प्रभु !
नंदी !
प्रभु !
नंदी !
नंदी ने शिव को देखा शिव ने नंदी को । इतने वर्षों की सारी यादें पल भर में दोनों के नज़रो
के सामने चित्र बनकर उमड़ने लगी।
शिव के आँखों मे अश्रु … नंदी के आँखों में अश्रु।
तीन सदियों से दर्शन को आतुर नंदी दोनों हाथ जोड़े शिव के चरणों मे लोट गया।
अपनी जटा में गंगा रखने वाले और गंगा किनारे वास करने वाले शिव को इतने
सालों तक एक अँजुरी जल तक नही चढ़ सका।
नंदी ने अपने अश्रु से प्रभु के पैर पखाडे …प्रभु ने अपने अश्रु से नंदी पे स्नेह की वर्षा की।
एक नंदी था जो शिव को पाकर धन्य था … एक शिव थे जो नंदी से मिलकर प्रसन्न ।
प्रभु ने नंदी को को उठाया और अपने गले से लगा लिया।
न नंदी के मुख से कोई शब्द निकल पा रहे … न शिव के मुख से ।
इतने वर्षों का तपस्या का फल अगर ‘शिव’ है तो फिर क्या पाना बाकी रह जायेगा।
न कुछ पाने की इच्छा न ही कुछ मिलने की आस।
जब सबकुछ है शिव में और जब शिव ही हो पास।।
जब आँखों के अश्रु समाप्त हो गए तो अश्रु बाधित स्वर धीरे धीरे बाहर आने लगे।
शिव बोले – नंदी ! संभालो अपने आप को ।
नंदी के आँखों से अश्रुधारा रुकने का नाम नही ले रही थी
प्रभु ने खुद नंदी के आँखों से आँसू पोछा।
नंदी को ऐसा लगा जैसे किसी ने जन्मों के दुख दर्द पल भर में मिटा दिए हो।
शिव – तुम मेरा इंतेज़ार करते रहे नंदी ?
नंदी अश्रुपूरित आँखों से भारी गले से बोला – और क्या करता प्रभु !
बस इतना बोल नंदी फुट फुट कर रोने लगा। शिव ने फिर से उसे गले से लगा के जकड़ लिया
जैसे गंगा को अपनी जटा में समेट रहे हो। आज अगर नंदी रुका नही तो शायद सब डूब जाएगा।
शिव बोले – नंदी ! बात नही करोगे मुझसे ?
नंदी खुद को संभालते हुए बोला – प्रभु ! इतने इंतेज़ार के बाद जिसके सामने साक्षात शिव हो
वो शिव को देखे या शिव से बोले। इसी असमंजस में हूँ प्रभु।
शिव हंसते हुए बोले – असमंजस से बाहर आओ नंदी। इंतेज़ार की घड़ी समाप्त हो गई है।
अपने प्रभु को हंसते देख नंदी के चहरे पे भी थोड़ी मुस्कान आई ।
अपने अश्रु पोछते हुए शंकापूर्ण स्वर में शिव से पूछा – प्रभु ! आखिर इतना इंतजार क्यो करवाया ?
आप महाकाल , त्रिकालदर्शी हो आप चाहते तो ये कब का समाप्त हो गया होता? लेकिन फिर भी आपने ऐसा कुछ नही किया ? और अगर आपको ऐसा कुछ नही करना था तो आप बस एक इशारे कर देते मुझे, मैं तो इतने सालों तक बस आपकी तरफ देखता रहा…आपके एक आदेश के इंतेज़ार में । लेकिन अपने वो भी नही किया ?
शिव हँसते हुए बोले – अरे नंदी! एक साथ इतने सवाल।
नंदी कान पकड़ कर क्षमा मांगते हुए शिव की ओर देखने लगा … शिव के उत्तर की प्रतीक्षा में।
शिव बोले – नंदी ! ये कलयुग है इस समयचक्र में लोगो को आत्मज्ञान होना बहुत जरूरी है।
ये काम अगर शिव करता तो वो शिव चर्चा बन जाती अगर ये काम नंदी करता तो नंदि चर्चा बन जाती और ये चमत्कार कहलाने लगता। लोग अपना कर्म भूल जाते और हर मुसीबत में शिव – नंदी के चमत्कार का इंतेज़ार करते। लोगो को अपने धर्म की रक्षा और अपने कर्म का ज्ञान होना बहुत जरूरी था। समय जरूर लगा लेकिन लोग जागृत भी हुए । बस इसी चमत्कार का इंतजार शिव और नंदी को था। ( शिव हँसने लगे )
नंदी के चेहरे से शंका की सारी लकीरें मिट गई। हाथ जोड़ के अपने प्रभु को फिर प्रणाम कर बोला –
चलिए प्रभु ! अब अपने घर चलते है सब लोग इंतजार कर रहे होंगे।
शिव ने नंदी के कंधे पे हाथ रखा और गंगा किनारे चलने लगे।
नंदी बोला – प्रभु! हम कहाँ जा रहे है ?
शिव बोले – नंदी! ये तो बस एक शिव और नंदी को मुक्ति मिली है।
तुम्हारे जैसे बहुत से नंदी अभी भी अपने शिव के इंतेज़ार में पाषाण बने उनकी ओर देख रहे है इस इंतेज़ार में कि कोई चमत्कार हो।
बस देखना ये है कि लोगो को शिव या नंदी के चमत्कार देखने को मिलते है
या फिर शिव और नंदी को लोगो के चमत्कार। ये तो समय ही बतायेगा।
नंदी ने शिव को अपने कंधे पे बिठाया और चल पड़े जनजागरण की अनंत यात्रा पे।
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