गांधी की जिद्द ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा के अवसर से वंचित कर दिया! यदि नेहरू की जगह पटेल देश के प्रधानमंत्री बने होते तो 70 वर्षों से जेहाद की आग में जल रहे जम्मू कश्मीर का स्वरूप आज एक आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य के रूप में होता। देश के कोने कोने में फल फूल रहे मिनी पाकिस्तान का नामो निशान ही नहीं होता!जातीयता के आधार पर भारतीय समाज को बांटने वाले षडयंत्रकारीयों को फलने-फूलने का अवसर नहीं मिलता! 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलय करने तथा जूनागढ़ व हैदराबाद जैसी रियासतें को पाकिस्तान के साथ जाने से रोकने का ऐतिहासिक निर्णय भी सरदार पटेल की दूरदर्शिता को दर्शाता है! मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा विध्वंस किये सोमनाथ मंदिर का नेहरू के घोर विरोध के बावजूद सरदार पटेल के प्रयासों से जिर्णोद्वार संभव हो पाया! बारडोली सत्याग्रह का सफलतम नेतृत्व करने के कारण वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि से विभूषित किया!

वर्णभेद व वर्गभेद के कट्टर विरोधी पटेल की मृत्यु के बाद उनके खाते में मात्र 260/- रुपये पाए गए एवं उनके पास उनका स्वयं का मकान तक भी नहीं था!

ऐसे राष्ट्र नायक को उनके निधन के 41 वर्ष बाद राष्ट्र के सर्वोच्च पुरूस्कार भारत रत्न से सुशोभित किया गया! सरदार पटेल को अपना आदर्श मानने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के साधु- बेट द्वीप (केवड़िया) में 182 मीटर ऊंची पटेल की प्रतिमा स्टेच्यु आॅफ यूनिटी का निर्माण कर महान राष्ट्रनायक की स्मृति को अक्षुण्ण बनाने का प्रयास देशवासियों को उनके पदचिन्हों पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा! 31 अक्टूबर उनकी जन्मतिथि पर उनका पुनीत स्मरण भारतीयों के रग-रग में राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा करता है!

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