भारत पर इतिहास का सबसे पहला आक्रमण
Ancient Sindh
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अकसर जब भारत पर विदेशी आक्रमण की बात आती है तो हम सबसे पहले विदेशी आक्रांता के रूप में सिकंदर को देखते है लेकिन सच्चाई ये नहीं है। सबसे पहला विदेशी आक्रमण ग्रीक ने नहीं पारसी दरीयस ने किया था। दरीयस प्रथम ने 516 BCE में सिंध और पंंजाब पर आक्रमण किया। हालाँकि उस आक्रमण का भारत पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। वह सिर्फ वसूली तक सीमित रह गया। उस आक्रमण के बाद पारसीओं ने थाने जमाये थे।
उसके बाद शक जाती भी भारत की तरफ आगे बढ़ रही थी। शक राजा काफंद के बेटे अयंद ने सिंध के हिन्दू राजाओं से अपने अच्छे व्यवहार से दोस्ती जमाई। उसी वक्त सिकंदर आक्रमण लिए आ रहा था। सिकंदर ने दरीयस के वंशजों को हरा दिया और अकाईमेनिड साम्राज्य टूट गया। इसी मौके का फायदा उठाकर अयंद ने सिंध के राजाओं को इकट्ठा किया और भारत में सात वाहन वंशी हल से मित्रता की और हल की मदद से उसने पारसीओं को भगाने की योजना बनाई। सभी भारतीय राजाओं के संघ ने पारसी थानों पर आक्रमण किया। सभी पारसी धीरे धीरे पीछे हटते हटते ब्राह्मणाबाद के किल्ले में इकट्ठे हुए।
तब ब्राह्मणाबाद में पारसीओंने एक किल्ला बनाया था। उसमें पारसीओं का सेनापति महरा था। सभी भारतीय राजाओं ने उस किल्ले को घेर लिया। कई दिन बीत गए। अब पारसी थक चुके थे और खाना खतम हो गया था। उन्होंने एक योजना बनाई। किल्ले मैं से सुरंग बनाई और किल्ले पर अपने सैनिकों के शिरस्त्राण(Helmet) वहाँ रख दिये जिससे भारतीय सैनिक उसे असली सैनिक समझे मोर्चा बंधी किए बैठे रहे। और महरा ने अपनी सेना को वहाँ से निकाल के तुर्को के देश की तरफ भाग गया। जब कौओं ने शिरस्त्राण पर बैठना शुरू कर दिया तब पता चला की पारसी भाग चुके है।इसके बाद अयंद ने सिकंदर से भी समझौता कर लिया। जब सिकंदर भारत से चला गया और राजा हल की मृत्यु हो गई उसके पश्चात अयंद ने सिंध को चार बड़े हिस्सों में बाँट दिया। जिसमें
अयंद की मृत्यु के बाद उज्जैन के विक्रमादित्य ने उन्हें खदेड़ दिया और सिंध के राजाओं ने सात वाहन का आधिपत्य स्वीकार किया। लेकिन विक्रमादित्य के बाद सिंध के राजा फिर आधिपत्य से मुक्त स्वतंत्र हो गये। इसके बाद जब झोर(रोर) में रोर की जगह राय वंश आया और राय वंश के मंत्री चच खुद राजा बना गया तो फिर से उसने सिंध के राजाओं को हराकर अपने आधिपत्य में ले लिया। और चच का बेटा दाहर अरबों से युद्ध में लड़ा।
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