भारत में लोकसभा के चुनावों का आकलन विश्लेषण उस समय बहुत सरल दिखने लगता है जब बिहार उत्तर प्रदेश बंगाल और राजस्थान जैसे बड़े प्रांतों के विधान सभा चुनाव होते हैं | राजधानी दिल्ली का तो स्वैग ही हमेशा से अलग रहा है | विधानसभा एक राजनीतिक दल के हवाले तो पूरा संसदीय क्षेत्र दूसरे दल के | यानि दायित्व निर्वहन हेतु सबको पूरा अवसर दिए जाने की व्यवस्था | 

बिहार के विधानसभा चुनाव भी सामने हैं ,हालांकि उससे पहले कोरोना संकट है और उससे भी पहले अब बाढ़ की विभीषिका | बिहारी मतदाता जो जरूरत से कहीं अधिक सजग है राजनीतिक रूप से उसे इतने सालों तक इस बद इन्तज़ामी की ,पिछड़ेपन के एहसास की , आधुनिकता की तथाकथित तहज़ीब से दूर   माने और समझे जाने की एक आदत सी डलवा दी गई | 

बिहार से निकल कर पूरी  दुनिया में अपने श्रम ,अपनी बुद्धि और व्यवहार के बल पर समाज में एक विशिष्ट मान और स्थान पाने का पर्याय माना समझा जाने वाला खुद अपने घर में खस्ताहाल हो जाता है और   यही सबसे बड़ी विडंबना है | 

लालूयादव के अराजक शासनकाल में पूरी तरह से टूट चुका ये राज्य जब परिवर्तन की इच्छा से नई सरकार को सत्ता में लेकर आया तो उसे विशवास था की पेशे से एक दक्ष अभियंता अपने कौशल से राज्य की मरणासन्न स्थिति को ठीक करने के गंभीर प्रयास करते हुए तो जरूर दिखेंगे | हालांकि अपने शुरुआती शासनकाल में पैदल यात्रा व् गाँव से ही पूरा राजकाज देखे जैसे जाने वाले साहसिक कदमों के लिए बहुत अधिक सराहे गए थे | बीच में खुद एक बार सरकार ने बिहार में सिनेमा उद्योग के स्थापन के सन्दर्भ में सबसे विचार करने का आग्रह भी किया था | 

लेकिन जाने किस भी कारण से पहले लालू यादव और फिर नीतीश कुमार की ये वर्तमान सरकार बिहार और बिहारियों की स्थिति को बदलने के लिए कुछ भी ,कोई एक भी ठोस कदम ,उपाय साझा करती दिखी है | इन सियासतदानों को क्या अंदाज़ा है कि अपनी मिटटी से दूर जाना वो भी कभी पढ़ने के लिए ,कभी इलाज के लिए ,कभी नौकरी के लिए सिर्फ हम बिहारियों के लिए ही क्यों अनिवार्य जैसा है ? 

फिलहाल बिहार के चुनावी नक्षत्र में तीन  सपष्ट चेहरे नए विकल्प के रूप में नुमाएदार हैं – तेजस्वी यादव ,चिराग पासवान और पुष्पम प्रिय चौधरी |

तेजस्वी यादव , शैक्षणिक रूप से दरिद्र ,बोलने और व्यवहार में भी निकृष्टतम पायदान पर | असल में देखा जाए तो अपने पिता लालू यादव की लंठ संस्कृति के सच्चे सिपाही | रोज़ किसी न किसी बहाने से टीवी पर दिखते रहते हैं मगर बाढ़ और कोरोना से पीड़ित होते बिहार के लिए कुछ करते तत्पर नहीं होते | इनके अपने भ्राता बहुरूप धर के विभिन्न तरह की लीलाओं में पारंगत तेज प्रताप जी बहुत ज्यादा उच्च कोटि के प्राणी हैं सब मोह माया से दूर उनका इंट्रेस्ट सिर्फ जन्माष्टमी में कृष्ण और शिव रात्रि में महादेव बन कर गली गली घूमने में ही है | 

चिराग पासवान – ये स्मार्ट लईका अपने पिताजी राम विलास जी पासवान से पक्का एक डेढ़ कदम आगे निकलेगा | चाहे सरकार किसी की भी बनी हो ,कोई बनाए उसमें राम विलास जी बाय डिफाल्ट फिट पाए जाते थे ,लगातार दायित्व निभाते रहे हैं क्या कहते हैं जो है सो की। ……| चिरगवा तेज़ है मॉडलिंग भी कर लेता है , सोशल नेट्वर्किंग में भी एक्सपर्ट है और सबसे बड़ी बात पलटी मारने में गजब टेलेंटेड | 

काले कपड़ों में पूरी तरह से चुस्त मुस्तैद सिर्फ आँखें बिहार के चप्पे चप्पे को तलाशती , एक छोटे से कारवां और बड़े से ख़्वाब को लेकर बिहार के राजनीतिक फलक पर अचानक उग आई बिहार की बेटी -पुष्पम प्रिय चौधरी | अपनी सारी शिक्षा दीक्षा विदेशों में पूरी करने के बाद अपने गृह राज्य की स्थति को ,परिवर्तन लाया जा सकता है वाली सोच को जगाने की नीयत से सक्रिय है ये और इनकी पार्टी -प्लूरल्स | यानि हम सब | 

बिहार के चुनावों में किसी भी तरह की आशंका अंदाज़ा या दावा करना बिलकुल फ़िज़ूल श्रम है क्यूंकि इस प्रदेश को कई बार खुद नहीं पता चलता कि कब उसने अपने ही पाले में गोल दाग दिए हैं | बिहार से रोज़ सैकड़ों श्रम और मष्तिष्क का पलायन इस प्रदेश  की सबसे बड़ी त्रासदी है | पूरी दुनिया को अपने मेधा का परिचय बार बार दे चुका ये क्षेत्र दिनों दिन क्यों क्षीण दीन होता जा रहा है ये मंथन सबसे पहले स्थानीय स्तर पर ही शुरू करना अपेक्षित है | 

गाँव में इंटरनेट की उपलब्धता , समाचार माध्यमों की सहायता से सजग और सचेत हुआ समाज अब भी यदि इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि उनका दुःख हरने ,उनकी समस्याओं का निदान करने कोई बाहर से आएगा तो फिर ये खुद को भ्रम में रखने जैसी बात है | 

युवा शक्ति जिसका आह्वान बार बार स्वयं प्रधानमंत्री जी द्वारा किया जा रहा है तो वो सिर्फ इसलिए ही कि युवा चाहें तो सब कुछ संभव हो सकता है | क्या कभी किसी ने इस नज़रिए से सोच कर देखा है कि अपने नौनिहालों को देश के हर कोने में अपना सब कुछ देने के लिए बिहार की प्रदेश सरकार को अन्य समकालीन सरकारों कोइस बात के लिए एहसानमंद होना चाहिए | 

बिहार चुनाव के नतीजे जैसे भी हों ,चुनाव जरूर हिंसक रौद्र और शान्ति भंग करने वाले होंगे | बेशक कभी मतपेटी के अंदर से जिन्न निकाल देने वाले लालू यादव अभी कारागार की बंदिशों में बेबस हैं तो उधर अपने क्षेत्र के लोकप्रिय और हमेशा ही चहेते रहे राम विलास जी स्वास्थ्य कारणों से जूझ रहे हैं | लेकिन पिछले दिनों एक के बाद एक करके जिस तरह से प्रशासनिक बदहाली और चिकित्स्कीय अक्षमताओं ने राज्य सरकार के क्रिया कलाप की पूरी असलियत सामने रख दी है उससे सबको सुशासन बाबू की सरकार को घेरने का अवसर मिल गया है | 

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