आधुनिक इतिहास की तारीखों में इस्लाम को अगर 2 नजरिये से देखा जाए तो वे हैं 9/11 के बाद और 9/11 से पहले। जी हां वही 9/11 जब अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारतों से 2 प्लेन टकरा गए थे और इस हमले में तकरीबन 3 हजार निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। 9 सितंबर को प्लेन टकराने से बेशक वर्ल्ड ट्रेड सेंटर भरभराकर गिर गया मगर साथ ही साथ इस्लाम की रही सही इज्जत-पाकीजगी का भी पतन हुआ शुरू हो गया। 9/11 से पहले दुनिया में इस्लाम तेजी से बढ़ता हुआ मजहब था मगर 9/11 के बाद इस्लाम दुनिया में तेजी से बदनामी पाने वाला मजहब बन गया।


पूरी दुनिया ने वो तस्वीरें घर बैठे देखीं और दुनिया में इस्लामी कट्टरता के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ। आपको याद दिलाते चलें कि इससे पहले अमेरिका ने भी कश्मीर में आतंकवाद को इस्लामी चरमपंथ से नहीं जोड़ा था मगर बाद में अमेरिकी थिंक टैंक ने भी कश्मीरी आतंकवाद को इस्लामी कट्टरता के चश्मे से देखना शुरू किया। 9 सितंबर के बाद अमेरिका ने कट्टरपंथी तालिबान के खिलाफ युद्ध का एलान करते हुए इतने बम बरसाए कि मस्जिद-मदरसे-मुजाहिद्दीन सब जगह मातम पसर गया। अमेरिका के युद्ध एलान के बाद मध्य एशिया से आये अरब,यमन,सूडान,जॉर्डन के लड़ाकों की खबर दुनिया ने पढ़ी और जाना कि कैसे उम्मत के नाम पर जिहाद की चाशनी में घुलकर इस्लामी कट्टरता एकजुट हो जाती है। पूरे यूरोप में इस्लाम को लेकर अलग तरह का नजरिया डेवेलप हुआ और मानवता के नाम पर मुस्लिम समुदाय को पनाह देने वाले यूरोपियन शक के नजरिये से टोपी-दाढ़ी को देखने लगे। फिर इसके बाद लंदन-पेरिस हमलों ने इस सोच को और बलवती किया। अकेले अमेरिका में मुस्लिमों के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करने के मामलों में कई गुना इजाफा दर्ज किया गया। दुनिया ने जाना और पहचाना कि मदरसों से बिना पढ़े लिखे भी इस्लामी कट्टरपंथी दिमाग दुनिया को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। अमेरिका-पेरिस-लंदन में हमले करने वाले सभी आतंकी आधुनिक शिक्षा प्राप्त थे। धीरे धीरे दुनिया में माहौल बनना शुरू हुआ और अमेरिका की सरपरस्ती में सैकड़ों देशों में ये बौद्धिक बहस छिड़ गई कि इस्लामिक कट्टरता किस तरह मानवीयता का नुकसान कर रही है। इससे भयभीत होकर पहली बार मुस्लिम विचारकों ने ये कहना शुरू किया कि इस्लाम शांति का मजहब है और इसमें निर्दोष लोगों को मारने की मनाही है।


बौद्धिक -आर्थिक मोर्चे के साथ साथ सामरिक मोर्चे पर भी कट्टरपंथ को करारा जवाब देते हुए अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मार गिराया। उसका परिणाम ये हुआ कि भारत ने भी उरी हमले के बाद पकिस्तान में घुसकर आतंकवादी कैम्पों को तबाह किया। अमरीका/इजरायल के इस पलटवार युद्ध से भारत जैसे शांतिपसंद देशों की हिम्मत बढ़ी और आतंक को उसी की भाषा में जवाब दिया जाने लगा। गौर किया जाना चाहिए कि ये 9/11 हमला ही था जिसके बाद से दुनिया में बौद्धिक बहस शुरू हुई और इस्लाम के बुर्के के पीछे छिपी हुई कट्टर तलवार का वीभत्स चेहरा दुनिया ने देखा। बीते 19 सालों में इतना परिवर्तन तो हुआ है कि आज दुनिया इस्लाम को लेकर ज्यादा मुखर है और इसका माकूल जवाब इस्लामी पैरोकारों को देते नहीं बन रहा है।

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