मैं स्वयं से ही पल प्रतिपल युद्ध करता हूँ कभी पराजित होकर दुःख मनाता हूँ कभी विजयी होकर उत्सव मनाता हूँ लेकिन पल प्रतिपल स्वयं से युद्ध करता रहता हूँ | हो सकता है कि कुछ गुणों को परमेश्वर ने मेरे अंतर्मन में समाहित किया हो लेकिन अवगुणों की खान हूँ, इसलिए स्वयं से युद्ध आवश्यक हैं | अपनी पराजय को विजय में परिवर्तित करने के लिए स्वयं से युद्ध कर रहा हूँ | राजा अशोक ने विजयी होकर भी पराजय स्वीकार की तथा स्वयं से युद्ध करके सम्राट अशोक बन गये | मुझे सम्राट अशोक बनने की चाह नही है लेकिन मानवता निभाने के लिए स्वयं से युद्ध करके मानव बनने की चाह है | ***डॉ पांचाल |
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.