आप सभी को इस बात की जानकारी तो होगी कि गांधी द्वारा वर्ष 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन और स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी लेकिन क्या आप जानते है कि स्वदेशी क्रांति के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले प्रथम व्यक्ति कौन थे ??
उन क्रांतिकारी सेनानी का नाम है – बाबू गेनू सैद।
Forgotten Indian Freedom Fighters लेख श्रृंखला की चौबीसवीं कड़ी में आज हम पढ़ेंगे उन्हीं बाबू गेनू के बारे में जिनके बलिदान दिवस को “स्वदेशी दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
बाबू गेनू का जन्म 02 जनवरी 1908 को महाराष्ट्र राज्य के पूना जिले में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने एवं पिता की मृत्यु होने के कारण बाबू गेनू माँ के साथ मुंबई में काम की तलाश में आ गए और जल्दी ही उन्हें उसी कपड़ा मिल में काम मिल गया, जहां उनकी मां मजदूरी करती थी। बाबू बचपन से ही कुशाग्र बुध्दि के थे, उन्हें एक बार पढ़ते ही उन्हें सारी बातें समझ में आ जाती थी लेकिन आर्थिक संकटों के कारण वो कभी स्कूल नही जा सके।
गेनू अब बड़े हो चुके थे और अब उनकी माँ गेनू का जल्दी से जल्दी विवाह करना चाहती थी परन्तु गेनू का मन तो भारत माँ की सेवा के लिए तड़प रहा था इसलिए उन्होंने विवाह करने से मना कर दिया और वो मुम्बई चले गए। इसी बीच बाबू गेनू कांग्रेस के वॉलन्टियर बन गए और तानाजी पाठक दल में सम्मिलित हो गए। बाबू गेनू वडाला के नमक पर छापा मारने वाले स्वयंसेवकों के साथ शामिल थे लेकिन वो पकड़े गए और उनको कठोर कारावास का दंड दिया गया। जब बाबू गेनू यरवदा जेल से छूटे तो माँ से मिलने गए तब अन्य लोगो से अपने वीर पुत्र की प्रशंसा सुनकर वे बेहद प्रसन्न हुई।
वर्ष 1928 में साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन में बाबू ने अपने संगठन के साथ बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। 3 फरवरी 1928 को बाबू ने एक बड़ा जूलुस आयोजित किया। उस दिन पूरे मुम्बई सहित दिल्ली, कलकत्ता, पटना, चेन्नई आदि शहरों में भी जोरदार प्रदर्शन हुए। लाहौर के प्रदर्शनों में पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल हो गये और उनकी मृत्यु हो गई। महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में बाबू गेनू भी जेल गए।
26 जनवरी 1930 को पूरे देश ने “सम्पूर्ण स्वराज्य मांग दिवस’ मनाया। इस आन्दोलन में बाबू गेनू ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
12 दिसम्बर 1930 को सत्याग्रह का दिन तय किया। मुम्बई के कालादेवी रोड पर विदेशी कपड़ों से भरी लॉरियां, ट्रक आदि को रोकने का निश्चय किया गया। मुम्बई के मुलजीजेठा मार्केट से विदेशी कपड़े जाने थे, जिनको रोकने की जिम्मेदारी मुम्बई शहर की कांग्रेस पार्टी ने बाबू गेनू और उनके तानाजी पाठक संगठन को सौंपी।
ठीक ग्यारह बजे बाबू गेनू और उनके साथी सड़क के पास जा पहुंचे। कुछ देर में विदेशी कपड़ों से भरा एक ट्रक सड़क पर नजर आया। उस ट्रक को पुलिस ने घेर रखा था। ट्रक देखते ही गेनू के साथी रेवणकर ट्रक के सामने लेट गए, इससे ट्रक चला रहा चालक सकपका गया और उसने तेजी से ब्रेक लगाए। लेटे हुए रेवणकर से कुछ दूर पहले ट्रक रुक गया, भारत माता की जय और वंदेमातरम के नारों ने जोर पकड़ लिया।
इसी बीच पुलिस ने बल प्रयोग प्रारम्भ कर दिया लेकिन साथ ही सत्याग्रहियों का जोर भी बढ़ रहा था। तभी लॉरी के सामने स्वयं बाबू गेनू आ गए। ब्रिटिश पुलिस का नेतृत्व कर रहे अंग्रेज सार्जेण्ट ने आदेश दिया कि लॉरी चलाओ, ये मर भी जाए तो कोई बात नहीं, पर ड्राइवर भारतीय था और उसने लॉरी चलाने से मना कर दिया। तब उस क्रूर अंग्रेज सार्जेण्ट ने स्वयं लॉरी चलानी प्रारम्भ कर दी। इसके बाद क्रूर सार्जेंट ने देखते ही देखते ट्रक से बाबू गेनू को रौंद डाला। यह दृश्य देखकर लोगों के दिल दहल उठे।
सड़क पर खून की नदी बह गई, पूरी सड़क बलिदानी खून से लाल हो गई। सड़क पर गिरे हुए गेनू के शरीर को देख कर ऐसा लग रहा था कि मानो कोई लाल अपनी मां की छाती से लिपटा हो। उन्हें उठाकर अस्पताल ले जाया गया, पर उन्हें बचाने के सारे प्रयास विफल रहे और अंततः भारत माँ के इस महान सपूत की मात्र 22 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गयी।
बाबू गेनू की अन्तिम यात्रा के दिन पूरा मुम्बई बंद रहा। उसकी याद में बाबू के गांव महालुंगे पडवल में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है और जिस सड़क पर बाबू की मृत्यु हुई थी उस सड़क का नाम “गेनू स्ट्रीट” रखा गया। प्रत्येक वर्ष 12 दिसम्बर का दिन बाबू गेनू की स्मृति में “स्वदेशी दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
भारत माँ के इस महान सपूत को कभी भी इतिहास में उचित सम्मान नही दिया गया जिसके कि वो हक़दार थे। ऐसे वीर सपूत को हमारा शत् शत् नमन।
जय हिंद
????
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.