सावित्रीबाई फुले को देश की पहली भारतीय महिला शिक्षक और प्रधानाध्यापिका माना जाता है। 1998 में इंडिया पोस्ट ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था. मोदी सरकार ने 2015 में पुणे विश्विद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया था।
सावित्रीबाई ने अपने पति के साथ मिलकर कुल 18 स्कूल खोले थे. इन दोनों लोगों ने मिलकर बालहत्या प्रतिबंधक गृह नामक केयर सेंटर भी खोला था.इसमें बलात्कार से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को बच्चों को जन्म देने और उनके बच्चों को पालने की सुविधा दी जाती थी। महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना की थी. उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की थी।
सावित्रीबाई फुले को दकियानूसी लोग पसंद नहीं करते थे. उनके द्वारा शुरू किये गये स्कूल का लोगों ने बहुत विरोध किया था. जब वे पढ़ाने स्कूल जातीं थीं तो लोग अपनी छत से उनके ऊपर गन्दा कूड़ा इत्यादि डालते थे, उनको पत्थर मारते थे. इसमें सभी तरह के लोग शामिल थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं. लेकिन उन्होंने इतने विरोधों के बावजूद लड़कियों को पढाना जारी रखा था।
सावित्री बाई ने विधवा ब्राह्मणी के बेटे यशवंत राव को गोद लिया था, जो आगे चलकर डॉक्टर बने और भारतीय फौज में अपनी सेवाएं दीं। अपनी महान माँ की तरह प्लेग के खिलाफ समाज की सेवा करते हुए उन्होंने भी प्राण त्यागे थे।
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