हाल ही में भारत के एक न्यूज पोर्टल पर आरोप लगा है कि ‘उसे वर्तमान सरकार की आलोचना और भारत की छवि खराब करने के लिए चीन द्वारा पैसे दिए गए हैं।’हालांकि इस आरोप में कितनी सच्चाई है अभी उस पर टिप्पड़ी करना उचित नही है मगर अगर चीन का इतिहास देखें तो ये घटना न तो नई है और न ही पहली बार घटी है। चीन आज के दौर में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसके पास लगभग 3330 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार है और पैसे की यही हनक वह दुनिया भर को दिखाता रहता है। चीन दुनिया भर की मीडिया को अपने पक्ष में रखने व चीन की छवि सुधारने के लिए अरबों डॉलर का बजट रखता है, और देखा जाए तो इसका सबसे बड़ा शिकार है अमेरिकन मीडिया।

अभी हाल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के 100 साल पूरा होने पर CNN ने जिस तरह से माओ से लेकर राष्ट्रपति शी तक की तारीफ में बड़े बड़े लेख छापे थे या घंटो के प्रोग्राम किये उसे देखकर प्रतिद्वंद्वी मीडिया हाउस हैरान थे। यद्यपि ऐसा नही है कि ऐसे आरोप सिर्फ CNN पर ही लगे है, अलग अलग वक्त में चीन का प्रभाव वहाँ के दूसरे बड़े मीडिया हाउस में अक्सर देखे जातें रहें हैं। वास्तव में देखा जाए तो चीन की दखलदांजी सिर्फ मीडिया हाउस तक ही सीमित नही है। चीन अमेरिका समेत दुनिया की तमाम प्रभावशाली विश्वविद्यालयों को भी डोनेशन के नाम पर अरबों डॉलर देता रहा है और उसके बदले वह उनके शोधों, और पाठ्यक्रमों में कॉम्युनिज्म या चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सकारात्मक पहलुओं को शामिल करने के लिए दबाव बनाता रहता है और दुर्भाग्य से ऐसी ज्यादातर विश्वविद्यालय अमेरिका के ही हैं।

हालांकि भारत मे सीधे तौर पर ऐसे आरोप पूर्व में कभी नही लगे लेकिन इसका मतलब ये नही है कि भारत के मीडिया संस्थान या विश्वविद्यालय पूर्व में चीन के प्रभाव से दूर रहे होंगे या अभी भी दूर होंगे और ये संभावना तब और प्रबल हो जाती है जब चीन की दुनिया भर के मीडिया को खरीद लेने की कोशिश से बचने के लिए भारत या अमेरिका समेत दुनिया की किसी लोकतांत्रिक सरकार को रास्ता नज़र नही आता। अगर भारत और अमेरिका की बात करें तो दोनो ही लोकत्रांत्रिक देश हैं और यहाँ की मीडिया तुलनात्मक रूप से स्वतंत्र हैं। अतः दोनों देश मीडिया हाउस के मालिकों के खातों में हो रहे हर ट्रांसक्शन के न तो इतनी गहराई से जांच कर सकतें है न ही उनकी संपत्तियों का व्योरा मांग सकतें है क्योंकि ऐसी स्थिति में मीडिया हाउस दबाव महसूस करेंगा जिसका असर जहाँ एक ओर उनकी रिपोर्टिंग में दिखेगा वही दूसरी ओर मीडिया को दबाने के आरोप में उन्हें भारी आलोचनाओ का सामना करना पड़ सकता है।

भारत या दुनिया का कोई देश अगर अपने देश की मीडिया पर पाबंदियां लगाने की जगह अगर चीन को काउंटर करना चाहे और सोचे कि वह चीन की ही तर्ज पर चीन की मीडिया को प्रभावित करके वही करे जो चीन दुनिया भर की मीडिया को प्रभावित करके कर रहा है तो ऐसा भी संभव नही है और इसके दो कारण है। पहला ये कि चीन में मीडिया सरकार द्वारा कंट्रोल्ड है अतः उसे प्रभावित करने संभव नही है और दूसरा ये कि लोकतांत्रिक देश होने के कारण दोनो ही देश अरबो डॉलर का बजट सिर्फ अपनी तारीफ करवाने के लिए नही बना सकते क्योकि टैक्स पेयर को इसका हिसाब भी देना है जबकि चीन के सामने पैसे के हिसाब से जुड़ी हुई ऐसी कोई बंदिशें नही है।

-राजेश आनंद

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