हाल के दिनों में दो घटनाएँ बड़े मारके की रही कि आर्यन खान ड्रग्स लेकर भी अपने समाज से जुड़ा रहा, शाहरुख के समर्थक पूरी फिल्म इंडस्ट्री और नशे को बिल्कुल त्याज्य ना मानने वाली कम्युनिटी आर्यन खान के सपोर्ट में आज भी दिख रही है और सबसे ऊपर दिख रहा है उनके अपने समाज के लोगों का उनके साथ होना। आर्यन खान ड्रग सेवन करके भी जमानत पर बाहर है परंतु उसे पकड़ने वाला समीर वानखेडे अपने बेल के लिए कोर्ट का चक्कर लगा रहा है। नेता नवाब मलिक समीर वानखेडे के कई रहस्यों से पर्दा हटा रहे हैं, समीर वानखेडे की पत्नी क्रांति अपने पति के साथ खड़ी है और होना भी चाहिए परंतु फेसबुकिया अच्छे लोगों को छोड़ दिया जाए तो पूरा हिंदू समाज लगभग मौन हीं है। सचिन वानखेड़े ने गलत किया या सही किया इस बात पर तवज्जो दिए बगैर लोग समीर के निकाह नामे को सही मानते हैं और हो सकता है आगे चलकर यह निकाहनामा समीर के लिए गुलोटिन बन जाए। आखिर एक ईमानदार कोशिश एक गुनाह का सबब कैसे बन रही है ? कुछ नशेड़ी बच्चों को पकड़ने वाला नारकोटिक्स व्यूरो का अधिकारी खुद हीं जमानत के लिए क्यों खड़ा है?अगर देखा जाए तो समीर वानखेडे की 2 धर्म निभाने की कोशिश हीं इस सारी समस्या की जड़ है और इसे लेकर ही नेता लोग उनके पीछे पड़े हुए हैं। गीता कहती है ….स्वधर्मे निधनं श्रेयः। । आज अपनी धार्मिक परंपरा से विचलित समीर वानखेडे सच के साथ रहकर भी विचलित है परंतु नशा पानी करने के खुलासे के बाद गुनाह से लिप्त होकर भी आर्यन खान अपनी धार्मिक प्रतिबद्धताओं के कारण अपने समाज में अपनी पहचान बनाए हुए है।मैं अंतर्जाति विवाह या अंतर्धर्म विवाह के खिलाफ नहीं हूँ। अगर आपके जीवन में विसंगतियां नहीं आती हैं तो कोई समस्या नहीं है परंतु जब विसंगतियांँ आएंगीं तब आपके द्वारा किया गया धर्म के दायरे को तोड़ता हुआ हर काम आपके आगे की राहों में समस्या बनकर आपके प्रगति पथ पर गतिअवरोधक नहीं बल्कि गहरा गड्ढा बनकर आपका रास्ता रोकेंगे और उस समय आप को बचाने कोई नहीं आएगा।सारे बुद्धिजीवी ये सोचने की कोशिश करें कि हिंदू पिता और मुस्लिम माता की संतति की जाति महार कैसे अक्षुण्ण रही?क्या परधर्म विवाह भी जाति की कालिख नहीं मिटा सकता। बौद्ध बनने के बाद भी बाबा साहेब महार जाति नहीं छोड़ पाए क्योंकि बिना कुछ किए अगर सिर्फ जन्म के आधार पर समाज में पहचान बनाए रखनी है तो जाति से जुड़ना ही पड़ेगा और यह तो सारे बुद्धिजीवी मानते हैं कि जाति सिर्फ हिंदुओं में है इसीलिए ना तो भीमराव बौद्ध होकर अपनी जाति को छोड़ पाए और न हीं समीर वानखेडे। वर्णसंकरता जाति का नाश करती है और जाति से आरक्षण मिलता है और आधार भी। अब देखना है कि धर्म की दो दो किश्तियों पर सवार समीर को हवा किस ओर ले जाती है।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.