भारत इस समय जिस कोरोना स्ट्रेन की लहर से जूझ रहा है वो देश में तबाही मचा रही है । अक्सर कुछ लोग यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि चीन के द्वारा यह भारत पर किया गया एक जैविक हमला है । इससे पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी ‘चीनी वायरस’ कहकर इसे जैविक हमला बता चुके हैं। अब ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि चीन साल 2015 से ही कोरोना वायरस पर शोध कर रहा था। सिर्फ यही नहीं चीन की मंशा इसे जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की थी।
कोरोना वायरस को लेकर चीन शुरू से ही शक के घेरे में है। ‘द वीकेंड ऑस्ट्रेलियन’ ने अपनी रिपोर्ट में चीन को लेकर यह खुलासा किया है। रिपोर्ट में चीन के एक रिसर्च पेपर को आधार बनाया गया है। इसमें कहा गया है कि चीन छह साल पहले से यानी 2015 से सार्स वायरस की मदद से जैविक हथियार बनाने की कोशिश कर रहा था। चीन की सेना 2015 से ही कोविड-19 वायरस को जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की साजिश रच रही थी।
रिपोर्ट में इस बात पर भी सवाल उठाया गया है कि जब भी वायरस की जांच करने की बात आती है तो चीन पीछे हट जाता है। ऑस्ट्रेलियाई साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट रॉबर्ट पॉटर ने कहा कि कोरोना वायरस किसी चमगादड़ के मार्केट से नहीं फैल सकता। यह कहानी पूरी गलत है। चीनी शोध पत्र के अध्ययन के बाद उन्होंने कहा कि वह रिसर्च पेपर बिल्कुल सही है।
जेनिंग्स ने यह भी कहा कि यह शोध यह भी स्पष्ट करता है कि चीन कोविड-19 की उत्पत्ति की बाहरी एजेंसियों से जांच में रुचि क्यों नहीं है। यदि यह किसी बाजार से फैलने का मामला होता तो चीन जांच में सहयोग करता।
बता दें कि चीन के वुहान में कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए गए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अब तक कोई ठोस रिपोर्ट पेश नहीं की है। पश्चिम देशों ने कोरोना वायरस महामारी को लेकर डब्ल्यूएचओ के रवैए पर भी सवाल उठाए हैं।
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