छात्र राजनीति का यह मतलब नहीं है कि छात्र होने के कारण उसका फायदा उठाया जाए। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दो वर्ष क्षेत्र में घूमते रहना और भाषण करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ लेना कोई बड़प्पन नहीं है। हो सकता है आप जीत जाएं पर उसका परिणाम क्या होगा। अपरिपक्व होने से आपके कार्यशैली पर सवाल खड़े होंगे। कई छात्र नेताओं के मैंने भाषण सुने कोई कहता है लाइब्रेरी खोलूंगा , आज घर घर स्मार्ट फोन और सस्ता इंटरनेट है जो हर सामग्री उपलब्ध कराता है फिर फंड का दुरुपयोग क्यूं करना। कई कह रहे हैं आम का जूस बाहर 100 रुपए में मिलता है और बिहार से 10 के भाव खरीद के ले जाते हैं। आम के जूस की फैक्ट्री खोलूंगा। भाई हम मुफ्त में ही ताजा आम का रस पी लेते हैं फिर वो जूस फैक्ट्री से कितना रोजगार मिलेगा।
उसकी पैकिंग , ब्रांडिंग में बड़े यंत्र लगते हैं जितने में आप बनाओगे उसके आधे दाम में बना बनाया मिल जाता है। आपके राज्य में कितने लोग आम का जूस पीते हैं डब्बा वाला , कितनी खपत होगी क्या आपने इसका सर्वे किया है या बस नेता बन गए कुछ बोलना है तो बोल देते हैं।
आपने क्या किया है ऐसा क्रांतिकारी जो समाज आपको अपना नेता चुने।
क्या आपने कभी किसी टीम को लीड किया है जिसमें सदस्यों के साथ मिलकर निर्धारित लक्ष्य प्राप्त किए हैं जो आपके इर्द गिर्द लोगों को उनका सामूहिक लाभ मिला हो या बस किसी मुद्दे को पकड़ कर व्यक्तिगत उपलब्धि मात्र के लिए आंदोलन का हिस्सा बनें।
आपके व्यक्तिगत जीवन की क्या जिम्मेदारी निभाई है आपने क्या संघर्ष किया है आप किस परिस्थितियों से गुजरे हैं यह महत्व रखता है।
यह फर्क नहीं पड़ता कि कोई गरीब के बेटे हैं या कोई करोड़पति के बेटे हैं। चुनाव तथ्य और मुद्दे पर होना चाहिए।
आज के छात्र नेता वोट कटुआ राजनीति में उलझ गए हैं
बहुत ऐसे पहलू हैं जिसपर आपको अभी काफी अध्ययन की जरूरत है।
ऐसे नेताओं से जनता गुमराह ना हों।
जन जन की बात
अमित कुमार के साथ।
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