तमिलनाडु में करुणानिधि के समय से ही डीएमके पार्टी हिंदू विरोधी रही है। राम और कृष्ण का विरोध करना हो, रामसेतु को काल्पनिक बताना हो या अन्य किसी हिंदू रीति रिवाज पर हमला करना हो, दिवंगत करुणानिधि इस मामले में सबसे आगे रहे और अब उनकी इसी परिपाटी को उनका बेटा स्टालिन आगे बढ़ा रहा है । तमिलनाडु के कोयंबटूर में 7 हिंदू मंदिरों को सरकारी बुलडोजर से तुड़वा कर स्टालिन ने साफ संदेश दे दिया है कि हिंदू रीति-रिवाजों के खिलाफ उनके मन में गहराई से नफरत पैबस्त है।

 स्टालिन हिंदू संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ बदजबानी करते रहे हैं। स्टालिन नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध के लिए भी तमिलनाडु की जनता को उकसा रहे थे। इस चक्कर में डीएमके की छवि मुस्लिम परस्त पार्टी की बन गई है।  तंजौर के प्राचीन वृहदेश्वर मंदिर के अभिषेक के लिए भाषा के मुद्दे पर लोगों को स्टालिन ने भड़काया था। स्टालिन ने मंदिर में संस्कृत भाषा से भगवान के अभिषेक करने के मुद्दे का विरोध किया था और कहा था कि तमिलनाडु में तमिल भाषा की चलनी चाहिए जबकि तमिलनाडु में मौजूद तमाम मस्जिदों में अरबी भाषा में नमाज अदा की जाती है ऐसे में दूसरे धर्म स्थानों में तमिल भाषा को अनिवार्य करने का जोर और दबाव क्यों नहीं किया जाता है? 


भाषा, संविधान, सेकुलरिज्म, प्रांतीयता, सांस्कृतिक पहचान लोकतंत्र इन सभी आयामों को सहने का सारा दबाव हिंदू धर्म के कंधों पर ही क्यों होता है और बाकी के अन्य धर्म इन सारे पैमानों से आजाद क्यों होते हैं? मंदिर के मुद्दे पर आखिर जैनुलबदीन, डेविड मनिरासन और अहमद कबीर जैसे लोगों को इससे क्या लेना -देना कि वृहदेश्वर मंदिर के अभिषेक तमिल में हो या संस्कृत भाषा में । कभी तमिल मुसलमानों के तमिल की बजाय अरबी भाषा में कुरआन पाठ पर सवाल नहीं किया जाता। 

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