जब भी विकास की बात करो तो अखिलेश यादव और सपाइयों का आगरा एक्सप्रेसवे वाला तोता रटंत शुरू हो जाता। उनके शासन में किया गया अन्य विकास कार्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। अखिलेश शासन काल का विकास कहीं लेटा हुआ तो कहीं टेढ़ा पड़ा दिख जाता है। टीपू खुद को धरतीपुत्र का पुत्र बोलते हैं लेकिन सपने मुंगेरीलाल की तरह हवाई देखते। टीपू 2014 नीदरलैंड गए थे, वहां के साइकिल ट्रैक पर लट्टू हो गये और यूपी की गली कूचे तक में साइकिल ट्रैक बना डालें। भूल गए की यहाँ साइकिल नहीं, बकरी और भैंस लिए विकासदूत साइकिल ट्रैक का इंतज़ार कर रहे। नतीजा यह हुआ कि पहले से संकरी सड़कें और भी संकरी हो गई। साइकिल चलाना तो दूर लोग इस ट्रैक पर पैदल भी नहीं चलते थे। हां ट्रैक पर भैंस, बकरियां जरूर बंधने लगे। बचे ट्रैक पर रेहड़ी और ठेले सज गए।
अखिलेश यादव का विकास सड़क से सीधे फुटपाथ पर आ गया। आपने कभी ध्यान नहीं दिया होगा अखिलेश ने विकास कार्यों में साइकिल ट्रैक को कभी नहीं गिनाया। गिनाते कैसे, साइकिल ट्रैक बनाने में समाजवादियों ने जमकर मलाई काटी। खर्चा आया 2 अरब रुपए से अधिक। इसमें कितना इनके ठेकेदारों ने खाया और कितना काम आया यह जांच का विषय है।
सपा सरकार में दो अरब से ज्यादा की लागत से प्रदेश के बड़े शहर लखनऊ, बरेली, गाजियाबाद आदि में साइकिल ट्रैक बनाए गए। मौजूदा समय में ज्यादतर ट्रैक गायब हो चुके हैं और जो बचे हैं उनपर साइकिल नहीं चलती हैं। ये ट्रैक पटरी दुकानदार, मैकेनिक और ठेलेवालों के काम आ रहे हैं।
नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना का कहना है करोड़ों के इन साइकिल ट्रैक की कोई उपयोगिता नहीं है।
पूरे प्रदेश में सपा सरकार के समय तंग सड़कों के किनारे बने सभी साइकिल ट्रैक तोड़े जाएंगे। क्योंकि इनसे यातायात प्रभावित हो रहा है और ट्रैक बनने के बाद अतिक्रमण बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों में करीब 200 किलोमीटर का साइकिल ट्रैक बनवाने का लक्ष्य रखा गया था। साईकिल ट्रैक की औसत चौड़ाई 2.5 मीटर है। एक किलोमीटर के साइकिल ट्रैक बनाने में करीब 80 लाख रुपये का खर्च आया।
एशिया का सबसे लंबा साइकिल ट्रैक इटावा से आगरा तक बना है। 207 किलोमीटर लम्बे इस लम्बे साइकिल ट्रैक को बनाने में 130 करोड़ से भी अधिक खर्च हुआ।
लखनऊ में 270 किलोमीटर का साइकिल ट्रैक तीन चरण में बनना था। पहले में 35 किलोमीटर, दूसरे में 31 किलोमीटर और तीसरे में 204 किलोमीटर। इस पूरे कार्य के लिए 201 करोड़ का खर्च होना था। दो चरण ही पूरा हुआ।
गोरखपुर में करीब 2 किलोमीटर का ट्रैक बना जिसे बनाने में करीब 1.5 करोड़ रु का खर्च आया।
आगरा के मॉल रोड करीब 2 करोड़ खर्च करने के बाद 2 किलोमीटर ही साइकिल ट्रैक बन पाया। इसके अलावा गाज़ियाबाद और इलाहाबाद में भी कुछ दूर का ही साइकिल ट्रैक बन पाया।
इस अदूरदर्शी योजना का नतीजा यह हुआ कि सकरी रोडों पर भी साइकिल ट्रैक का निर्माण हो गया। इसके चलते एक तो रोड पर चलने की जगह कम हो गयी और दूसरे ये ट्रैक साइकिल चलाने से अधिक अतिक्रमण के काम आरहे हैं। यह हाल लखनऊ का नहीं बल्कि पूरे प्रदेश का है।
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