ये लेख एक व्यंग्यात्मक कटाक्ष है। किसी जिवित व्यक्ति अथवा संस्था से इसकी समानता केवल संयोग मात्र है। यदि आपकी भावनायें इस लेख से आहत होती हैं तो आपको शीघ्र अति शीघ्र एक मनोचिकित्सक से मिलने की आवश्यकता है।


ऐसी बानी बोलिए, शहद व्हिस्की डुबोए।
पत्रकार के पतलकार भी, धंधा चंगा होए।।

सच्ची पत्रकारिता करना एक महान सेवा होती है। जिसमें आप किसी की सेवा करते हैं और बदले में वो आपकी सेवा करते हैं (2BHK)। ये ऐसी सेवा है जिसमें आपको सरकार से प्रश्न पूछना होता है। और सरकार से मतलब केवल मोदी और बीजेपी से है। क्योंकि श्री ७८६ रबीश कुमार थ्योरी के अनुसार भारत एक तानाशाही राष्ट्र है। इसीलिए केरल हो या बंगाल, इन राज्यों की बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, इत्यादि समस्याओं की दोषी भी मोदी सरकार ही है। वैसे तो इन राज्यों में बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, परन्तु हमारे मगसेसे अवार्डधारी निष्पक्ष पत्रकारिता के रचियता श्री रबीश कुमार जी की विक्टिम कार्ड स्कीम में बीजेपी के और हिन्दुओं की हत्याओं के मामले तो आते ही नहीं। इस स्कीम का लाभ केवल ग्रेटा की चेली, मुन्ना फटरूखी, मिया खिलाफत, जवाहिरलाल लेहरु विश्वविद्यालय के कामपंथी छात्र, छात्राओं को और ऐसे ही चिरकुटों को उपलब्ध है। इस स्कीम की विशेषता ही यही है कि ये चिरकुटों को भी चमन और चमन को रबीश बना देती है। हे हे हे…

ऐसे ही हेवर्ड बैगपाइपर यूनिवर्सिटी के प्रखंड विद्वान पत्रकारों की पीकाचू से एक अत्यंत ज्ञानवर्धन वार्ता सामने आयी है। सूत्रों से हमें ज्ञात हुआ है कि इस वार्ता के नोट्स बना के मुखर्जी नगर में यूपीएससी की तैय्यारी कर रहे छात्रों में धड़ल्ले से बिकने भी चालू हो गए हैं। ऐसे ही नोट्स से पढ़कर, काफी संघर्षों के बाद पत्रकारों की अनन्या पांडे ने पीकाचू से प्रश्न पूछा “दीदी सू सू कब करती हैं?” एच सी वर्मा के मोमेंट ऑफ ईनरशिया के प्रश्नों को भी चुटकी में निपटा देने वाले पीकाचू, ऐसे क्रांतिकारी प्रश्न को सुनकर निरुत्तर हो गए।

अब बारी थी श्री ७८६ रबीश कुमार की। रबीश की तानाशाही मीटर में मोदी तानाशाह हैं और ममता दीदी ‘ममता’ की साक्षात मूरत, बुरहान वानी भटका हुआ हेड मास्टर का बेटा है और रिंकू शर्मा बजरंग दल का कट्टरवादी, नक्सली क्रांतिकारी हैं और भारतीय सैनिक अत्याचारी। अपनी इसी थ्योरी के अंतर्गत रबीश जी ने प्रश्न किया कि बंगाल में एंटी इनक्मबेन्सी मोदी सरकार के विरुध्द क्यों नहीं है?
श्री ७८६ कुमार को इसीलिए भारत का सर्वोत्तम पत्रकार माना जाता है। पिछले एक वर्ष से अपने घर में बैठकर प्राइम टाइम करने के बाद भी रबीश जी ने बंगाल के विषय में ऐसा उत्तम प्रश्न पूछा जैसा प्रश्न कक्षा ग्यारहवीं के रसायन शास्त्र के प्रैक्टिकल के वाईवा में भी नहीं पूछा जाता। अब आप ही बताइए, राज्य में केंद्र की योजनाओं के क्रियान्वयन का दायित्व राज्य सरकार पर होता है। परन्तु अपनी तुच्छ बुद्धि के कारण बहुत से लोग ये फिर भूल जाते हैं कि रबीश थ्योरी में भारत तानाशाह है और मोदी तानाशाही। ऐसे में केंद्र की योजनाओं के क्रियान्वयन का काम मोदी से पूछे बिना भी भला ममता कर कैसे सकती हैं? हाँ ये बात अलग है कि मोदी के ही समर्थकों की हत्या आए दिन होती रहती है परन्तु जैसा कि पहले बताया था, मोदी समर्थकों ने मोदी भक्ति में रबीश के विक्टिम कार्ड स्कीम में कभी भाग ही नहीं लिया।
२०१४ में भी मोदी लहर को नकारने वाले श्री रबीश जी अपने समय के केवल ऐसे गिने चुने पत्रकारों में से ही थे। अब न्यूटन के सिद्धांतों को गलत साबित कर के ही तो कोई आईंस्टाईन बना था। हाँ ये बात अलग है कि २०१९ में भी रबीश की बातें गलत निकलीं। और इसी गलती ने रबीश की डर का माहौल वाली थ्योरी को जन्म दिया। पत्रकार जगत में अभी से इसकी तुलना आईंस्टाईन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी से होने लगी है। क्योंकि रिलेटिविटी की तरह डर का माहौल भी सरकार अनुसार, मजहब अनुसार, विचारधारा अनुसार, परिवार अनुसार बदलती रहती है और इसका निर्णय सबसे बेहतर केवल रबीश ही कर सकते हैं। क्योंकि रबीश के अनुसार बंगाल के पंचायत चुनाव में डर का माहौल नहीं था, कश्मीर के कश्मीरी पंडितों में डर का माहौल नहीं था, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के विरुद्ध काम करने वाले वनवासियों में डर का माहौल नहीं है, परन्तु शाहीन बाग में महीनों सड़कों में बैठकर कुदरती बिरियानी खाने वालों में डर का माहौल था। और इसी डर के माहौल के कारण दिल्ली दंगा हो जाता है।

तो सौ बात की एक बात ये है कि दीदी सू सू कब कर लेती हैं? पीकाचू तो इसका उत्तर नहीं बता पाए। परन्तु श्री ७८६ रबीश कुमार अपनी कुदरती बुद्धि से इसे सुलझाने वाली कोई कुदरती थ्योरी अवश्य निकाल लाएंगे। आप बस प्राइम टाइम देखते रहिए।

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