कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बूटा सिंह का निधन हो गया है पर कभी बिहार के राज्यपाल रहते हुए केंद्र की कांग्रेस सरकार के समय बहुत बड़े विवाद में सामिल रहे थे।

दरअसल, 23 मई 2005 को बिहार विधानसभा भंग कर दिया गया था. इस फैसले पर राज्यपाल और केंद्र की भूमिका पर भी कई सवाल उठे थे. उस समय हुआ यूं था कि नीतीश कुमार सरकार बनाने का दावा पेश करने वाले थे लेकिन बूटा सिंह ने अपनी रिपोर्ट केंद्र को भेज दी थी और उन्हें मौका नहीं दिया था. इसलिए नीतीश कुमार दूसरी बार उस समय बिहार का मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे.

सुप्रीम कोर्ट ने भी की थी टिप्पणी
यह मामला 2005 में ही सुप्रीम कोर्ट में भी चला गया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिहार विधानसभा को भंग करना असंवैधानिक था और इसके केंद्र को गुमराह करने के लिए जिम्मेदार भी ठहराया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बूटा सिंह ने विधानसभा भंग करने की अनुशंसा का निर्णय जल्दबाजी की और केंद्र सरकार को भेजा. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए केंद्र को जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एनडीए ने किया था दावा
दरअसल, मार्च 2005 में जब बिहार विधानसभा का कार्यकाल खत्म हुआ था तब 6 मार्च को अगली सरकार का गठन होना था लेकिन बहुत के करीब कोई भी पार्टी नहीं थी. सुशील मोदी ने तब आरजेडी से अधिक विधायक एनडीए के पास होने का दावा किया था. उस समय रामविलास पासवान के पास 29 विधायक थे और वो किंगमेकर बनकर उभरे थे. तब रामविलास पासवान ने घोषणा की थी कि वो ना तो आरजेडी को और ना ही बीजेपी को सपोर्ट करेंगे. उस समय बिहार में 7 महीने से अधिक समय तक राष्ट्रपति शासन रहा था और बाद में हुए विधानसभा चुनाव में जीतकर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे और लालू-राबड़ी को सत्ता से बेदखल किया था।

एक देशभक्त लेखक।
अमित कुमार।

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