पिछले 70 सालों से किसानों को राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र मे बड़े बडे अक्षरों मे जगह तो दी जाती है, लेकिन किसान वहीं का वहीं है, आज जब कोई सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे किसान विरोधी बताकर सरकार के खिलाफ तरह तरह की साजिश रची जा रही है|

पिछले कुछ दिनों से पंजाब,हरियाणा के किसान मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनो का विरोध करने दिल्ली मे इकट्ठा हुए है|

हालांकि इनमे कितने लोग किसान है, कितने शाहीन बाग के आंदोलनकारी, वामपंथी छात्र संगठन या फिर किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे राजनीतिक दल है यह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन यह स्पष्ट है यह विपक्ष की मोदी सरकार को किसान विरोधी बताकर देश जलाने की चाल है|आज अरविन्द केजरिवल जो अब तक पराली जलाने पर किसानों का विरोध कर रहे थे,आज किसानों के शुभचिंतक बन रहे है ,वैसे यदि ये किसान आंदोलन होता तो इनमे Anti CAA और धार 370 वापसी के नारे ना लगते, ना ही खालिस्तानी आतंकी भिंडेरवाले के पोस्टर लगते बल्कि जय जवान जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री के पोस्टर लगते|

अब सवाल उठता है की किसान इन बिलों का विरोध क्यों कर रहे है तो इसके पीछे किसानों का तर्क है की इन कानूनओ से MSPखत्म हो जाएगा और किसानों की जमीन कोरपोरट घराने हड़प लेंगे ,

जबकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कह चुके हैं बिलों का MSP से कोई संबंध नहीं है, बल्कि मोदी सरकार तो हमेशा से किसानों के हित के लिए प्रतिबद्ध रही है, एनडीए सरकार का 2022 तक किसान की आय दुगुना करने का जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य है उसे देखते हुए किसान को सशक्त बनाने के लिए किसान सम्मान निधि,फसल बीमा योजना,किसान क्रेडिट कार्ड,किसान पेंशन योजना जैसी योजनाएं मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई हैं| मोदी सरकार ने 2014 से लेकर 2020 मे चने पर MSP 42% जबकि मसूर पर MSP 73% तक बढ़ाई है|

विपक्ष के नेता राहुल गांधी सरकार को और इन कृषि कानूनो को किसान विरोधी कहते हैं लेकिन जब उच्च सदन लोकसभा मे इन बिलों पर चर्चा होती है राहुल जी छुट्टी मनाने विदेश चले जाते है|

काँग्रेस खुद को किसान हितैषी कहती है लेकीन काँग्रेस शासित राज्य राजस्थान मे बाजरे की फसल को मात्र 1300 रुपए प्रति क्विंटल मे खरीदती है जबकि केंद्र सरकार ने बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2100 रुपए प्रति क्विंटल तय कर रखा है|

किसान बिलों मे वर्णित कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग का विरोध कर रहे हैं काँग्रेस शासित पंजाब मे कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग का फार्मूला पहले से चलता आ रहा है|

कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के पीछे किसानों का तर्क है की इससे निजी कंपनी खुद उनकी फसल का मूल्य तय करेंगी जबकि वास्तव मे इन बिलों मे यही कानून है की कोई भी निजी कारोबारी किसानों की फसल को MSP से कम दम पर नहीं खरीद सकता और कंपनी को फसल की आधी कीमत केवल 3 दिनों मे और बाकी की कीमत 15 दिनों मे किसान को देनी होंगी, यदि कोई कंपनी किसान की फसल की गुणवत्ता खराब बताकर उनकी फसल नहीं खरीदती तो इस संबंध मे कमेटी गठित की जाएगी जो तीन दिनों मे अपनी रिपोर्ट देकर फसल की गुणवतत तय करेगी ,जब निजी कारोबारी खेत मे आकर किसान की फसल को खरीदेंगे तो किसान का मंडी मे जाने का पैसा बचेगा, किसानों को आढ़तियों को कोई पैसा नहीं देना होगा तो किसान को कम खर्चे पर अपनी फसल के बेहतर दम मिलेंगे|

क्या आपने कभी सोचा है की किसान जिस प्याज को 10 रुपए किलो मे बेचता है और जिस भिंडी को 2 रुपए किलो मे बेचता है वो प्याज हमारे पास आते आते 120 रुपए और भिंडी 40 रुपए का क्यों हो जाता है, क्योंकि किसान की मेहनत का पैसा बिचौलिये और आढ़ती ले जाते है और किसान को एक तिहाई लाभ ही मिल पता है, इसीलिए ये बिल किसानों को बिचौलिये से मुक्त कराने और उनकी आय बढ़ाने का विकल्प हैं

ये बिल किसानों को उनकी फसल को सरकारी मंडी के साथ साथ निजी कारोबारी को बेचने का एक अन्य माध्यम पेश करेंगे और किसानों की आय बढ़ाने मे एक सशक्त कदम साबित होंगे|

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