जरा सा याद करो वो घटना जब दोस्ती करने के बहाने अपने यहां बुलाकर मुगल सेनापति अफज़ल खान न अपने विश्वासघाती चरित्र के अनुरूप ही , धोखे से शिवाजी को मारना चाहा मगर शिवाजी इन एहसानफरामोश धूर्त , मक्कार मुगलों को पहले ही पहचान चुके थे उन्होंने उसी वक्त अफ़ज़ल को मौत के घाट उतार दिया .
सैकड़ों सालों बाद भी मुगलों का विश्वासघाती चरित्र नहीं बदला . आज भी अफ़ज़ल की संताने छुरे , खंज़र और हथौड़े लिए किसी रिंकू और किस नीतू के विश्वास की हत्या किए चला जा रहा है . और अब तो ये उसके लिए बहुत आसान और साधारण सी बात हो गई है .
क्योंकि इन अफ़ज़लों लाईक खानों को बहुत अच्छी तरह से ये अंदाज़ा है कि रोज़ ऐसी हत्याओं को देखने सहने के बावजूद भी दोस्ती के लिए , विश्वास के लिए , प्यार के लिए इन पर आँख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं . कभी अपना खून देकर ,कभी अपना घर देकर और आखिरकार अपनी जान देकर ये एकतरफा इंसानियत दिखाता और चुकाता रहता है .
अरे मूढमतियों ! उन्हें तुम्हारे हिंदुत्व से , तुम्हारे देवी देवता , तिरंगा , गंगा , गाय , तिलक , मूर्ति अरे हर बात से नफरत है , घृणा है और ये इस हद तक है की वो इसके लये उन्हें वहशी पशुवत बना चुकी है . वे अपनी मज़हबी कट्टरता में इतने अधिक धर्मांध हो चुके हैं कि पूरी दुनिया को , इंसानियत को उसकी कीमत चुकानी पड़ रही है . वे जो समझते हैं जो दुनिया को समझाना चाहते हैं वो स्पष्ठ है अब बस दुनिया को , हमे आपको समझना है सिर्फ इतना कि किस बार विश्वास कभी भी नहीं करना चाहिए .
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