आज विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है वह महान देशभक्त जिसे इतिहास के पन्नों में झूठे इतिहासकारों द्वारा षडयंत्र की साजिश के तहत गुम करने की नाकाम कोशिश की गई है। कल्पना कीजिए… तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है…।। इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो… ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी .. ??
उन्होंने अपनी पत्नी से एक ही बात कही… – “तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना… मैंने तो ये ज़िन्दगी इस देश के नाम कर दी, तुम परिवार को सम्भालो ..!!! जिस व्यक्ति को अंग्रेज नहीं मिटा सकें उस व्यक्ति को कांग्रेस और वामी वर्ग ने मिटाने का पूरा प्रयास किया …। 24 फरवरी 1910 को उन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक नहीं, बल्कि दो-दो जन्मों के कारावास की सजा सुनाई थी…उन्हें 150 वर्ष की सजा सुनाई गई थी..???
दुर्दशा देखिये की उनके आंसुओं का हिसाब अभी नहीं हुआ है..?? उपेक्षा और तिरस्कार ऐसा कि मौत के बाद भी सावरकर की मृत्यु पर एक दिन का भी राजकीय शोक घोषित नहीं हुआ, महाराष्ट्र का एक भी कैबिनेट मंत्री उनकी अंत्येष्टि में शामिल नहीं हुआ ….।
सावरकर जीते जी सदैव अपमानित किए गए पर अविचलित हिन्दुत्व के लिए खड़े रहे…सावरकर वह जिसने मौत को हराया, जिनकी आज्ञा से मौत उनके पास तब तक नहीं फटकी जबकि उन्होंने स्वयं उसका वरण नहीं कर लिया…।
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