सुभाष चंद्र बोस को कौन नहीं जानता ? देश का बच्चा बच्चा उनकी गौरव गाथा को सुनता आया है | सुभाष बाबू कांग्रेस के और आजाद हिन्द फ़ौज के अध्यक्ष भी रह चुके थे | महात्मा गाँधी ने उन्हें देशभक्तो का देशभक्त कहकर सम्बोधित किया था | आज इस अफवाह भरी दुनिया ने महात्मा गाँधी और सुभाष बाबू के बीच एक दीवार बना दी है | सुभाष चंद्र बोस के बिना पढ़े लिखे प्रशंसक अक्सर महात्मा गाँधी को बेइज्जत करने के लिए जाने क्या क्या प्रलाप किया करते है | जबकि नेताजी और गांधीजी के बीच तमाम मतभेद होने के बावजूद मनभेद नहीं हुआ | नेताजी गांधीजी को पिता तुल्य मानते थे , वे गांधीजी की बड़ी इज्जत करते थे | उन्होंने ही सर्वप्रथम गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा था |

 

The speech of Netaji Subhash Chandra Bose in which he called Gandhiji the Father of the Nation
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6 जुलाई 1944 को नेताजी ने रंगून रेडियो स्टेशन से गांधीजी को राष्ट्रपिता सम्बोधित कर उनसे आजाद हिन्द फ़ौज के लिए आशीर्वाद माँगा थी | आइये जानते है नेताजी ने अपने भाषण में गांधीजी के लिए क्या कहा था –

 

महात्मा जी ,

अब आपका स्वास्थ्य पहले से कुछ बेहतर है और आप थोड़ा बहुत सार्वजानिक काम फिर से करने भी लगे है , इसीलिए मै भारत में रह रहे राष्ट्रभक्त भारतीयों की योजनाओ और गतिविधियों का ब्यौरा आपको देना चाहता हु | मै आपके बारे में भी भारत से बाहर रह रहे आपके देशवासियो के विचार आप तक पहुंचना चाहता हु | और इस बारे में मैं जो कुछ कह रहा हु वह सत्य है – और केवल सत्य है |

भारत और भारत के बाहर अनेक भारतीय है , जो यह मानते है की संघर्ष के ऐतिहासिक तरीके से ही भारत की आजादी प्राप्त की जा सकती है | ये लोग ईमानदारी से यह अनुभव करते है की ब्रिटिश सरकार नैतिक दबावों अथवा अहिंसक प्रतिरोध के समक्ष घुटने कभी नहीं टेकेगी , फिर भी भारत में रह रहे भारतीय ,तरीको के मतभेद को घरेलु मतभेद जैसा मानते है

जबसे आपने दिसंबर 1929 की लाहौर कांग्रेस में स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित कराया था , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  सदस्यों के समक्ष एक ही लक्ष्य था | भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों को दृष्टि में आप हमारे देश की अंतर्मन जागृति के जनक है और वे इस पद के उपयुक्त सम्मान आपको देते है | दुनिया भर के लिए हम सभी भारतीय राष्ट्रवादियों का एक ही लक्ष्य है एक ही आकांक्षा है | 1941 में भारत छोड़ने के बाद मैंने ब्रिटिश प्रभाव से मुक्त जिन देशो का दौरा किया है , उन सभी देशो में आपको सर्वोच्च सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है – पिछली शताब्दी में किसी अन्य भारतीय राजनेता को ऐसा सम्मान कभी भी नहीं मिला है |

वस्तुतः आपकी और आपकी उपलब्धियों की सराहना उन देशो की तुलना में जो स्वयं को स्वतंत्र और जनतंत्र का मित्र कहते है , उन देशो में हजार गुना ज्यादा है जो ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध है | अगस्त 1942 में जब आपने भारत छोडो प्रस्ताव पारित करवाया तो भारत से बाहर बसे राष्ट्रभक्त भारतीयों और भारतीय स्वाधीनता के विदेशी मित्रो की निगाह में आपका सम्मान कही अधिक बढ़ गया है |

ब्रिटिश सरकार के अपने अनुभवों के आधार पर मै बड़ी ईमानदारी से यह महसूस करता हु की ब्रिटिश सरकार भारतीय स्वतंत्रता की मांग को भी स्वीकार नहीं करेगी | आज ब्रिटैन विश्वयुद्ध जीतने के लिए भारत का आधिकारिक शोषण करना चाहता है | इस महायुद्ध के दौरान ब्रिटैन ने अपने क्षेत्र का एक हिस्सा दुश्मनो को खो दिया है और दूसरे पर उसके दोस्तों ने कब्ज़ा कर लिया है | यदि मित्र राष्ट्र कभी जीत भी गए तो भविष्य में ब्रिटेन नहीं , अमेरिका शीर्ष पर होगा और इसका मतलब यह होगा की ब्रिटेन अमेरिका का आश्रित देश बन जायेगा |

ऐसी स्थति में ब्रिटैन में अपने वर्तमान नुकसान की भरपाई के लिए पूरी तैयारी की जा रही है | यह जानकारी मुझे अपने गोपनीय और विश्वस्त सूत्रों से मिली है और मै अपना यह कर्त्तव्य समझता हु की आपको इसके बारे में सूचित करू |

देश में या विदेश में ऐसा कोई भी भारतीय नहीं होगा जिसे प्रसन्नता नहीं होगी – यदि आपके बताये रास्तो से , बिना खून बहाये , भारत को आजादी मिल जाये | लेकिन स्थितियों को देखते हुए मेरी यह निश्चित धारणा बन गयी है की यदि हम आजादी चाहते है तो हमें खून की नदिया पार करनी होगी |

यदि स्थिति हमें भारत के भीतर ही सशस्त्र संघर्ष संगठित करने की सुविधाएं देती तो यह हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग होता | लेकिन महात्माजी , आप अन्य किसी की अपेक्षा भारत की स्थितियों को शायद बेहतर समझते है | जहा तक मेरा सम्बन्ध है , भारत में बीस साल तक सार्वजानिक जीवन में रहने के बाद मैं इस निष्कर्ष में पंहुचा हु की भारत के बाहर बसे भारतीयों की मदद और कुछ विदेशी शक्तियों की मदद बिना भारत में संघर्ष करना असंभव है |

इस युद्ध से पहले विदेशी शक्तियों की मदद लेना बहुत मुश्किल था और न ही विदेशो में बसे भारतीयों से पर्याप्त मदद ली जा सकती थी | लेकिन युद्ध ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधियो से राजनितिक और सैन्य सहायता प्राप्त करने की सम्भावना को बढ़ा दिया है | लेकिन उनसे किसी प्रकार की मदद की अपेक्षा करने से पहले मेरे लिए यह जानना जरुरी था की भारत की आजादी की मांग के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या है ? यही जानने के लिए मैंने भारत छोड़ना जरुरी समझा था | लेकिन यह निर्णय करने से पहले मेरे लिए यह तय करना भी जरुरी था की विदेशी मदद लेना सही होगा भी या नहीं |

महात्माजी ,मै आपको आश्वस्त करना चाहता हु की महीनो के विचार मंथन के बाद मैंने इस मुश्किल रास्ते पर चलना स्वीकार किया था | इतने लम्बे अरसे तक अपने देश की जनता की भरसक सेवा करने के बाद मुझे देशद्रोही होने अथवा किसी को मुझे देशद्रोही कहने का अवसर देने की क्या जरुरत थी ?

यदि मुझे इस बात की जरा भी उम्मीद होती की बाहर से कार्रवाई के बिना हम आजादी पा सकते है तो मै इस तरह भारत नहीं छोड़ता भाग्य मेरे साथ हमेशा से है | अनेक कठिनाइयों के बावजूद अब तक मेरी सारी योजनाए सफल हुयी है | देश से बाहर मेरा पहला काम अपने देशवासियो को संगठित करना था और मुझे यह कहते हुए ख़ुशी हो रही है की वे सब जगह भारत को आजाद करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है | इसके बाद मैंने उन सरकारों से संपर्क किया जो हमारे दुश्मनो के साथ युद्ध कर रही है और मैंने पाया की सारे ब्रिटिश प्रचार के विपरीत , धुरी राष्ट्र भारत की आजादी के समर्थक है और वे हमारी मदद करने के लिए तैयार है |

 

The speech of Netaji Subhash Chandra Bose in which he called Gandhiji the Father of the Nation
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मै जानता हु की हमारा शत्रु मेरे खिलाफ प्रचार कर रहा है लेकिन मुझे विश्वास है की मुझे अच्छी तरह जानने वाले मेरे देशवासी इस कुप्रचार के झांसे में नहीं आएंगे | राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए मै जिंदगी भर लड़ता रहा हु और इसे किसी विदेशी ताकत को सौपने वाला मै अंतिम व्यक्ति होऊंगा | दूसरे , किसी विदेशी ताकत से मुझे क्या व्यक्तिगत लाभ हो सकता है ? मेरे देशवासियो ने मुझे वह सबसे बड़ा सम्मान दिया है , जो किसी भारतीय को मिल सकता है | इसके बाद किसी विदेशी ताकत से कुछ पाने के लिए मेरे लिए रह भी क्या जाता है ?

मेरा घोर से घोर शत्रु भी यह कहने का दुस्साहस नहीं करेगा की मै राष्ट्र की इज्जत और सम्मान बेच सकता हु और मेरा घोर से घोर शत्रु भी यह नहीं कह सकता की देश में मेरी कोई इज्जत नहीं थी और मुझे देश में कुछ पाने के लिए विदेशी मदद की जरुरत थी | भारत छोड़कर मैंने अपना सब कुछ दांव पर लगाया था | लेकिन यह खतरा उठाये बिना मै भारत की आजादी प्राप्त करने में कोई योगदान नहीं कर सकता था | मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे भारत के आत्मसम्मान और मेरे देशवासियो पर किसी तरह की आंच आती हो |

यदि पूर्वी एशिया के भारतीय बिना त्याग किये और बिना किसी प्रयास के जापान से मदद लेते तो वे गलत काम करते | लेकिन एक भारतीय के रूप में मुझे इस बात की ख़ुशी और गर्व है की पूर्वी एशिया में मेरे देशवासी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए हर तरह का प्रयास करते रहे है और हर तरह की क़ुरबानी देने के लिए तैयार है |

महात्माजी , अब मै अपनी अस्थायी सरकार के बारे में कुछ कहना चाहता हु | जापान , जर्मनी और सात अन्य मित्र देश शक्तियों ने आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार को मान्यता दे दी है और इससे सारी दुनिया में भारतीयों का सम्मान बढ़ा है | इस अस्थायी सरकार का एक ही लक्ष्य है सशस्त्र संघर्ष करके अंग्रेजो की गुलामी से भारत को मुक्त करना | एक बार दुश्मनो के भारत छोड़ने के बाद और व्यवस्था स्थापित होने के बाद अस्थायी सरकार का काम पूरा हो जायेगा | तब भारत के लोग स्वयं तय करेंगे की उन्हें कैसी सरकार चाहिए और कौन उस सरकार को चलाएगा |

यदि हमारे देशवासी अपने ही प्रयासों से अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हो जाते है अथवा यदि ब्रिटिश सरकार हमारे भारत छोडो प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो हमसे अधिक प्रसन्नता और किसी को नहीं होगी | लेकिन हम यह मानकर चल रहे है की इन दोनों में से कोई भी संभव नहीं है और सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य है |

युद्ध के दौरान दुनिया भर में घूमने के बाद और भारत बर्मा सीमा पर तथा भारत के भीतर दुश्मन की अंदरूनी कमजोरियों को देखने के बाद और अपनी ताकत और साधनो का जायजा लेने के बाद मुझे इस बात का पूरा भरोसा है की आखिर जीत हमारी होगी |

भारत की आजादी का आखिरी युद्ध शुरू हो चूका है | आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिक भारत की भूमि पर बहादुरी से लड़ रहे है और इस तरह की कठिनाई के बावजूद वे धीरे धीरे किन्तु दृणता के साथ  | जब तक आखिरी ब्रिटिश भारत से बहार नहीं फेक दिया जाता और जब तक नयीदिल्ली से वायसराय हाउस पर हमारा तिरंगा शान से नहीं लहराता , यह लड़ाई जारी रहेगी |

 हमारे राष्ट्रपिता ! भारत की आजादी की इस पवित्र लड़ाई में हम आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओ की कामना कर रहे है | जय हिन्द !

 

( यह लेख नेताजी सम्पूर्ण वांग्मय तथा राजशेखर व्यास द्वारा लिखित पुस्तक – सुभाषचंद्र बोस – कुछ अधखुले पन्ने से लिया गया है | )

 

आज जिस तरह इन दो महापुरुषों के बीच अफवाह फैलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है वह देखकर स्वयं नेताजी भी दुखी होते होंगे | आज वक़्त है हमें आगे आने का, अपने खूबसूरत और संघर्षशील इतिहास के बारे में सत्य बताने का | इस लोकतंत्र की खूबसूरती बनाये रखने के लिए हमारा साथ दीजिये

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