कांग्रेस पार्टी ने देश का विभाजन करके जबसे इस देश की सत्ता पर कब्ज़ा किया था,तब से ही इसकी लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में कोई खासी दिलचस्पी नहीं रही है. लोकतंत्र का पहला स्तम्भ न्यायपालिका है, जिसे कांग्रेस पार्टी ने शुरू से ही अपने कब्ज़े में करने के लिए रौंदने का काम किया है. सत्ता में रहते हुए इसने अपनी पार्टी ने अपने सक्रिय नेताओं को कई बार अदालतों में जज बनवा दिया. जब सत्तारूढ़ पार्टी के नेता खुद ही न्यायपालिका में घुसपैठ कर जाएंगे तो आप खुद समझ लें कि देश की न्यायपालिका का क्या हाल होगा और वह लोकतंत्र के एक स्वतंत्र स्तम्भ की तरह किस तरह काम कर पाएगी ? पिछले 6 सालों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है और जब कुछ फैसले अदालतों ने कांग्रेस के मन मुताबिक नहीं सुनाये तो कांग्रेस अपनी पुरानी आदत के मुताबिक अदालत के जज के खिलाफ महाभियोग तक लाने की धमकी देने लगी.कांग्रेस की तरफ से सन्देश साफ़ था कि या तो फैसले उसके मन मुताबिक आने चाहिए या फिर जजों को महाभियोग के लिए तैयार रहना चाहिए.

लोकतंत्र का एक और स्तम्भ भी है जिसे देश की जनता “लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ” के नाम से जानती है और देश की जनता पिछले लगभग 70 सालों से इस खुशफहमी में थी कि लोकतंत्र का यह स्तम्भ यानि मीडिया तो कम से कम निष्पक्ष होकर लोकतंत्र की रक्षा और रखवाली कर रहा होगा. लेकिन पिछले दिनों कांग्रेस शासित महाराष्ट्र में जिस तरह का अघोषित आपातकाल लगा हुआ है, उसके बारे में देश के मीडिया के एक बड़े वर्ग ने जिस तरह की शर्मनाक चुप्पी साधी हुई है, उसे देखने के बाद आज देश के हर नागरिक के मन में यही प्रश्न उठ रहा है कि आखिर देश का यह मीडिया जो अपने आप को आज तक “लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ” कहकर लोगों को बेबकूफ बनाता आया था, वह एक कांग्रेस शासित राज्य में लगातार हो रही लोकतंत्र की दिन दहाड़े की जा रही हत्या पर चुप्पी सिर्फ इसलिए लगाए हुए है क्योंकि यहां उसके आकाओं की बदनामी ना हो जाए. जनता अब समझदार हो चुकी है. 1975 में जब कांग्रेस ने पहली बार देश में आपातकाल लगाकार देश भर में अपनी नरपिशाची सोच का परिचय दिया था,तब से लेकर 2020 तक देश में शिक्षा और जागरूकता का स्तर भी बढ़ा है और इंटरनेट के आने की वजह से सोशल मीडिया तक भी लोगों की पहुँच बढ़ गयी है. “कांग्रेस का चौथा स्तम्भ बन चुका मीडिया” अगर अपने आकाओं की नालायकी तो अपने अखबार में न छापे या अपने चैनल पर न भी दिखाए तो भी लोगों तक कांग्रेस की नालायकी के किस्से आज सोशल मीडिया की बदौलत पहुँच ही जाते हैं.

यह सारा मामला अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और दिशा सालियान की रहस्यमय हत्या के बाद शुरू हुआ था. दिशा की हत्या से पहले उसके साथ सामूहिक बलात्कार भी किया गया था. क्योंकि इन दोनों की हत्या और दिशा के गैंग रेप में कुछ रसूखदार लोग शामिल थे, इस हत्या को “आत्महत्या” का रूप देकर महाराष्ट्र सरकार सारे मामले को रफा दफा करने के चक्कर में थी. इससे पहले पालघर में हिन्दू साधुओं की हत्या में भी महाराष्ट्र सरकार और पुलिस की भूमिका साफ़ नज़र आ रही थी लेकिन देश के मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग महाराष्ट्र सरकार से सवाल करने में झिझक रहा था. लेकिन एक नया टी वी चैनल “रिपब्लिक” जो अभी तक “कांग्रेस का चौथा स्तम्भ” नहीं बना था और अभी भी “लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ” बनने की जुर्रत कर रहा था, उसने महाराष्ट्र सरकार से वही सब सवाल करने शुरू कर दिए जो एक निष्पक्ष मीडिया हॉउस को करने चाहिए. नतीजा यह हुआ कि उस चैनल के पीछे सरकार उसी तरह हाथ धोकर पीछे पड़ गयी जिस तरह से एमर्जेन्सी के दौरान यह लोगों के पीछे पडी थी. चैनल के पत्रकारों को गिरफ्तार किया जाने लगा, उसके प्रधान संपादक और मुख्य वित्तीय अधिकारी को दर्जनों घंटे थाने में बुलाकर प्रताड़ित किया जाने लगा. चैनल और उसके पत्रकारों को फ़र्ज़ी मामलों में फंसाया जाने लगा. चैनल के सभी 1000 पत्रकार कर्मचारियों पर बिना किसी वजह के मामले दर्ज़ कर दिए गए. चैनल से पिछले चार सालों के सभी खर्चों का ब्यौरा माँगा जाने लगा मानो कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का काम भी अब पुलिस विभाग ने करना शुरू कर दिया हो. इतना सब कुछ होने के बाद भी देश के किसी मीडिया हॉउस ने न तो इसके खिलाफ कोई आवाज़ उठाई और न ही इन बेशर्मी भरी घटनाओं की खबर देश की जनता तक पहुंचाई. एक तरह से देखा जाए तो “तथाकथित लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ” सिर्फ इसलिए चुप हो गया क्योंकि वह शुरू से ही “कांग्रेस पार्टी का चौथा स्तम्भ ” होने की भूमिका अदा करता आया था. दिल्ली के कुछ मीडिया घरानों पर मनी लॉन्डरिंग के मामले में जब कार्यवाही हुई थी तो यही मीडिया “प्रेस की आज़ादी” को लेकर चिल्ला रहा था मानो कि मीडिया घरानों को मनी लॉन्डरिंग में पकड़ा जाएगा तो प्रेस की आज़ादी खतरे में आ जाएगी लेकिन जब महाराष्ट्र में वास्तव में प्रेस की आज़ादी पर लगातार वहां की कांग्रेस सरकार हमला करके लोकतंत्र का गला घोंट रही है तो यही मीडिया और इससे जुड़े सभी संगठनों को सांप सूंघ गया है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया जैसी सभी संस्थाएं महाराष्ट्र में प्रेस की आज़ादी पर किये जाने वाले इस शर्मनाक हमले पर सिर्फ इसलिए खामोश हैं क्योंकि यह हमला कांग्रेस सरकार द्वारा किया जा रहा है और इन तथाकथित प्रेस की आज़ादी का दम भरने वाली संस्थाएं तभी चीख पुकार करेंगी जब यह हमला किसी भाजपा की सरकार द्वारा किया जाएगा.

इस सारे घटनाक्रम से देश की जनता को सिर्फ एक ही फायदा हुआ है, वह यह कि जिन अख़बारों और टी वी चैनलों को लोग यह समझकर देख रहे थे या पढ़ रहे थे कि यह लोग “सच्ची ख़बरें” दिखा रहे हैं या छाप रहे हैं, उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम हो गयी है वही सब कुछ छापा या दिखाया जा रहा है जो कांग्रेस पार्टी चाहती है. जो भी अखबार या चैनल कांग्रेस के खिलाफ कुछ छापेगा या दिखायेगा उसका वही हाल किया जाएगा जो अर्नब गोस्वामी और उसके चैनल रिपब्लिक के साथ किया जा रहा है. जिस मीडिया को देश के लोग “लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ” समझ रहे थे, वह तो “कांग्रेस पार्टी का चौथा स्तम्भ” निकला हैं,यह बात देश के लोगों को देर से ही सही, मालूम हो गयी है.

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.