आजाद हिंदुस्तान की जेलों ना जाने कितने विष्णु तिवारी निर्दोष बंद होंगे, क्या कोई इनके मानवाधिकारों के लिए बोलेगा ??
उत्तर प्रदेश के ललितपुर थाना क्षेत्र का मामला पिछले 1 हफ्ते से प्रकाश में आया जिसमें बताया गया कि आज से 20 वर्ष पूर्व विष्णु तिवारी पर किसी महिला द्वारा एससी एसटी एक्ट मैं मुकदमा दर्ज कराया गया तथा दुष्कर्म का मामला दर्ज करवा कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया मुकदमा दर्ज करवाने के पीछे परिवारिक रंजीत तथा सामाजिक प्रतिष्ठा खराब करने जमीन जायदाद हड़पने का मुख्य कारण रहा विष्णु तिवारी ने 20 वर्ष तक सजा काटी और 20 वर्ष बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा फैसला सुनाया गया जिसमें विष्णु तिवारी को निर्दोष बताकर बरी किया गया, यह तब हुआ जब बिना जांच के कारावास का प्रावधान है ।
एससी एसटी एक्ट का प्रावधान यही है कि बिना जांच गिरफ्तारी होती है 21 मार्च 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने फर्जी मुकदमों को मध्य नजर यह फैसला सुनाया कि बिना जांच गिरफ्तारी ना हो पहले जांच हो और फिर दोषी पाए जाने पर गिरफ्तारी हो इस पर भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता अपनी जातिवादी कुर्सी बचाने के लिए जनता को उकसाया और 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद के नाम पर हिंदुस्तान के संसाधनों को तोड़ने में आग लगाने का कार्य किया इसके बाद दबाव में आकर भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाकर एससी एसटी एक्ट को यथास्थिति पर रखा और आज भी एससी एसटी एक्ट के अंदर बिना जांच गिरफ्तारी होती है फिर जांच होती है
अब सवाल ये उठता है कि आजाद हिंदुस्तान की जेल के अंदर ना जाने कितने निर्दोष विष्णु तिवारी बेवजह किसी की रंजिश और किसी की स्वार्थ लोलुपता का शिकार होकर सजा काट रहे होंगे कानून के दायरे में रहकर सत्ता के गलियारों से इस प्रकार का मानव अधिकारों का हनन सच में आजाद हिंदुस्तान के लिए चिंता का विषय है आज एक विष्णु तिवारी का मामला सामने आया है परंतु आंशिक तौर पर अब तक ना जाने कितने लाखों निर्दोष विष्णु तिवारी जेल में सजाया तो काट चुके होंगे या काट रहे होंगे इस व्यवस्था पर गंभीरता से सोचने का समय है और ऐसे कानूनों पर संविधान के तहत कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे दोषी बचे नहीं और निर्दोष को किसी भी प्रकार की प्रताड़ना का सामना ना करना भाई आज विष्णु तिवारी ने अपने मां बाप भाई प्रतिष्ठा और ना जाने क्या-क्या खो दिया आज विष्णु तिवारी को हाईकोर्ट ने बड़ी करने के बाद उसकी पूरी जिंदगी को महज एक काले कानून ने बर्बाद करके रख दिया ऐसे काले कानून पर संज्ञान लेने की जरूरत है सत्ता के गलियारों में सत्ता का सुख ले रहे ऐसे जातिवादी नेताओं को मुंहतोड़ जवाब देते हुए ऐसे कानून पर कड़ी से कड़ी प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर करना पड़ेगा तभी जाकर आजाद हिंदुस्तान में लोग आजादी से रह पाएंगे
कानून को जाति के नाम पर देखना और अपराधी को जाति के नाम पर देखना वास्तविक स्तर पर मानवाधिकारों का सीधा-सीधा हनन है आज समझ नहीं आता कि केंद्र की सत्ता में मानवाधिकार आयोग जैसे अयोग्य क्या कार्य कर रहे हैं कैसे वह लोग इस तरह के मसलों पर काम नहीं कर रहे हैं सरकार में बैठे नुमाइंदों को गंभीरता से ऐसे विषयों पर संज्ञान लेना होगा तभी देश का भला होगा, जातिगत आरक्षण के नाम पर हिंदुस्तान की कमर तोड़ने का प्रयास पहले ही पुरजोर तरीके से चल रहा है हरियाणा सरकार ने जिस प्रकार से निजी क्षेत्र में 75% आरक्षण करके सीधा-सीधा संदेश दिया है किस देश को सप्ताह के नुमाइंदों ने अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी हाल तक नहीं छोड़ने में कोई कमी नहीं छोड़ी है
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