जी बिलकुल , आजकल उलटी गंगा बहा कर नाम कमाने की लत पाल बैठे कुछ संचार माध्यम पोर्टल में से एक डी प्रिंट पर किन्ही ज्योति यादव ने अपने उदगार जो व्यक्त किये हैं ,उसका लब्बो लुआब यही है कि -हुंह्ह मर गया तो क्या हुआ ? बिहारी ही तो था ? 

बिहारी और बिहारी परिवार के प्रति उनकी गहरी समझ का अंदाज़ा इसी से हो जाता है कि वे अपने आलेख में बार बार जहरीला बिहारी परिवार ,जहरीला बिहारी समाज लिख कर बिहार के साथ साथ बंगाल को भी बुरी तरह कोसते हुए खुद के आधुनिक और आजकल की बुद्दिजीवी होने का पुख्ता प्रमाण देती हैं | 

इस पूरे घटनाक्रम में जो पक्ष सबसे अधिक पीड़ित होता दिख रहा है उसमे स्त्री पक्ष , सुशांत की बहनें, पूर्व महिला मित्र , सह अभिनेत्री आदि की भूमिका कहीं न कहीं जुड़ी दिखाई दे रही है तो बतौर स्त्री लेखिका कहीं भी स्त्री ,महिला ,अभिनेत्री के लिए दो शब्द भी कहने सोचने की फुर्सत नहीं है क्यूंकि उनका सारा ध्यान इस बहाने बिहार ,बिहारी , बिहारी परिवार संस्कृति के प्रति अपने पूर्वाग्रह का विष वमन करना ही था | 

बेशक दिल्ली और मुम्बई सहित विश्व के हर बड़े शहर से लेकर छोटे कस्बे तक में अगर कोई सहजता से आपको मिलेगा तो वो यकीनन ही बिहारी होगा | आज विश्व में प्रवासी भारतीयों की जो धमक जो खनक जो प्रभाव जो योगदान है ठीक वही भारत में प्रवासी बिहारी कृषकों और मजदूरों का है | ये भी बरसों से उतना ही पुराना सच है कि प्रशासनिक सेवा से लेकर सामाजिक और राजनीतिक सेवा में भी अपना सर्वस्व लुटा देने के लिए कटिबद्ध बिहारी पूरी दुनिया में कहीं भी रह कर अपने श्रम ,बुद्धि ,व्यवहार और बहादुरी से सबका दिल जीत सकता है और जीतता रहा है ? 

महाराष्ट्र सरकार का खुद का रवैया और दृष्टिकोण बिहार उत्तरप्रदेश के प्रवासी श्रमिकों के प्रति कैसा रहा है ये किसी से भी ढका छुपा नहीं है किन्तु ऐसा भी क्या कि अदालत को डाँट कर ये समझाना पड़े कि अगर वो नहीं कर पाए तो ये तो बिलकुल ही नहीं करना है | 

बिहार और उत्तर प्रदेश की अपनी मिट्टी से पलायन करने वाले हर शख्स की देह दुनिया में कहीं भी आत्मा वहीँ अपने घर आँगन दालान आदि पर ही टंगी रहती है | ऐसे में वो दुनिया में कहीं भी जाकर कुछ भी कर के नाम बड़ा कर ले तो भी बेशक उसके दिल के एक कोने में अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने का विचार होता है लेकिन कर्मभूमि को भी अपना सर्वोत्तम देने के संस्कार पाए हुए होता है बिहारी परिवार | 

सुशांत सिंह की मृत्यु , हिंदी सिनेमा जगत जो अब अपराध ,व्यसन ,अयाशी का पर्याय सा बनता जा रहा है , उसकी सारा गंद अब मवाद की तरह टपक टपक कर बाहर निकलेगा | बेशक इसके बावजूद भी समाज से बिलकुल विलग ही अपनी दुनिया और संस्कृति बनाए हुए ये समूह फिर इन्हीं सब में लिप्त हो जाएगा ,इसके बावजूद हर छोटे बड़े सच को और गंदगी को बाहर आना चाहिए और वो आ भी जाता ही है | 

हिंदी सिनेमा के कन्धों पर चढ़कर अक्सर रंगीन तमाशे देखने वाले राजनेताओं की कलई भी खुलती दिख रही रही है | दो दो राज्यों की पुलिस के अतिरिक्त अब तो मामला खुद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के  हाथ में आया है | इतिहास  गवाह है की ऐसी  असमय मौतें फिर अकल्पनीय सच को बाहर कुरेद लाती हैं | सुशांत सिंह की मौत के मामले में भी ऐसा ही कुछ होता / सामने आता दिख रहा है | 

बिहार और बिहारियों के लिए कुछ भी लिखने कहने से पहले ये बात ज़ेहन में जरूर रखी जानी चाहिए कि 

आप उससे नफरत करें या मुहब्बत ,बिहार को दरकिनार नहीं कर सकते ” | 

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