अपने दो दशक के अदालती कामकाज के अनुभव के आधार पर मेरा आकलन यही था कि जब , राज्य सरकार की सांठ गाँठ , दबाव और इशारे पर पुलिस प्रशासन किसी से बदला लेने पर उतरती है तो फिर प्रदेश की न्यायपालिका , कम से कम उस सम्बंधित प्रदेश की न्यायापालिका स्तर तक न्याय मिल पाना अक्सर बहुत कठिन हो जाता है और फिर एक सिर्फ और सिर्फ एक ही उपाय बचता है -सर्वोच्च अदालत।

आज , एक बार फिर जब पूरा देश , न सिर्फ देश और बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें सर्वोच्च अदालत की तरफ थी , इसलिए भी क्यूंकि पिछले आठ दिनों से लगातार होता हुआ अन्याय , षड्यंत्र देखते जाने के बाद आखिरकार अब जाकर इस पर विधिक विमर्श होने और उसके बाद माननीय न्यायपालिका का रुख , आदेश , निर्देश , नियम कानूनों की समुचित व्याख्या का अवसर उपलब्ध होगा। आख़िरकार हुआ भी वही और अदालत ने जब इस मामले की पड़ताल शुरू की तो प्याज की तरह सब कुछ छील कर रख दिया।

अदालत द्वारा मामले को सुनते हुए जो कुछ बहुत जरूरी कहा लिखा गया और जिसे जानना बहुत जरूरी है वो ये है :

महाराष्ट्र की राज्य सरकार समेत देश के किसी भी राज्य की कोई भी सरकार , कितनी ही शक्तिशाली हो , कितनी ही उदंड हो , अपनी ताकत का दुरुपयोग करके किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता में रत्ती भर भी दखल नहीं दे सकती।

देश का संविधान और उसी के अनुरूप बने हुई विधिक व्यवस्थाएं व कानून इस बात की इजाजत किसी को भी नहीं देती। अदालत ने हैरानी जताई कि किस तरह से एक ट्वीट भर लिख देने के कारण राज्य सरकारें व्यक्तियों को जेल भेज रही हैं , ये सरकार का काम नहीं है।

उच्च न्यायालय के वर्तमान आदेश में न्यायालय स्वयं , न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत -हर व्यक्ति को स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है -की सुरक्षा और संरक्षण देने में सर्वथा असफल रही है। इसलिए मुंबई उच्च न्यायालय समेत देश भर की अदालतों को सख्त और स्पष्ट देने का सही वक्त मानते हुए चेता दिया कि सर्वोच्च अदालत के रहते उन्हें अपनी इस प्रवृत्ति से बचना होगा।

अदालत ने , पूरी सरकार , पुलिस , प्रशासन और अदालत तक द्वारा मिल कर एक षड्यंत्र के तहत एक टीवी समाचार चैनल , एक व्यक्ति के विरुद्ध लगातार कार्यवाही करते जाने को सरासर गलत और अनुचित करार देते हुए स्पष्ट किया कि , सिर्फ इसलिए कि उसके सवाल खड़े करने से , उसके तीखे तेवर से यदि समस्या है तो सीधे सीधे उन सबकी है न की उस चैनल और उस चैनल के कर्मचारियों अधिकारियों की।

अदालत ने इस मुक़दमे के विधिक पक्षों पर भी काफी कुछ विस्तार से कहा है जो तकनीकी बाते हैं तथा चूँकि मामला अदालत में लंबित है ,न्यायिक कार्यवाही चल रही रही इसलिए उस पर किसी भी तरह की टीका टिप्पणी न करना ही उचित है।

ये फैसला , इस पर पहुँचने के लिए हुई विधिक बहस के दौरान शीर्ष अदालत द्वारा की गई बेहद सख्त टिप्पणियाँ सबक हैं , एक नजीर है , एक करारा तमाचा है।

उन सरकारों के लिए जो , दो चार सीटें पाकर , सत्ता पर काबिज होते ही खुद को कानून से ऊपर समझ कर मनमानी करने लगती हैं , उन्हें याद रखना चाहिए कि न्याय का हथौड़ा जब चलता है तो सत्ता का ये घमंड चूर चूर हो जाता है।

ये सबक है उस प्रशासन , उस पुलिस , उस न्यायालय के लिए भी और इन जैसे तमाम राज्य प्रशासनों के लिए कि उनका काम , विधि एवं न्याय द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत ही आचरण और व्यवहार करना है , राजनीति के टट्टुओं के हुक्म भर बजाना नहीं।

अब आने वाले समय में , प्रदेश की शिवसेना सरकार के गाल पर पड़े इस झन्नाटेदार सबक के निशाँ कितने समय तक उन्हें उनकी इस गलती का एहसास दिलाते रहेंगे ये देखने वाली बात होगी।

बहरहाल ही बीच , रिपब्लिक भारत पर , देश का सबसे चहेता और सबसे मुखर , निडर पत्रकार अर्नब गोस्वामी वापस आ रहा है और आते ही फिर दहाड़ेगा-पूछता है भारत |

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