वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने सरकार से ‘शहरी नक्सली’ शब्द को परिभाषित करने की मांग की है। कमाल देखिये की अपने आपको बुद्धिजीवी कहलवाने वाली और दशकों से सत्ता का समर्थन लेकर भारत के शिक्षा संस्थानों के पाठयक्रम को निर्धारित करने वाली रोमिला थापर ‘शहरी नक्सली’ की परिभाषा तक नहीं जानती। कोई बात नहीं हम उनके इस अज्ञान की पूर्ति कर देते हैं।
‘शहरी नक्सली’ वो है जो-
- विश्वविद्यालयों में बीफ फेस्टिवल मनाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है और अपने आपको अहिंसा समर्थक महात्मा बुद्ध का शिष्य बताते हैं।
- कश्मीर के हिंदू विरोधी, देशद्रोही एवं पाक समर्थक आतंकियों को क्रांतिकारी और भारतीय सेना को बलात्कारी बताते हैं।
- होली,दिवाली को प्रदुषण पर्व और बकरीद को भाईचारे का पर्व बताते हैं।
4.रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को देश में बसाने की वकालत करते हैं और देश के सवर्णों को विदेशी आर्य बताते हैं।
5.कर्नल पुरोहित,साध्वी प्रज्ञा और असीमानन्द को देशद्रोही और याकूब मेनन,अफजल गुरू जैसे आतंकवादियों को निर्दोष बताते हैं। - हिन्दू समाज की सभी मान्यताओं को अन्धविश्वास कहते हैं और इस्लाम/ईसाइयत में विज्ञान खोजते हैं।
- हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीर बनाने वाले मकबूल फ़िदा हुसैन को महान बताते हैं और इसे अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता का नाम देते हैं । पर यही अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता तब समाप्त हो जाता है जब मामला किसी और मजहब से जुड़ा हो ।
- विदेशियों के द्वारा बताये गये वेदों के अनर्गल अर्थों को सही और स्वामी दयानन्द कृत वेदों के भाष्य को असंगत एवं अपूर्ण बताते हैं।
- आर्यों को विदेशी और मुसलमान अल्पसंख्यकों का इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार बताते हैं।
- गौमांस खाना मानवीय अधिकार और गौरक्षकों को गुंडा बोलते हैं।
- इस्लामिक आक्रांताओं , मुग़ल शासकों को महान एवं न्यायप्रिय बताते हैं। दुसरी तरफ महाराणा प्रताप, गुरू गोविंद सिंह जैसे अनेक वीर योद्धाओं की महानता को कम करके बताते हैं और छत्रपति शिवाजी को डरपोक/भगोड़ा बताते हैं।
12.रामनौमी तथा कृष्ण जन्माष्टमी की छुट्टी लेते हैं पर श्री राम और श्री कृष्ण को मिथक बताते हैं । - ईसाईयों के छल-कपट से किये गए धर्मान्तरण को उचित और धर्मान्तरित हिन्दुओं की घर वापसी को अत्याचार बताते हैं।
- लव जिहाद को प्रेम की अभिव्यक्ति और उसके विरोध को अत्याचार बताते हैं।
- मुसलमानों द्वारा दर्जनों बच्चे पैदा करने को अधिकार और हिन्दुओं द्वारा जनसँख्या नियंत्रण कानून की मांग को पिछड़ी सोच बताते हैं।
- मौलवियों के उल्टे-सीधे फतवों का समर्थन करते हैं और तीन-तलाक पर कानून बनाने का विरोध करते हैं।
- भारत में ब्रिटिश हुकूमत को न्यायप्रिय शासन एवं हिन्दू स्वराज की सोच को काल्पनिक बताते हैं।
- उत्तर पूर्वी राज्यों से अफ़सा कानून हटाने की और चर्च की मान्यताओं के अनुसार सरकारी नियम बनाने की बात करते हैं।
- नवरात्र के व्रत को ढोंग और इस्लामिक रोज़े को महान कृत्य बताते हैं।
- सरकार को अत्याचारी और माओवादी नक्सलियों को संघर्ष करने वाला योद्धा बताते हैं।
- भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर की आज़ादी ऐसा नारा लगाने वालों का समर्थन करते हैं और इनका विरोध करने वालों को भक्त कहते हैं।
- NGO के नाम पर विदेशों से चंदा लेकर भारत में लगने वाली बड़ी परियोजनाओं को प्रदुषण के नाम पर बंद करवाते हैं।
- वनवासियों को निर्धन रखकर भड़काते हैं और उन्हें नक्सली बनाते हैं।
- संयम/सदाचार युक्त जीवन को पुरानी सोच बताते हैं और शराब पीने, चरित्रहीन एवं भ्रष्ट बनने को आधुनिक बताते हैं।
- देश, संस्कृति और सभ्यता के विरुद्ध जो भी कार्य हो उसका हर संभव समर्थन करते हैं।
यह छोटी से सूची है। आप अपने समाज में रह रहे इन ‘शहरी नक्सलीयों’ को पहचाने। भेड़ की खाल ओढ़े इन भेड़ियों को पिछले 70 वर्षों से पोषित किया जा रहा हैं। इनके अनेक रूप है। मानवाधिकार कार्यकर्ता, विश्वविद्यालय में शिक्षक, NGO वाले, लेखक, पत्रकार,वकिल राजनीतिज्ञ, शोधकर्ता, छात्र नेता, चिंतक, बुद्धिजीवी, शोधकर्ता आदि। इनके समूल को नष्ट करने के लिए हिन्दू समाज को संगठित होकर नीतिपूर्वक संघर्ष करना पड़ेगा। क्यूंकि इनकी जड़े बहुत गहरी हैं।
#### एक फेसबुक पोस्ट से साभार ।
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