गणेश जी की तरंगें जिस दिन प्रथम पृथ्वी पर आई, अर्थात जिस दिन गणेश जन्म हुआ, वह दिन था माघ शुक्ल चतुर्थी । तब से भगवान श्री गणपति का और चतुर्थी का संबंध जोड़ दिया गया । माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी ‘श्री गणेश जयंती’ के रूप में मनाई जाती है । इस तिथि की विशेषता यह है कि इस दिन अन्य दिनों की तुलना में गणेश तत्त्व 1 सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है । इस तिथि पर की गई श्री गणेश की उपासना से गणेश तत्त्व का लाभ अधिक होता है । इस लेख में शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं इस विषय का महत्व जानने वाले हैं।
प्रदूषण मुक्त एवं शास्त्रानुसार गणेशोत्सव मनाकर श्री गणेश की कृपा संपादन करें ! – भगवान श्री गणेश सर्व हिंदुओं के आराध्य देवता हैं । इसके साथ ही भगवान गणेश बुद्धि के देवता भी हैं । गणपति सभी को आनंद देने वाले देवता हैं । ऐसे देवता का उत्सव जब हम शास्त्र के अनुसार मनाएंगे, तब हम पर गणपति देवता की कृपा होगी ।
सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाने के पीछे की पार्श्वभूमि – लोकमान्य तिलक द्वारा सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाना आरंभ किया गया । हम पहले घर-घर गणपति बैठाते थे और आज भी वह परंपरा चली आ रही है । तब भी लो. तिलक द्वारा सार्वजनिक उत्सव क्यों आरंभ किया गया ? वह इसलिए कि हमारी संकीर्णता घर तक ही सीमित न रहे, अपितु पूर्ण गांव एवं नगर में सर्व लोग अपना भेदभाव एवं लडाई-झगडे भुलाकर एकत्र आएं और सभी में संगठित होने की भावना बढे । ‘मेरा घर मेरे गणपति’ इसकी अपेक्षा ‘मेरा गांव और मेरे गणपति’, यह व्यापक विचार प्रत्येक के मन पर अंकित हो, इसके लिए यह उत्सव सार्वजनिक किया गया ।
संगठितता बढाना – उस समय अंग्रेज अत्याचार कर रहे थे । ऐसी स्थिति में हम सभी संगठित रहें, यही लोकमान्य तिलक का उद्देश्य था । आज देश के सामने आतंकवाद के साथ-साथ अनेक समस्याएं हैं और उन्हें दूर करने के लिए हम सभी को संगठित रहना चाहिए ।
धर्म की शिक्षा न होने के कारण शास्त्र ज्ञात न होने से अनेक अनाचार का समावेश होना – गणेशोत्सव शास्त्र के अनुसार मनाना चाहिए, तब ही हम पर श्री गणपति की कृपा होगी । हमें धर्म की शिक्षा न दी जाने के कारण ‘गणेश’के नाम का भावार्थ भी नहीं ज्ञात है, गणेश पूजन शास्त्र के अनुसार कैसे मनाएं, यह भी ज्ञात नहीं; इसलिए आज अपने उत्सवों में अनेक अनाचार हो रहे हैं । उन्हें रोकने से ही हम पर श्री गणपति की कृपा होने वाली है ।
शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ? – उत्सव के लिए बनाए जाने वाले श्री गणेश की झांकी अथवा साज-सज्जा सात्विक तथा पर्यावरण के लिए घातक न होने वाली होनी चाहिए – हम गणेश चतुर्थी आने से दो दिन पूर्व सजावट करते हैं । सजावट सात्विक और पर्यावरण के लिए घातक नहीं होनी चाहिए । भगवान गणेश जी का मंडप बांस से बनाएं । उसकी साज-सज्जा के लिए केले के तने का उपयोग कर सकते हैं । नैसर्गिक वस्तुओं का अधिकाधिक उपयोग करने से उन वस्तुओं को विसर्जित कर सकते हैं और उनसे पर्यावरण पर घातक परिणाम भी नहीं होता है । इसके साथ ही यदि उनमें से टिकाऊ वस्तुएं यदि घर में रह जाएं, तब भी उसमें आए हुए गणेश तरंगों के चैतन्य का लाभ गणेशोत्सव के उपरांत भी घर के सभी सदस्यों को प्राप्त होता है और घर का वातावरण आनंदमय रहता है ।
कागज की पताका का उपयोग करना – साज-सज्जा के लिए कागज की पताकाओं का उपयोग कर सकते हैं । इससे साज-सज्जा अच्छी होती है । तदुपरांत कागद विसर्जित कर सकते हैं ।
आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं – आम के पत्तों के बंदनवार का अधिकाधिक उपयोग करें । इस कारण वातावरण की गणेश तरंगों का अधिकाधिक लाभ होता है एवं किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है ।
अयोग्य प्रकार की तथा पर्यावरण के लिए घातक साज-सज्जा टालना
थर्माकोल के कारण प्रदूषण में वृद्धि होना : आजकल हमें शास्त्र ही ज्ञात न होने के कारण साज-सज्जा के लिए थर्माकोल का अत्यधिक उपयोग किया जाता है । थर्माकोल पानी में विसर्जित करने पर वह पानी में घुलता नहीं । जलाने से वातावरण में प्रदूषित होता है । इससे हम एक-प्रकार से प्रदूषण ही बढ़ाते हैं । यह श्री गणपति को अच्छा नहीं लगेगा । हमें प्रदूषणमुक्त साज-सज्जा ही करनी चाहिए ।
विद्युत दीप का अनावश्यक उपयोग करना : वर्तमान में हम साज-सज्जा के लिए रोशनी का अत्यधिक उपयोग करते हैं । अनेक रंगीन दीपकों का उपयोग, उसी प्रकार बड़ी मात्रा में बिजली की मालाओं का उपयोग करते हैं । इससे बिजली का अनावश्यक उपयोग होता है और बिजली व्यर्थ होती है । इससे गणेश तरंगों का अधिक लाभ नहीं होता है ।
बिजली बचाना, यह हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । इस गणेशोत्सव में हमें बिजली का अत्यंत अल्प उपयोग करके राष्ट्र की ऊर्जा बचानी है । हम देख ही रहे हैं कि अनेक गांवों में बिजली नहीं है । शहरों में भी अनेक घंटे बिना बिजली के रहना पड़ता है । तब राष्ट्र के एक दक्ष नागरिक के रूप में राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाना आवश्यक है । यही गणेश जी को अच्छा लगेगा ।
श्री गणेशजी की मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?
मूर्ति अति विशाल नहीं होनी चाहिए : श्री गणेशजी की मूर्ति 1 से 2 फुट की होनी चाहिए । मूर्तिशास्त्र ज्ञात न होने से 20 से 25 फीट की मूर्ति लाई जाती है । ऐसी विशाल मूर्ति को योग्य रूप से संभालना भी कठिन होता है । इस मूर्ति का विसर्जन करते समय उसे ढकेला जाता है, इससे देवता का अनादर होता है । इसलिए बडी मूर्ति लाने के लिए विरोध करना चाहिए ।
‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्ति की अपेक्षा प्रदूषण विरहित चिकनी मिट्टी की मूर्ति लाएं : अपने धर्मशास्त्र में बताए अनुसार गणेश मूर्ति चिकनी मिट्टी की होनी चाहिए । वह प्रदूषण विरहित होती है । आजकल हम ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्ति लाते हैं । वह शीघ्र पानी में नहीं घुलती है एवं मूर्ति के अवशेष पानी के बाहर आ जाने से मूर्ति का अनादर होता है । हमें लोगों का प्रबोधन करके चिकनी मिट्टी की ही मूर्ति लाने के लिए आग्रह करना चाहिए ।
कागज की लुगदी से बनाई गई मूर्ति का उपयोग करना अयोग्य : कागज की लुगदी से बनाई गई मूर्ति भी न लाएं; क्योंकि शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टी की मूर्ति में वातावरण में विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करने की क्षमता अधिक होती है । वह क्षमता कागज में नहीं है । अर्थात पूजक को श्री गणेश जी की तरंगों की पूजा करने से लाभ नहीं होगा ।
रासायनिक रंगों की मूर्ति न लाकर नैसर्गिक रंगों से रंगी मूर्ति का उपयोग करें : मूर्ति रंगने के लिए रासायनिक रंगों का उपयोग किया जाता है; परंतु शास्त्रानुसार नैसर्गिक रंगों का उपयोग करना चाहिए । जिससे मूर्ति विसर्जित करने पर उन रंगों के कारण प्रदूषण नहीं होगा । हमारे धर्मशास्त्र ने पर्यावरण का भी गहराई से विचार किया है । हमें लोगों को बताना चाहिए कि नैसर्गिक रंगों द्वारा उपयोग की हुई मूर्ति का ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसी से पर्यावरण की रक्षा होगी ।
श्री गणेशजी की मूर्ति – विचित्र आकारों में न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूप में मूर्ति बनाएं : मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में नहीं बनानी चाहिए । आजकल किसी भी आकार की मूर्ति बनाई जाती है । यह योग्य है क्या ? किसी नेता अथवा किसी संत के रूप में मूर्ति बनाते हैं । हमें इसका विरोध करना चाहिए । अपने माता-पिता जी को अलग रूप में दिखाया जाना किसी को अच्छा लगेगा क्या ? श्री गणेश जी जैसे मूल रूप में हैं, वैसी ही मूर्ति होनी चाहिए, तब ही श्री गणेश जी की शक्ति उस मूर्ति में आएगी एवं हमें उस शक्ति का लाभ होगा । इसलिए हमें ऐसी मूर्ति लाने का विरोध करना चाहिए ।
कौन से कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए ? : राष्ट्र प्रेम तथा भगवान के प्रति भक्ति भाव जागृत करने वाले कार्यक्रम होने चाहिए : गणपति लाने के उपरांत प्रवचन, कीर्तन, भजन, भक्ति भाव जागृत करने वाली नाटिका, क्रांतिकारियों के जीवन के प्रसंग बताने वाले व्याख्यान, राष्ट्रप्रेम जागृत करने वाले कार्यक्रम आयोजित करें । सिनेमा के गीतों पर नृत्य करना, सिनेमा के गीत-गायन का कार्यक्रम, संगीत कुर्सी इत्यादि कार्यक्रम न रखते हुए गणपति स्तोत्र पठन की स्पर्धा आयोजित करें । मित्रो, जिन कार्यक्रमों से भगवान के विषय में भक्ति भाव जागृत नहीं होगा, ऐसे कार्यक्रम रखना अयोग्य ही है । ऐसे कार्यक्रमों में सहभागी न हों । अन्यथा हम भी पाप के भागीदार होकर गणपति की अवकृपा के ही पात्र होगे ! हम भगवान से ही प्रार्थना करेंगे, ‘हे गणेश भगवान जी, मुझे ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहने की शक्ति आप ही दें ।’
संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘श्री गणपति’
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