राम भारत की संस्कृति है, सदियों से लोकमानस के चित्त में प्रतिष्ठित संस्कृति पुरुष हैं। राम मर्यादा हैं, राम विश्वास हैं!…..पिछले कुछ समय से, मन में स्मृतियों के अनगिनत पन्ने फड़फड़ा रहे हैं, अपने जीवन का दो तिहाई सफर मैं तय कर चुकी, इस दौरान एक लंबा इतिहास देखा है, देश का, समाज का, परिवेश का, संस्कृति का! बहुत कुछ बनता हुआ बिगड़ता हुआ और बदलता हुआ..स्वतंत्र विचारधारा वाले परिवार में जन्मने का लाभ मेरे विचार प्रवाह को भी पंख दे गया… छोटी सी उम्र में बड़ी बातें, मुद्दे, विचार, मथने लगे, शंकाओं प्रश्नों जिज्ञासाओं का हमारे यहां आदर था, घर में सब बातों के जवाब नही थे, लिहाजा अध्ययन की ओर प्रवृत्त हुई।
सन 1976 में हमारे पिताजी हम सबको ले कर गोरखपुर पहुँचे। उस समय मेरी उम्र थी 9 बरस की! और फिर राप्ती की माटी और गोरक्षनाथ के संस्कार ने मुझे वहीं बांध लिया। वहीं गुरु मिले, शिक्षा और संगीत मिला।चाँदनी रात में गोरक्षनाथ मंदिर भ्रमण को जाते तो, लंबी दाढ़ी में शांत स्मित ऋषि जैसे व्यक्तित्व को देखने का लोभ मन में रहता, और वे प्रायः प्रांगण में भ्रमण करते दिख जाते, मैं दौड़ कर उंन्हे प्रणाम करती, वे गोरक्षनाथ पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ थे। मैं प्रतिवर्ष गोरक्षनाथ मंदिर की वार्षिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती, और पारितोषिक ग्रहण करने का सबसे बड़ा चाव यही था कि महंत अवैद्यनाथ जी जैसे संत के हांथों मिलेगा..यहीं से संस्कृत और संस्कृति के प्रति श्रद्धा जगी,भारत की सनातन परंपरा को निकट से जानने की रुचि जगी।
गोरखपुर से जब भी लखनऊ जाना होता, पिताजी खुद अपनी फ़िएट गाड़ी चला कर जाते, और नियम था बीच रास्ते अयोध्या में हनुमानगढ़ी दर्शन कर ही आगे की यात्रा के लिए निकलना…..मुझे आज भी याद है, सन 82 की बात होगी, हनुमानगढ़ी दर्शन के समय वहां साधु संत पुजारी हांथों में छपे हुए पर्चे पकड़ाते, उन पर्चों में रामजन्मभूमि के संघर्ष का वर्णन लिखा रहता। पिताजी सब पढ़ कर क्षुब्ध हो जाते, उंन्हे दान दक्षिणा देकर कार में बैठते तो हम लोगों को गाड़ी में सब कथा सुनाते। सुन कर हम मासूम पिताजी से यही पूछते, कि राम तो अयोध्या में ही जन्मे, फिर इसमें किस बात का झगड़ा है?
पिताजी तब हमें सारी कथा सुनाते हुए कहते, सबके आराध्य भगवान श्री राम की जन्मभूमि के अधिकार को लेकर गोरक्षनाथ पीठ बहुत मुखर रही है और महंत अवैद्यनाथ जी इस के बहुत सशक्त स्वर हैं। महंत जी का नाम सुनते ही शीश श्रद्धावनत हो गया। महंत अवैद्यनाथ ऋषि समान व्यक्तित्व थे, मैं अपना सौभाग्य मानती हूं कि मुझे उनका आशीर्वाद मिला है।शिशु जैसी मुस्कुराहट,सदैव आशीर्वाद देती हुई उनकी गरिमामयी भव्य छवि आज भी मनोमस्तिष्क में अंकित है।..
समय बीता,और 1998 में पतिदेव की अयोध्या जिलाधिकारी के रूप में नियुक्ति हुई और रामलला की सेवा का सौभाग्य का अवसर मिला, कह नही सकती कि कारागार रूपी परिसर में हजारों सिपाहियों से घिरे हमारे रामलला को देख कैसा लगता था! मन में प्रार्थना और नैनों में प्रश्न और संवाद !अयोध्या से काशी, मेरठ होते हुए इनकी नियुक्ति वर्ष 2002 में गोरखपुर जिलाधिकारी के रूप में हुई। अपने गोरखपुर शहर पुनः जाना एक भावनात्मक अनुभव था, और इस समय गोरक्षनाथ पीठ के महंत थे श्रद्धेय अवैद्यनाथ जी एवं उनके शिष्यत्व में आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी उस समय गोरखपुर के लोकप्रिय सांसद भी थे।……
5 अगस्त 2020 रामकृपा से राममंदिर निर्माण प्रारंभ हो गया है और इस समय यह दैवीय संयोग है कि यह पुण्य कार्य जिनकी देखरेख में सम्पन्न होगा, वे गोरक्षनाथ पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी की इस समय उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर आसीन है।
गोरक्षनाथ पीठ रामजन्मभूमि आंदोलन का प्रणेता रही है। गोरखनाथ मठ की तीन पीढ़ियां मंदिर आंदोलन से जुड़ी रही हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के गुरु महंत अवैद्यनाथ और अवैद्यनाथ के गुरु महंत दिग्विजयनाथ जी का योगदान अभूतपूर्व है।गोरक्षनाथ मठ के महंत दिग्विजय जी पहले व्यक्ति थे जिनकी अगुवाई में भगवान राम जन्मभूमि के अधिकार को वापस पाने के लिए आंदोलन प्रारंभ हुआ।मेवाड़ में जन्मे महंत दिग्विजयनाथ जी ने गोरक्षनाथ पीठ द्वारा गोरखपुर में अनेक शिक्षण संस्थानों को स्थापित किया। उन्होंने सड़क से लेकर विधानसभा और संसद तक राम मंदिर की बात को पूरी दमदारी से उठाया। सच तो यह है कि करीब 500 वर्षों से राममंदिर की मांग को आंदोलन के रूप में गति देकर एक मजबूत बुनियाद देने का काम उन्होंने ही किया था।
महंत दिग्विजय नाथ ने पहली बार, 22 दिसंबर 1949 को रामजन्मभूमि अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा का पूजन प्रारंभ कराया। महंत दिग्विजयनाथ हिंदू महासभा की प्रथम पंक्ति के नेताओं में शुमार थे। हिंदू महासभा के विनायक दामोदार सावरकर के साथ महंत दिग्विजयनाथ ने मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया।दो बार मानीराम से विधायक और बाद में 1967 में गोरखपुर संसदीय सीट से सांसद चुने गये महंत दिग्विजय नाथ दृढ़ प्रतिज्ञ और आत्मसम्मान से समझौता न करने वाले व्यक्ति थे। 1969 में चिरसमाधि लेने तक उनका राममंदिर आंदोलन जारी रहा उनके बाद गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में महंतअवैद्यनाथ जी प्रतिष्ठित हुए, उन्होंने अपने गुरु के कार्य को न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उसे और विस्तार दिया। महंत अवेद्यनाथ जी अशोक सिंघल जी और महंत परमहंस जी के साथ मंदिर आंदोलन के कर्णधारों में थे। योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षनाथ पीठ के महंत रहे अवैद्यनाथ 1991 के राम मंदिर आंदोलन के समय प्रमुख चेहरा थे। महंत अवैद्यनाथ जी श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ के आजीवन अध्यक्ष रहे। गोरक्षनाथ पीठ की स्वीकार्यता इस तरह रही कि उन्होंने संसद में चार बार गोरखपुर का प्रतिनिधित्व किया। बतौर उत्तराधिकारी उनके साथ दो दशक से लंबा समय गुजारने वाले पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ आज देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
उनके गुरुओं, पूर्वजों का आशीष है जो अयोध्या में राममंदिर रूपी महायज्ञ, उनके हांथों सम्पन्न होने जा रहा है।प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्रमोदी जी द्वारा सम्पन्न हुई नींव अर्चना के पीछे उनका सुविचार भी रहा होगा जब उन्होंने महंत आदरणीय श्री योगीआदित्यनाथ जी को उत्तरप्रदेश का दायित्व सौंपा होगा। जन जन का चिरप्रतीक्षित स्वप्न पूर्ण होने जा रहा है, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण होने जा रहा है और राम ने पुण्यकर्म का कर्ता चुन लिया है!
जय सियाराम
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