गिलहरी प्रयास !!
प्रसंग समुद्र पुल के बनते समय का है । कैसे एक गिलहरी के प्रयास को प्रभु राम ने सम्मानित किया !!!काम कोई छोटा नहीं होता की सीख देता एक प्रसंग और एक आपबीती भी !!
प्रसंग समुद्र पुल के बनते समय का है । कैसे एक गिलहरी के प्रयास को प्रभु राम ने सम्मानित किया !!!काम कोई छोटा नहीं होता की सीख देता एक प्रसंग और एक आपबीती भी !!
आज विजयदशमी है तो आज का प्रसंग राम कथा के एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्से से :
समुद्र ने जब प्रभु राम की प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्हें क्रोध आ गया । धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उन्होंने समुद्र को ही सुखा देने का प्रण कर लिया । समस्त समुद्री जीव इससे विचलित हो गए परिणाम स्वरूप , समुद्र हाथ जोड़े प्रभु के चरणों में आ गिरा । श्रीराम ने उसे क्षमा कर दिया और आगे का मार्ग बताने को कहा । तब समुद्र ने नल-नील को मिले वरदान के बारे में बताया जिनके छुए पत्थरों को पानी में तैरने का आशीर्वाद था ।
फिर क्या था , पूरे दल में नया उत्साह आ गया । सब जीव अपनी सामर्थ्य से कार्य में जुट गए । कोई पत्थर ला रहा था , कोई पत्थर पर प्रभु का नाम लिख रहा था तो कोई इन्हें ले जाकर नल और नील को दे रहा था । प्रभु श्रीराम , भ्राता लक्ष्मण , सुग्रीव , जामवन्त आदि सभी लोग ये देख के आनंदित भी हो रहे थे और उत्साह से भी भर रहे थे ।
तभी प्रभु राम की दृष्टि एक छोटी सी गिलहरी पर गयी । वो भी अपने सामर्थ्य से बालू के कण उठाकर समुद्र में डाल रही थी । ये उसका अपना सहयोग था इस विशाल कार्य में ।
प्रभु राम स्वयं गिलहरी के पास गए और बड़े प्रेम से उसपर हाथ फेरा । गिलहरी को और क्या चाहिए था । प्रसन्न हो गयी पर साथ ही प्रभु की उँगलियों के चिह्न उसकी पीठ पर बन गए । तब से गिलहरियों पर ये निशान पाए जाते हैं , साथ ही ये किसी ये संदेश भी देते हैं की किसी महायज्ञ में छोटी से छोटी आहुति कितना महत्व रखती है । गिलहरी अमर हुई और साथ ही गिलहरी का प्रयास भी !!
ये बहुत बड़ी सीख है । दुनिया में ना जानें कितनी क्रांतियाँ हुई होंगी पर उसमें से ज़्यादातर ने दम तोड़ दिया क्यूँकि उसमें पूरा समाज शामिल नहीं हुआ । जबकि १८५७ का स्वतंत्रता संग्राम पूरे समाज ने लड़ा , हम जीत भले नहीं पाए पर अंग्रेजों की जड़ें हिल गयीं । उसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि हम दुबारा संगठित नहीं हुए वरना आज़ादी बहुत पहले मिलती और शायद पूरा भारत साथ होता ।
ख़ैर , विषयांतर ना करते हुए , एक आप बीती भी । बचपन में एक बार उत्तरांचल में आए भूकम्प प्रभावितों के लिए घरों से कम्बल , कपड़े , खाने का सामान , रुपए : जो भी बन पड़ रहा था इकट्ठे कर रहे थे । एक बहुत ही वृद्ध बाबा जो सड़क पर चादर बिछा कर छोटा छोटा सामान , जैसे लैया-चना-चबेना बेंच रहे थे , हम उनके पास से गुज़रे । जब आप सेवा का काम करते हो तब भी आपके अंदर अक्सर घमंड आ जाता है । ठीक वही हमारे साथ हुआ । हम उन बूढ़े बाबा को बिना कुछ पूछे आगे बढ़ गए कि ये क्या मदद करेंगे । पर उन्होंने हमें वापस बुलाया और बोले कि उन्हें पता है कि हम क्यूँ सामान इकट्ठा कर रहे हैं । उन्होंने कहा कुछ ज़्यादा सहायता तो वो नहीं कर सकते । फिर उन्होंने हमें एक पैकेट लैया और चने दिए और बोले ये खा लो , आगे नल पर पानी पी लेना । थोड़ा ताक़त बनी रहेगी काम करने की ।
उस दिन तो हमने वो खा लिया और आगे चल दिए पर इसका मतलब समझने में बहुत समय लगा । पर जब समझ आया तो जैसे जीवन में बहुत कुछ बदल गया । ये आवश्यक नहीं कि किसी महान कार्य का हम केवल बड़ा हिस्सा ही करें , कभी कभी बहुत साधारण सा दिखने वाला काम बहुत बड़ा हो जाता है ।
काम कोई छोटा होता ही नहीं , पर उसको करने की प्रबल इच्छा उसे उच्चतम स्तर पर ले जाती है ।
यही गिलहरी प्रयास होता है !!!
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