नवरात्रि के इस पावन अवसर पर जहां पूरा भारत मां दुर्गा की पूजा अर्चना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर एक समाज ऐसा भी है जो असुर महिषासुर की पूजा और आराधना कर रहा है।

मां दुर्गा जिन्होंने असुर महिषासुर का वध किया था आज एक खास समाज के लोगों के द्वारा पूजा जा रहा है। खास बात यह है इसी समाज के लोगों ने महर्षि वाल्मीकि जी की पूजा और आराधना शायद ही कभी की हो। ऋषि वाल्मीकि संस्कृत के प्रकांड विद्वान के रूप में जाने जाते है। महर्षि वाल्मीकि जी ने ही संस्कृत रामायण लिखी थी।

सच या समाज

विडंबना तो इस बात की है कि रावण जो संस्कृत का एक प्रकांड विद्वान और ब्राम्हण पंडित होने के बावजूद भी हिंदुओं द्वारा कभी नहीं पूजा गया। हर साल दशहरे के पावन त्यौहार पर हिन्दू आज भी रावण का पुतला जलाकर “बुराई पर अच्छाई की जीत” का त्यौहार मनाते है। क्योंकि यहां सही और ग़लत निर्भर करता है ना कि जाति और समाज।

जातिवाद और समाजवाद के इस खेल में लोग ये तक भूल चुके है कि सही क्या है और गलत क्या। हम महर्षि वाल्मीकि जी जो खुद एक दलित है (आज के समाज के लोगों द्वारा) और हिन्दू उनकी आराधना करते है, उनका दिवस मनाया जाता है। भगवान से भी ऊपर उन्हें पूजा जाता है, भगवान राम के बेटे लव और कुश के गुरु थे वो। फिर भी क्या हिन्दू उन्हें ये कहकर उनका अपमान ना कर दें कि वह तो एक दलित है।

हिन्दुओं ने हमेशा ही सत्य की पूजा की है चाहे वह फिर आज के समाज के लोगों के द्वारा किसी भी जाति के हों। लेकिन यही बात इन्हीं समाज के लोगों को समझ क्यों नहीं आ रही है। आप महिषासुर की पूजा करते हो यह जानते हुए भी वह एक अन्यायी और दुराचारी था लेकिन एक दलित और आदिवासी समाज का था। संक्षेप में आप तो खुद ही ये साबित कर रहे हो कि आप किसके समक्ष खड़े हो। यहां बात जाति और समाज की कहा से आ गई, यहां तो सही और ग़लत की बात है।

क्या आपको नहीं लगता कि आपने अगर यहीं महर्षि वाल्मीकि का प्रतिपादन किया होता तो कैसा होता। समाज के कुछ अनैतिक तथ्य जो कि हम और आप जैसे आम लोग जिन्हें राजनीति और चंद रुपयों की वजह से उनका वजूद तक खरीद लिया जा रहा है को खुद के दिमाग से सोचना चाहिए और समझना चाहिए कि इनका मकसद क्या है। आप अच्छाई की पूजा करो सबको आपको मानेंगे, आप बुराई की पूजा करोगे क्योंकि वह एक अनुसूचित जाती का है तो यह कहां तक सही है।

ऐसे लोगों का मानना है कि राक्षस प्रवित्ती के लोग आदिवासी थे। आप बताओ रावण कौन सा आदिवासी था? अगर आपके ही जैसे ब्राम्हण भी भगवान राम की जगह अगर रावण की पूजा करने लगें तो कैसे रहेगा? देश में दुराचार और अन्याय बढ़ेगा। हम आखिर एक गलत व्यक्ति की अभिनन्दना कैसे कर सकते हैं।

इस लेख के माध्यम से मेरा आप सब से अनुरोध है कि कृपया आप खुद इस बात का संज्ञान लें कि आपको सत्य और न्याय के साथ रहना है या असत्य और अन्याय के साथ।

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