संस्कृत सप्ताह पर विशेष

प्रस्तावना :  प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा को ‘संस्कृत दिन ‘मनाया जाता है। संस्कृत ईश्वर द्वारा निर्माण की गई भाषा है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।  “संस्कृत भाषा का महत्व पश्चिमी देशों ने भी पहचाना है। पश्चिमी कंप्यूटर विशेषज्ञ ऐसी भाषा की खोज में थे, जिसका कंप्यूटर प्रणाली में उपयोग करके उसे विश्व की किसी भी 8 भाषाओं में उसका परिवर्तन हो सके । ऐसी क्षमता उन्हें संस्कृत भाषा में पाई । संस्कृत कंप्यूटर प्रणाली के लिए उपयुक्त होने वाली विश्व की विभिन्न भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ भाषा है। वेद,उपनिषद ,गीता आदि धर्म ग्रंथ संस्कृत में है। जिस देववाणी संस्कृत ने मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाया वह देववाणी भाषा आज समाप्त होने की स्थिति में हैं। यह भाषा समाप्त न हो इसके लिए सभी को प्रयत्न करना आवश्यक है। संस्कृत भाषा की सुंदरता और उसकी महानता सभी को समझ में आए इसीलिए यह लेख प्रस्तुत किया गया है। 

संस्कृत भाषा की निर्मिति – संस्कृत भाषा किस प्रकार निर्माण हुई यह बताते हुए पश्चिमी देशों के कुछ लोगों का यह कहना है कि पहली बार मानव को अपने मुख से आवाज आती है, यह पता चला तो उस आवाज से संकेत,संकेत से चिन्ह और चिन्हों से अक्षर बने । उसमें से ही बारहखड़ी, वस्तुओं के नाम इस प्रकार से सभी भाषा और संस्कृत भाषा का भी निर्माण हुआ । वैसे यह सब असत्य है । ईश्वर के संकल्प से ही सृष्टि का निर्माण हुआ। मानव की निर्मिति के पश्चात मानव के लिए आवश्यक सभी कुछ ईश्वर ने दिया। इतना ही नहीं, मानव को भविष्य में और जिन-जिन वस्तुओं की आवश्यकता होगी वह सब भी देने की व्यवस्था उन्होंने की है। सृष्टि की निर्मिति के पूर्व ईश्वर ने मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति के लिए उपयोगी और चैतन्यता से भरपूर ऐसी एक भाषा का निर्माण किया और उस भाषा का नाम है ‘संस्कृत’।

प्रचंड शब्द भंडार से परिपूर्ण यह भाषा  – ‘स्त्री ‘ इस शब्द के लिए नारी, अर्धांगिनी, वामांगिनी, वामा, योषिता ऐसे अनेक शब्द संस्कृत में है। यह प्रत्येक शब्द स्त्री की सामाजिक कौटुंबिक, और धार्मिक भूमिका दर्शाता है। संस्कृत भाषा का शब्द भंडार इतना प्रचंड है कि उसकी जानकारी लेने के लिए एक जीवन भी अपूर्ण है।

एक प्राणी, वस्तु और देवता के अनेक नाम वाली संस्कृत भाषा – संस्कृत में प्राणी वस्तु इत्यादि के अनेक नाम देने की प्रथा होती है उदाहरण के लिए बैल को बलद , वृषभ, गोनाथ ऐसे 60 से अधिक नाम है। हाथी के गज, कुंजर, हास्तिन्, दंतिन, वारण, ऎसे सौ से अधिक नाम है। सिंह को वनराज, केसरीन, मृगेंद्र, शार्दूल ऐसे 80 से अधिक नाम है। पानी को जल, जीवन, उदक, पय, तोय, आप; सोने के लिए स्वर्ण कंचन, हेम, कनक, हिरण्य आदि नाम है। सूर्य के 12 नाम, विष्णु सहस्त्रनाम, गणेश सहस्त्रनाम कुछ लोगों को तो कंठस्थ है। उस में से प्रत्येक नाम उन उन देवताओं का एक विशिष्ट विशेषता बताता है।

वाक्य के शब्द आगे पीछे करने पर भी अर्थ नहीं बदलता। वाक्य में शब्द कहीं भी हो तो भी वाक्य का अर्थ नहीं बदलता, उदाहरण के लिए राम: आम्रं खादति। अर्थात राम आम खाता है, यह वाक्य कैसे भी लिखें तो भी उसका अर्थ वही रहता है आम्रं खादति राम:। या फिर खादति राम:आम्रं । इसके अतिरिक्त अंग्रेजी वाक्य में शब्दों का स्थान बदलने पर अर्थ भी बदल जाता है उदाहरण के लिए “राम ईट्स मैंगो” अर्थात “राम आम खाता है” यह वाक्य यदि ‘मैंगो ईट्स राम’ इस प्रकार लिखा जाए तो उसका अर्थ “आम राम को खाता है” इस प्रकार हो जाएगा।

जहां संस्कृत का अध्ययन होता है वहां संस्कृति वास करती है – देववाणी या संस्कृत का उच्चारण भी यदि कानों में सुनाई देता है तो भी आनंद होता है। संस्कृति संस्कृत पर आश्रित है ऐसा कहा जाता है। इसका यह अर्थ है कि संस्कृति ही संस्कृत का आश्रय होती है अर्थात जहां संस्कृत का अध्ययन होता है वहां संस्कृति वास करती है। संस्कृत का अभ्यास करने वाले व्यक्ति संस्कृतिशील और शिष्टाचारी होते हैं।

एक भारत की पहचान – प्राचीन काल से संस्कृत अखिल भारत की भाषा जानी जाती थी। कश्मीर से लेकर लंका तक, गांधार से लेकर मगध तक के विद्यार्थी नालंदा, तक्षशिला, काशी आदि विश्वविद्यालयों में अनेक शास्त्र और विद्या का अध्ययन करते थे। इस भाषा के कारण रूदट, कैय्यट, मम्मट इन कश्मीरी पंडित के ग्रंथ रामेश्वर तक प्रसिद्ध हुए। आयुर्वेद के चरक पंजाब में, सुश्रृत वाराणसी में, वाग्भट सिंध में, कश्यप कश्मीर में तथा वृंद महाराष्ट्र में, यह सब संस्कृत के कारण ही भारतमान्य हुए।

राष्ट्रभाषा संस्कृत होती तो राष्ट्रभाषा के लिए लड़ाई नहीं होती – राष्ट्रभाषा कौन सी होनी चाहिए, इसके लिए संसद में विवाद हुआ। दक्षिण भारत नें हिंदी का कड़ा विरोध किया। एक फ्रेंच विशेषज्ञ ने कहा “अरे आप लोग क्यों लड़ते हो ? संस्कृत ही आप की राष्ट्रभाषा है। वही शुरू कीजिए ” संस्कृत जैसी पवित्र देवभाषा आप लोगों ने भुला दिया तो फिर लड़ाई नहीं होगी तो और क्या होगा ? सभी भाषाओं की जननी संस्कृत (अ-मृत है) देव वाणी का ध्वज अब विश्व स्तर पर पहुंच गया है और उसका श्रेय भाषा के लिए आगे बढ़कर कार्य करने वाले लोगों को जाता है। सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा पूर्व ही नहीं पश्चिम के लोगों को भी आकर्षित करती है। भारत की ही नहीं बल्कि संसार की मूल भाषा संस्कृत है और उसी से उत्पन्न सभी भाषाएं प्राकृत हैं।  संस्कृत देव भाषा होने के कारण उसमें अपार चैतन्य है, वह अमृत है,अमर है !!’

हिंदू संस्कृति का संस्कृत भाषा रूपी चैतन्यमय विरासत टिकाकर रखने के लिए संस्कृत सीखिए – कालिदास, भवभूति आदि महाकवियों की प्रतिभा संस्कृत में ही खिली हैं। संस्कृत में चैतन्य हैं। संस्कृत में लिखे हुए संस्कृत की लिखाई का अर्थ यदि समझ में नहीं आया तो भी उसकी चैतन्यता व सात्विकता का लाभ होता ही है। संस्कृत में चैतन्य है। संस्कृत ही वाणी, मन और बुद्धि को शुद्ध करने वाली भाषा है। अपनी प्राचीन संस्कृत भाषा का महत्व जानिए। हिंदू संस्कृति का ‘संस्कृत भाषा रूपी चैतन्यमय विरासत टिका कर रखने के लिए संस्कृत सीखिए और स्कूलों में भी संस्कृत विषय सिखाने के लिए आग्रह कीजिए!’ 

संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘देववाणी संस्कृति की विशेषताएं और संस्कृत को बचाने के उपाय’

चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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