कल पत्रकार रोहित सरदाना के निधन पर कुछ वामपंथी बुद्धिजीवी और शांतिप्रिय समुदाय के लोग मिलकर खुशी जता रहे थे। इन लोगों ने जिस बेशर्मी से कल रोहित सरदाना के निधन पर अपना असली चेहरा जाहिर किया उसे देखकर गिद्ध भी शर्मा गए। ऐसे में आज खबर आई कि बाहुबली शहाबुद्दीन का दिल्ली के एक अस्पताल में कोरोनावायरस के चलते निधन हो गया। कल तक जो शांतिप्रिय समुदाय के लोग रोहित सरदाना पर हंस रहे थे आज उन सभी की जुबान शहाबुद्दीन के मसले पर गूंगी बन गई। 


रोहित सरदाना की मृत्यु के खबर आते ही उन पर अनर्गल लिखने वालों में कई हिंदू भी शामिल थे । मुकेश कुमार, रवीश कुमार, ओम थानवी, उमाशंकर सिंह, स्वतंत्र मिश्र, अभिषेक कश्यप जैसे दर्जनों नाम शामिल हैं। गौरतलब है कि इन सभी की पारिवारिक पृष्ठभूमि हिन्दू की है और ये सभी खुद को ‘प्रगतिशील—निष्पक्ष’ लेखक कहलाना पसंद करते हैं। 


लेकिन इस देश के प्रगतिशील—निष्पक्षों ने दशकों तक सिस्टम का हिस्सा रहकर भी ऐसे दस मुसलमान खड़े नहीं किए जो जेल में बंद शाहबुद्दीन को अपराधी लिख पाए। उसके अपराधों के लिए चार शब्द खरी—खरी लिख पाए। 


रोहित सरदाना की रिपोर्टिंग पर मत की बात है। कोई सहमत और कोई अहसमत हो सकता है। लेकिन शाहबुद्दीन के अपराधी होने पर कोई विवाद नहीं है। उसके बावजूद भी पांच प्रगतिशील मुसलमान मिलने दुर्लभ क्यों हैं?

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