बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य में एक व्यापारी था। व्यापारी के पास एक बहुत मूल्यवान हीरा था। हीरे की ख्याति दूर दूर तक थी। कई राज्यों के राजाओं ने उस हीरे को खरीदने की कोशिश की पर व्यापारी मना कर देता।

एक रात वो हीरा चोरी हो गया। अब चूंकि व्यापारी के घर में सिवाय उसके कर्मचारियों के आलावा किसी का आना जाना नहीं होता था तो संदेह कर्मचारियों पर ही गया। पर कोई भी कर्मचारी मानने को तैयार नहीं कि उसने चोरी की है।

व्यापारी ने राजा से गुहार लगाई। राजा ने मंत्री से विचार करने के बाद अगले दिन व्यापारी और सभी कर्मचारियों को आने को कहा। अगले दिन जब सभी आये तो वहां सबके लिए एक एक लकड़ी राखी हुई थी। राजा ने कहा आज की रात सभी को कारावास में बितानी होगी। साथ ही सबको एक एक लकड़ी देकर जाने को बोला गया। मंत्री ने कहा ये जादुई लकड़ी है , जो भी चोर होगा उसकी लकड़ी अपने आप रात भर में १ पंजे के बराबर बढ़ जाएगी।

सभी अपनी अपनी लकड़ी लेकर चले गए। जिस कर्मचारी ने चोरी की थी उसने सोचा की ये लकड़ी १ पंजे के बारबत बढ़ेगी मैं इसे उतना काट देता हूँ। बड़ी चतुराई से मंत्री ने सभी के कक्षों में लकड़ी कटाने का सामान पहले ही रखवा दिया था। कर्मचारी ने एक पंजे के बराबर लकड़ी काट दी और सो गया।

अगले दिन जब सब दरबार में आये तो सबको अपनी अपनी लकड़ियां दिखने को बोला गया। सबकी लकड़ी बराबर आकर में थी बस एक की ही लकड़ी छोटी थी। राजा को चोर को पहचानने में देर ना लगी। तब मंत्री ने बताया कि ये कोई जादुई लकड़ी नहीं थी , बस खुद को बचाने के लिए चोर ने गलती कर दी और पकड़ा गया। व्यापारी को उसका हीरा वापस मिल गया।

मतलब ये कि चोरी करना आपकी आत्मा को भी कमज़ोर बना देता है , मन-मष्तिष्क में सोचने की क्षमता भी जाती रहती है। जादुई लकड़ी का होना असंभव है अपर चोर ये सब समझने की शक्ति खो चुका था। वो कहते हैं न चोर कितना भी चतुर हो कोई न कोई गलती कर ही देता है। पंचशील के सिद्धांत में भी “अस्तेय” को एक सिद्धांत बताया गया है जिसका मतलब होता है : चोरी न करना। ये एक बहुत बुरी आदत है , इससे बचना ही श्रेयस्कर है !!!

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