकूलता तलाश रहे हैं।
राज्य/केंद्र सरकार ने सेब की खेती करने वाले किसानों को नेफेड के माध्यम से रकम सीधे किसानों के खाते में भेजने, गांवों के विकास के लिए दिया जाने वाला पैसा सीधे सरपंचों के खाते में डालने, कश्मीरी किसानों के लिए पेंशन योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण में तेजी जैसे कार्यों से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। ऐसे में स्थानीय नागरिक अलगाववादी सोच को त्यागकर राष्ट्रीय धारा में शामिल हो रहे है!
कुल मिलाकर नवनिर्मित संघ शासित जम्मू- कश्मीर में आ रहे सकारात्मक परिवर्तन की इसी प्रक्रिया से चिंतित होकर कश्मीरी नेता फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अपनी स्थाई रूप से जमीन खिसकती देखकर किसी भी कीमत पर (चीन से सहयोग जैसी) कश्मीरियों को इस्लाम खतरे में हैं! में पुनः उलझाऐ रखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन 70 वर्षो से अपनी स्वार्थपूर्ति में लगे नेताओं की दाल अब गलती नजर नहीं आ रही है, इसलिए उनकी खीझ स्वाभाविक है!
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